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29 दिसंबर 2011

बालकाण्ड ब्राह्मण-संत वंदना



* बंदउँ प्रथम महीसुर चरना। मोह जनित संसय सब हरना॥
सुजन समाज सकल गुन खानी। करउँ प्रनाम सप्रेम सुबानी॥2॥
भावार्थ:-पहले पृथ्वी के देवता ब्राह्मणों के चरणों की वन्दना करता हूँ, जो अज्ञान से उत्पन्न सब संदेहों को हरने वाले हैं। फिर सब गुणों की खान संत समाज को प्रेम सहित सुंदर वाणी से प्रणाम करता हूँ॥2॥
* साधु चरित सुभ चरित कपासू। निरस बिसद गुनमय फल जासू॥
जो सहि दुख परछिद्र दुरावा। बंदनीय जेहिं जग जस पावा॥3॥
भावार्थ:-संतों का चरित्र कपास के चरित्र (जीवन) के समान शुभ है, जिसका फल नीरस, विशद और गुणमय होता है। (कपास की डोडी नीरस होती है, संत चरित्र में भी विषयासक्ति नहीं है, इससे वह भी नीरस है, कपास उज्ज्वल होता है, संत का हृदय भी अज्ञान और पाप रूपी अन्धकार से रहित होता है, इसलिए वह विशद है और कपास में गुण (तंतु) होते हैं, इसी प्रकार संत का चरित्र भी सद्गुणों का भंडार होता है, इसलिए वह गुणमय है।) (जैसे कपास का धागा सुई के किए हुए छेद को अपना तन देकर ढँक देता है, अथवा कपास जैसे लोढ़े जाने, काते जाने और बुने जाने का कष्ट सहकर भी वस्त्र के रूप में परिणत होकर दूसरों के गोपनीय स्थानों को ढँकता है, उसी प्रकार) संत स्वयं दुःख सहकर दूसरों के छिद्रों (दोषों) को ढँकता है, जिसके कारण उसने जगत में वंदनीय यश प्राप्त किया है॥3॥
* मुद मंगलमय संत समाजू। जो जग जंगम तीरथराजू॥
राम भक्ति जहँ सुरसरि धारा। सरसइ ब्रह्म बिचार प्रचारा॥4॥
भावार्थ:-संतों का समाज आनंद और कल्याणमय है, जो जगत में चलता-फिरता तीर्थराज (प्रयाग) है। जहाँ (उस संत समाज रूपी प्रयागराज में) राम भक्ति रूपी गंगाजी की धारा है और ब्रह्मविचार का प्रचार सरस्वतीजी हैं॥4॥
* बिधि निषेधमय कलिमल हरनी। करम कथा रबिनंदनि बरनी॥
हरि हर कथा बिराजति बेनी। सुनत सकल मुद मंगल देनी॥5॥
भावार्थ:-विधि और निषेध (यह करो और यह न करो) रूपी कर्मों की कथा कलियुग के पापों को हरने वाली सूर्यतनया यमुनाजी हैं और भगवान विष्णु और शंकरजी की कथाएँ त्रिवेणी रूप से सुशोभित हैं, जो सुनते ही सब आनंद और कल्याणों को देने वाली हैं॥5॥
* बटु बिस्वास अचल निज धरमा। तीरथराज समाज सुकरमा॥
सबहि सुलभ सब दिन सब देसा। सेवत सादर समन कलेसा॥6॥
भावार्थ:-(उस संत समाज रूपी प्रयाग में) अपने धर्म में जो अटल विश्वास है, वह अक्षयवट है और शुभ कर्म ही उस तीर्थराज का समाज (परिकर) है। वह (संत समाज रूपी प्रयागराज) सब देशों में, सब समय सभी को सहज ही में प्राप्त हो सकता है और आदरपूर्वक सेवन करने से क्लेशों को नष्ट करने वाला है॥6॥
* अकथ अलौकिक तीरथराऊ। देह सद्य फल प्रगट प्रभाऊ॥7॥
भावार्थ:-वह तीर्थराज अलौकिक और अकथनीय है एवं तत्काल फल देने वाला है, उसका प्रभाव प्रत्यक्ष है॥7॥
दोहा :
* सुनि समुझहिं जन मुदित मन मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु साधु समाज प्रयाग॥2॥
भावार्थ:-जो मनुष्य इस संत समाज रूपी तीर्थराज का प्रभाव प्रसन्न मन से सुनते और समझते हैं और फिर अत्यन्त प्रेमपूर्वक इसमें गोते लगाते हैं, वे इस शरीर के रहते ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष- चारों फल पा जाते हैं॥2॥
चौपाई :
* मज्जन फल पेखिअ ततकाला। काक होहिं पिक बकउ मराला॥
सुनि आचरज करै जनि कोई। सतसंगति महिमा नहिं गोई॥1॥
भावार्थ:-इस तीर्थराज में स्नान का फल तत्काल ऐसा देखने में आता है कि कौए कोयल बन जाते हैं और बगुले हंस। यह सुनकर कोई आश्चर्य न करे, क्योंकि सत्संग की महिमा छिपी नहीं है॥1॥
* बालमीक नारद घटजोनी। निज निज मुखनि कही निज होनी॥
जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना॥2॥
भावार्थ:-वाल्मीकिजी, नारदजी और अगस्त्यजी ने अपने-अपने मुखों से अपनी होनी (जीवन का वृत्तांत) कही है। जल में रहने वाले, जमीन पर चलने वाले और आकाश में विचरने वाले नाना प्रकार के जड़-चेतन जितने जीव इस जगत में हैं॥2॥
* मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥
सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ॥3॥
भावार्थ:-उनमें से जिसने जिस समय जहाँ कहीं भी जिस किसी यत्न से बुद्धि, कीर्ति, सद्गति, विभूति (ऐश्वर्य) और भलाई पाई है, सो सब सत्संग का ही प्रभाव समझना चाहिए। वेदों में और लोक में इनकी प्राप्ति का दूसरा कोई उपाय नहीं है॥3॥
* बिनु सतसंग बिबेक न होई। राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सतसंगत मुद मंगल मूला। सोई फल सिधि सब साधन फूला॥4॥
भावार्थ:-सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और श्री रामजी की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में मिलता नहीं। सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। सत्संग की सिद्धि (प्राप्ति) ही फल है और सब साधन तो फूल है॥4॥
* सठ सुधरहिं सतसंगति पाई। पारस परस कुधात सुहाई॥
बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं। फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं॥5॥
भावार्थ:-दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं, जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुहावना हो जाता है (सुंदर सोना बन जाता है), किन्तु दैवयोग से यदि कभी सज्जन कुसंगति में पड़ जाते हैं, तो वे वहाँ भी साँप की मणि के समान अपने गुणों का ही अनुसरण करते हैं। (अर्थात्‌ जिस प्रकार साँप का संसर्ग पाकर भी मणि उसके विष को ग्रहण नहीं करती तथा अपने सहज गुण प्रकाश को नहीं छोड़ती, उसी प्रकार साधु पुरुष दुष्टों के संग में रहकर भी दूसरों को प्रकाश ही देते हैं, दुष्टों का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।)॥5॥
* बिधि हरि हर कबि कोबिद बानी। कहत साधु महिमा सकुचानी॥
सो मो सन कहि जात न कैसें। साक बनिक मनि गुन गन जैसें॥6॥
भावार्थ:-ब्रह्मा, विष्णु, शिव, कवि और पण्डितों की वाणी भी संत महिमा का वर्णन करने में सकुचाती है, वह मुझसे किस प्रकार नहीं कही जाती, जैसे साग-तरकारी बेचने वाले से मणियों के गुण समूह नहीं कहे जा सकते॥6॥
दोहा :
* बंदउँ संत समान चित हित अनहित नहिं कोइ।
अंजलि गत सुभ सुमन जिमि सम सुगंध कर दोइ॥3 (क)॥
भावार्थ:-मैं संतों को प्रणाम करता हूँ, जिनके चित्त में समता है, जिनका न कोई मित्र है और न शत्रु! जैसे अंजलि में रखे हुए सुंदर फूल (जिस हाथ ने फूलों को तोड़ा और जिसने उनको रखा उन) दोनों ही हाथों को समान रूप से सुगंधित करते हैं (वैसे ही संत शत्रु और मित्र दोनों का ही समान रूप से कल्याण करते हैं।)॥3 (क)॥
* संत सरल चित जगत हित जानि सुभाउ सनेहु।
बालबिनय सुनि करि कृपा राम चरन रति देहु॥ 3 (ख)
भावार्थ:-संत सरल हृदय और जगत के हितकारी होते हैं, उनके ऐसे स्वभाव और स्नेह को जानकर मैं विनय करता हूँ, मेरी इस बाल-विनय को सुनकर कृपा करके श्री रामजी के चरणों में मुझे प्रीति दें॥ 3 (ख)॥

कुरान का संदेश .....



प्रकाश पर्व पर फैलेगी मानवता की रोशनी

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मानवता का संदेश देने और अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले गुरु गोविंद सिंह के विचारों को सिख समाज ही नहीं, बल्कि मानवता के पुजारी अनेकों अनेक लोगों ने आत्मसात किया है। उन्हीं विचारों की बनाए रखने के लिए हर साल गुरु गोविंद सिंह का प्रकाश पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। सिख समाज के 10वें गुरुदेव गुरु गोविंद सिंह साहब का 345वां प्रकाश पर्व शनिवार को शहर के गुरुद्वारों में धूमधाम से मनाया जाना है। प्रकाश पर्व के माध्यम से मानव समाज मानवता से रोशन होता नजर आएगा।

जीवन परिचय : श्रीगुरु गोविंद सिंह का जन्म पटना में 22 दिसंबर सन 1666 में हुआ था। माता का नाम गुजरीजी और पिता का नाम गुरु तेग बहादुर साहिब था। नौ साल की उम्र में गुरुजी ने विशेष पहचान बनाई। उस समय दिल्ली के सिंहासन पर औरंगजेब आसीन था।

अत्याचार से दुखी होकर कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर के पास पहुंचे। दिल्ली के चांदनी चौक में गुरु तेग बहादुर का बलिदान होने पर गुरु गोविंद सिंह पिता की जगह गुरु गद्दी पर विराजित हुए। सन 1699 में तख्त श्री केश गढ़ में गुरुजी ने खालसा पंथ की स्थापना की। देश की रक्षा के लिए गुरुजी ने अपने चारों पुत्रों का भी बलिदान दिया। महाराष्ट्र के नांदेड़ शहर में गुरुजी ज्योति ज्योत समाए। पटना में गुरुद्वारा पटना साहिब और नांदेड़ में गुरुद्वारा सचखंड हजूर साहब बने हुए हैं।

गुरुद्वारा सचखंड दरबार

अखंड पाठ साहिब की शुरुआत हुई। प्रकाश पर्व पर शनिवार को अखंड पाठ साहिब का समापन होगा। सुबह 5 बजे से ही लंगर की सेवा शुरू हो जाएगी। निशान साहिब का चोला बदला जाएगा। दोपहर तक शबद कीर्तन और फिर पांच हजार लोगों के लिए लंगर होगा। कीर्तनी जत्था वीरेंद्र सिंह दिल्ली वाले व कानपुर के मनमीत सिंह जत्था कथावाचन करेगा। बच्चों की प्रस्तुतियां और धार्मिक प्रतियोगिताएं होंगी।

गुरुद्वारा सिंग सभा

गुरुवार सुबह 9 बजे अखंड पाठ की शुरुआत हुई। शुक्रवार सुबह और शाम भी शबद कीर्तन होगा। शनिवार सुबह 9.30 बजे अखंड पाठ समापन से होगी। इसके बाद मुंबई का प्रीतम सिंह जत्था शबद कीर्तन करेगा। सुबह 10 बजे पहले दीवान की समाप्ति और फिर 11 से 2 बजे तक पांडाल में विशेष दीवान सजेगा। दोपहर 2 बजे लंगर और रात 8.30 से 10 बजे तक शबद कीर्तन और फिर आतिशबाजी होगी।

गुरुद्वारा अरजन दरबार

अखंड पाठ की शुरुआत गुरुवार को हो गई, जिसका समापन शनिवार सुबह 8 बजे होगा। दोपहर 1 बजे तक शबद कीर्तन चलेगा और फिर लंगर बंटेगा। रक्तदान शिविर भी होगा। शाम 7.30 बजे दीवान सजेगा। रात 12 बजे आतिशबाजी होगी।

गुरुद्वारा दु:ख निवारण

प्रकाश पर्व रविवार को मनाया जाएगा। प्रभात फेरियों का समापन शनिवार सुबह होगा। शुक्रवार सुबह 10 बजे अखंड पाठ शुरू होगा, जिसका समापन प्रकाश पर्व पर होगा। इस दिन ज्ञानी गुरमीत सिंह रागी जत्थे द्वारा शबद कीर्तन किया जाएगा।

पेट्रोल के दाम 2.25 रुपए बढ़ाने की तैयारी!



नई दिल्लीः नए साल में देश की ऑयल मार्केंटिंग कंपनियां आपको झटका दे सकती हैं। उनकी योजना पेट्रोल के दाम सवा दो रुपए प्रति लीटर बढ़ाने की है। तेल कंपनियों ने नियम बना रखा है कि वे हर दो महीने में पेट्रोल की कीमतों की समीक्षा करेंगी लेकिन इस बार सरकार के कहने पर उन्होंने ऐसा नहीं किया है क्योंकि उस समय संसद का सत्र चल रहा था और सरकार वहां कोई हंगामा नहीं चाहती थी। लेकिन अब इन कंपनियों ने ऐसा करने का फैसला किया है। सरकारी तेल कंपनियों का कहना है कि डॉलर की बढ़ती कीमतों के कारण अब पेट्रोल के दाम बढ़ाने का वक्त आ गया है। यूं तो कुल फर्क 1.90 रुपए का है लेकिन राज्यों के टैक्स वगैरह लगाकर यह सवा दो रुपए का बैठता है। पेट्रोल कंपनियां अब शनिवार को इस पर चर्चा करेंगी। लेकिन उनके सामने एक समस्या है कि पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं और यूपीए नहीं चाहेगी कि विपक्ष पेट्रोल कीमत बढ़ोतरी को एक मुद्दा बना दे। हालांकि पेट्रोलियम मंत्रालय ने कहा है कि वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा लेकिन यूपीए सरकार शायद यह कदम न उठाने दे।

आसमान पर थूकने वाले लोगों का थूक उनके मुंह पर ही आन गिरा ...बेईमान सांसदों को जनता से धोखे के लियें दंड कोन देगा ..अन्ना अपने आस्तीन के साँपों को मारे

संसद के अंदर और संसद के बाहर अन्ना की आलोचना करने वाले सत्ताधारी लोगों के चेहरे पर कल लोकपाल के बहुत का जो तमाचा पढ़ा है उससे वोह सभी हमेशां के लियें लडखडा गए हैं और अब उनका राजनीति में सम्भाल पाना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन लग रहा है जो गलती अन्ना के खिलाफ सत्ता पक्ष ने की वही गलती अन्ना ने आखरी लम्हों में कुछ अपनों के हाथों गुमराह होकर सत्ता के खिलाफ घुटने टेक कर की लेकिन फिर भी अन्ना तो हीरो थे और हार कर भी हीरो बन कर उभरे है सरकार के पास तो अब सम्भलने का वक्त नहीं लेकिन अन्ना के पास अभी सम्भलने का बहुत वक्त है अगर वोह ज़िम्मेदारी से सम्भले तो एक बार फिर वोह २०१२ के जनता हीरो साबित होंगे .......... दोस्तों आप सभी जानते है के देश में लोकपाल के नाम पर कोंग्रेस हो चाहे भाजपा हो सभी दलों ने नोटंकी की है और खासकर कोंग्रेस और सहयोगी दलों की नोटंकी तो देश को कभी माफ़ नहीं करना चाहिए .सब जानते हैं के अन्ना के आन्दोलन के बाद कथित ठंडे बसते में पढ़े लोकपाल बिल से धूल छंटी कमजोर लोकपाल बिल को और कमजोर बनाया गया अन्ना और समर्थकों ने वकीलों ने इसका जब विरोध किया तो कोंग्रेस और समर्थित दलों ने सभी का मजाक उढ़ाया ..अन्ना और समर्थकों को डराया धमकाया और यहाँ तक के उन पर हमले करवाने की साजिशें तक रचीं अन्ना के खिलाफ जनता को भडकाया गया उनकी टीम में फुट डाली गयी और आखिर आखरी लम्हों में जब लोकसभा में लंगडा और कमजोर लोकपाल बिल पेश हुआ तो अन्ना ने हुनकर भरी लेकिन उन्हें उनके समर्थकों ने कोंग्रेस से इन्टरनल पेक्ट कर दिल्ली से महाराष्ट्र भेज दिया उनकी दलील थी दिल्ली में ठंड है अन्ना नहीं माने तो अन्ना को समझाया गया के आपका और आपके लोकपाल का शिवसेना खुला विरोध कर रही है इसलियें अगर महाराष्ट्र मुंबई शिवसेना के गढ़ में यह अनशन होगा तो देश देखेगा और सरकार पर दबाव बढ़ेगा लेकिन सब बेकार लोकसभा में बिल पेश हुआ अन्ना अनशन पर बेठे बीमार हुए भीड़ जमा नहीं हुई और लोकसभा में कोग्न्रेस के सांसदों के नहीं पहुंचने पर भी यह बिल सपा और बसपा के सांसदों के वाक् आउट के बाद पारित कर दिया गया अन्ना घबरा गये उनके समर्थक जो पहले से ही कोंग्रेस से मेच फिक्सिंग कर चुके थे फिर अन्ना को अनशन तोड़ने और जेल भरो आन्दोलन खत्म करने का एलान करवाने में कामयाब हुए बस यहीं अन्ना से चुक हो गयी उन्होंने अपने आस्तीन में पलने वाले साँपों को नहीं पहचाना और वोह खुद जो शेर कहलाते थे सरकार के सामने मेमने से नज़र आने लगे निराश हताश अन्ना घबरा गये थे लेकिन कहते हैं के जनहित में लोकहित में इश्वर खुदा अल्लाह का नाम लेकर अगर कोई काम किया जाए तो गेब से उसमे खुदा मदद करता है यहाँ भी यही सब हुआ ..हरे थके अन्ना रालेगन पहुंच कर हताशा और निराशा के दोर में थे वोह असमंजस में चल रहे थे लेकिन अचानक कोंग्रेस और सत्ता पक्ष का सुख भोग रहे साथी दलों के दिल और दिमाग में खुदा आने कोंग्रेस को पांच राज्यों के चुनाव की राजनीती के तहत पटखनी देने की बात डाल दी ...दोस्तों कितनी अजीब बात है के जो तुन मूल ..जो राष्ट्रीय जनता दल ..जो सपा जो भाजपा इस सरकारी लोकपाल को लोकसभा में पारित करवाने में मदद गार थे वही लोग सोदेबाज़ी फेल हो जाने पर राज्यसभा में बदल गये एक ही दल का लोकसभा और राज्यसभा में अलग अलग चेहरे नज़र आया तुन्मुल और लालू दल सरकार के और लोकपाल के खिलाफ सरकार का ब्लड प्रेशर हाई था दिन भर सभी कोंग्रेसी नेताओं का ब्लड प्रेशर बढ़ा रहा और खुद कोंग्रेस अपने ही आस्तीन में पलने वाले साँपों के हाथों ढ्सी गयी करोड़ों करोड़ रूपये इस बिल के पारित होने में सांसदों के भत्तों पर खर्च हुए अन्ना के आन्दोलन में खर्च हुए और नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात ...जरा सोचो अगर अन्ना का अनशन जारी रहता अगर जेल भरो आन्दोलन की तय्यारी रहती तो आज अन्ना को जो लोग रणछोड़ दास मेच फिक्सिंग का आरोपी समझ रहे है वोह नहीं समझा जाता .खेर कहावत है के आसमान पर थूकने वाले का थूक उसी के मुंह पर आकर गिरता है और सत्ता पक्ष उनके समर्थित दलों का थूक उन्हीं के मुंह पर आन गिरा लालू ने बिहार में कोंग्रेस के कारण अपनी हर का बदला ले लिया तो बसपा और सपा ने एक बार फिर उत्तरप्रदेश में अपनी रणनीति पक्की कर ली ...नुकसान हुआ तो कोंग्रेस को और अन्ना की छवि को कोंग्रेस के पास तो अब सम्भलने का वक्त नहीं है लेकिन अन्ना के पास अभी वक्त ही वक्त है अन्ना को अब फिर एक बार खुद की टीम का शुद्धिकरण करना होगा आस्तीन के साँपों को खत्म करना होगा और फिर जो कहा है वोह करके दिखने के लियें आगामी चुनावों में लोकपाल के मामले में सभी राजनितिक दलों को पटखनी देने के लीयें साफ छवि वाले निर्दलीय प्र्त्याक्षियो को आगामी चुनाव में खड़ा कर जरा कुछ ऐसा कर दिखाना होगा के देश को पता लग जाये के यहाँ लोकतंत्र है यहाँ संसद में जीत कर जाने वाले लोग गुंडा गर्दी के बल पर अगर जनता की भावनाओं को नज़र अंदाज़ कर मनमानी करना चाहते हैं तो जनता उन्हें सबक सिखाना चाहती है हमे बताना होगा के यह मेरा भारत महान है यहाँ जनता जनार्दन थी ..जनार्दन है और जनार्दन रहेगी जय भारत जय जवान जय किसान जय हिंदुस्तान ..........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

देसी प्रयोग, दांत के दर्द में दिखाएगा जादू सा असर

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दांतों की सफाई न करने पर दांतों के बीच फंसे अन्न का कण बाहर नहीं निकल पाता है जिससे दांतों के बीच फंसे अन्न के कण रात को सोने पर मुंह से निकलने वाली लार के प्रभाव में आकर सडऩे लगते हैं। उन अन्न के कणों के सडऩे से दांतों की जड़े खोखली हो जाती हैं। खोखली जगहों में भोजन का अंश भरने से दांत सडऩे लगते हैं तथा दांतों में अत्यधिक तेज दर्द होने लगता है। अगर आप भी दांतों के दर्द से परेशान हैं तो नीचे लिखे देसी नुस्खों को एक बार जरूर आजमाएं।

- लहसुन की एक कली थोडे से सैंधा नमक के साथ पीसें और इसे दुखने वाले दांत पर रख कर दबाएं यह एक रामबाण उपाय है।

- रोजान एक लहसुन कली चबाकर खाने से दांत की तकलीफ से छुटकारा मिलता है।

- दांत की केविटी में थोडी सी हींग भरदें। दर्द में राहत मिलेगी।

- तंबाकू और नमक महीन पीसलें। इस टूथ पावडर से रोज दंतमंजन करने से दांत के दर्द से मुक्ति मिल जाती है।

- बर्फ का टुकडा दुखने वाले दांत के ऊपर या पास में रखें। बर्फ उस जगह को सुन्न करके लाभ पहुंचाता है।

- गरम पानी की थैली से सेक से भी राहत मिलती है।

- प्याज को कूटकर लुग्दी दांत पर रखना हितकर उपचार है।

- लौंग के तैल का फाया दर्द वाले दांत के मध्य रखने से निश्चित ही लाभ होगा।

- दांत के दर्द के रोगी को दिन में 3-4 बार एक लौंग मुंह में रखकर चूसने की सलाह दी जाती है।

- पुदिने की सूखी पत्तियां पीसकर दांतों के बीच रखें, ऐसा दिन में 10 बार करने से लाभ मिलेगा।

- दो ग्राम हींग नींबू के रस में पीसकर पेस्ट बनाकर मंजन करें।

अन्ना के साथ मुंबई के बाद अब रालेगण सिद्धि में घटी चौंका देने वाली घटना

रालेगणसिद्धी (महाराष्ट्र)/मुंबई.देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में वरिष्ठ समाजसेवक अण्णा हजारे को अच्छा प्रतिसाद न मिलने की घटना के बाद अब रालेगणसिद्धी में भी ग्रामीणों द्वारा उनका स्वागत न करने का चौकाने वाला वाक्या सामने आया है। अण्णा किसी अनशन या आंदोलन के बाद गांव पहुंचे हों और उनका स्वागत न होने की संभवत: यह पहली घटना है।

अण्णा के गांव में आने पर अक्सर सभी काम को छोड़ कर उनसे मिलने वाले लोग अचानक कहां व क्यों गायब हो गये? इस बात की चर्चा रालेगणसिद्धी में हर जुबान पर है। सबसे बड़ा सवाल यह पूछा जा रहा है कि आखिर इस बार अण्णा का स्वागत क्यों नहीं किया गया? ध्यान रहे कि अण्णा इस बार जब मुंबई में तीन दिवसीय अनशन के लिए रवाना हो रहे थे। तब करीब एक से डेढ़ हजार ग्रामीण उनकी जयजयकार करते देखे गये थे।

माना जा रहा है कि मुंबई में जिस तरह अण्णा के अनशन में लोगों की भीड़ नहीं उमड़ी, उसे देख कर रालेगणसिद्धी के लोगों में भारी निराशा का माहौल है। बता दें कि गुरुवार की दोपहर को अण्णा जब रालेगणसिद्धी पहुंचे, तो उनके साथ सिर्फ दादा पठारे, सुरेश पठारे, अनिल शर्मा जैसे गिनती के लोग ही थे। जबकि वे जब दिल्ली में आंदोलन करके गांव लौटे थे, तो उनके स्वागत में ग्रामीणों का सैलाब उमड़ा था।

इतना ही नहीं लोगों ने बड़े पैमाने पर आतिशबाजी कर एक तरह से दीवाली मनाई थी। परंतु इस बार सब कुछ सूना-सूना था। संभवत: अण्णा की तबीयत ठिक न होने की वजह से रालेगणसिद्धी में यह सब कुछ हुआ होगा। इस प्रकार का तर्क टीम अण्णा से जुड़े लोग दे रहे हैं।

दो जनवरी को कोर कमेटी की बैठक

मुंबई का अनशन फ्लॉप होने के बाद अब टीम अण्णा की कोर कमेटी की २ जनवरी को रालेगणसिद्धी में महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है। खुद अण्णा के करीबी सुरेश पठारे ने बैठक की जानकारी ट्विट कर दी है। उन्होंने कहा है कि अण्णा की सेहत ठिक नहीं है।

डॉक्टरों ने उनके सिने में इन्फेक्शन होने की बात कहते हुए 8-10 दिन तक पूरी तरह से विश्राम करने की सलाह दी है। उन्होंने अण्णा के समर्थकों से अपील की है कि वे उन्हें आराम करने दें। पठारे ने गुरुवार को अण्णा की मेडिकल रिपोर्ट भी जारी की। जिसमें अण्णा का ब्लडप्रेशर १२क्/९क् बताया गया है। इसी तरह उन्हें बुखार होने, सर्दी-खासी की परेशानी होने और असहज महसूस होने की बात कही गई है।

विशेष टिप्पणीः यह देश को छह माह पीछे धकेलने का धोखा


यह भ्रष्ट आचरण है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध एकजुट राष्ट्र को धोखा देने का। भ्रष्टाचार के मुकाबले शक्तिशाली लोकपाल लाने का वादा कर रहे सांसदों के पथभ्रष्ट होने का। जनभावनाओं को निर्ममता से भावहीन करने की कोशिशों का। यह भ्रष्ट आचरण है। सरकार के दोहरे चरित्र का। विपक्षी दलों की विचारशून्यता का

यह भ्रष्ट आचरण है। उन सांसदों का, जिन्होंने सत्ता में रहकर लोकपाल कानून को सुनियोजित षडच्यंत्र में बदल दिया। उन सांसदों का, जिन्होंने अपनी सुविधा, सुरक्षा और स्वार्थ के लिए इसे दंतहीन, श्रीहीन और दीनहीन बना दिया। विपक्ष के उन सदस्यों का, जिन्होंने इसे अपनी खुदगर्जी और मनमर्जी के कारण संशोधनों के पहाड़ तले रौंद दिया।

यह भ्रष्ट आचरण है 121 करोड़ नागरिकों को कम से कम छह माह पीछे धकेल देने का। उन तमाम फैसलों को रोकने का, जो देश को अर्थ संकट से लड़ने की ताकत देते। उस तमाम कामकाज को छोड़ने का, जिससे आर्थिक सुधारों का दूसरा और प्रभावी दौर शुरू होता।

यह भ्रष्ट आचरण है। देश की तरक्की को ‘अनिश्चितकाल के लिए स्थगित’करने का। देश को पिछले छह माह से सिर्फ शक्तिशाली लोकपाल कानून लाने के छलावे में उलझाए रखने का। इस बीच जीडीपी की दर कमजोर करने का। कृषि उत्पादन घटने देने का। औद्योगिक उत्पादन को रसातल में भेजने का। और महंगाई से आम आदमी के सपनों को चूर-चूर कर देने का। भयावह भ्रष्ट आचरण है यह सब।

यह हमारी, अपनी चुनी हुई सरकार का आचरण है। हमारे अपने हाथों से संसद में पहुंचे एक-एक, हरेक सांसद का। प्रधानमंत्री लोकपाल की परिधि में होंगे, पूरे होंगे, आधे होंगे, सशर्त होंगे, यह तो तय हो रहा है। सीबीआई लोकपाल के मातहत होगी, कहने से जांच करेगी या नहीं करेगी, इस पर भी फैसला हो रहा है।

सिर्फ उच्चस्तरीय नौकरशाह लोकपाल की जद में होंगे या सौ फीसदी सरकारी कर्मचारी, यह भी बहस चल रही है। लोकपाल कितना कमजोर किया जाए, यह तय करने की तो होड़ सी मची है। लेकिन हमारे वोट से संसद में बैठकर हम पर शासन कर रहे इन सभी नेताओं के ऐसे भ्रष्ट आचरण को हम किस परिधि में लाएं? कैसे तय करें?

समस्या वही है, जिस पर दो शब्दों में पहले भी बात हुई थी। क्या सरकार, क्या विपक्ष, एक अपवित्र गठजोड़ खड़ा हो गया है। जनता सीधे सरकार नहीं चला सकती। उसे सरकार चुनने से पहले ही यह तय करना होगा कि वह सिर्फ सही को चुने। क्योंकि वो जो एक वोट है, वही 121 करोड़ जिंदगियों का भविष्य लिख देता है।

हालांकि गुरुवार को मध्यरात्रि तक राज्यसभा में जिस निर्लज्जता के साथ इस वोटरूपी भरोसे को फाड़ा गया, उससे न तो हकीकत बदल सकती है, न ही ऐसे गैरजिम्मेदार सांसदों की तकदीर। सारे राष्ट्र ने अपनी भावनाओं को ऐसा क्रूर प्रहसन बनते हुए देखा है। आंख मींच लेने से तूफान लौट नहीं जाता। यानी भ्रष्ट नेता संभलकर रहें, जनाक्रोश का तूफान आना तय है।

विशेष टिप्पणीः यह देश को छह माह पीछे धकेलने का धोखा


यह भ्रष्ट आचरण है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध एकजुट राष्ट्र को धोखा देने का। भ्रष्टाचार के मुकाबले शक्तिशाली लोकपाल लाने का वादा कर रहे सांसदों के पथभ्रष्ट होने का। जनभावनाओं को निर्ममता से भावहीन करने की कोशिशों का। यह भ्रष्ट आचरण है। सरकार के दोहरे चरित्र का। विपक्षी दलों की विचारशून्यता का

यह भ्रष्ट आचरण है। उन सांसदों का, जिन्होंने सत्ता में रहकर लोकपाल कानून को सुनियोजित षडच्यंत्र में बदल दिया। उन सांसदों का, जिन्होंने अपनी सुविधा, सुरक्षा और स्वार्थ के लिए इसे दंतहीन, श्रीहीन और दीनहीन बना दिया। विपक्ष के उन सदस्यों का, जिन्होंने इसे अपनी खुदगर्जी और मनमर्जी के कारण संशोधनों के पहाड़ तले रौंद दिया।

यह भ्रष्ट आचरण है 121 करोड़ नागरिकों को कम से कम छह माह पीछे धकेल देने का। उन तमाम फैसलों को रोकने का, जो देश को अर्थ संकट से लड़ने की ताकत देते। उस तमाम कामकाज को छोड़ने का, जिससे आर्थिक सुधारों का दूसरा और प्रभावी दौर शुरू होता।

यह भ्रष्ट आचरण है। देश की तरक्की को ‘अनिश्चितकाल के लिए स्थगित’करने का। देश को पिछले छह माह से सिर्फ शक्तिशाली लोकपाल कानून लाने के छलावे में उलझाए रखने का। इस बीच जीडीपी की दर कमजोर करने का। कृषि उत्पादन घटने देने का। औद्योगिक उत्पादन को रसातल में भेजने का। और महंगाई से आम आदमी के सपनों को चूर-चूर कर देने का। भयावह भ्रष्ट आचरण है यह सब।

यह हमारी, अपनी चुनी हुई सरकार का आचरण है। हमारे अपने हाथों से संसद में पहुंचे एक-एक, हरेक सांसद का। प्रधानमंत्री लोकपाल की परिधि में होंगे, पूरे होंगे, आधे होंगे, सशर्त होंगे, यह तो तय हो रहा है। सीबीआई लोकपाल के मातहत होगी, कहने से जांच करेगी या नहीं करेगी, इस पर भी फैसला हो रहा है।

सिर्फ उच्चस्तरीय नौकरशाह लोकपाल की जद में होंगे या सौ फीसदी सरकारी कर्मचारी, यह भी बहस चल रही है। लोकपाल कितना कमजोर किया जाए, यह तय करने की तो होड़ सी मची है। लेकिन हमारे वोट से संसद में बैठकर हम पर शासन कर रहे इन सभी नेताओं के ऐसे भ्रष्ट आचरण को हम किस परिधि में लाएं? कैसे तय करें?

समस्या वही है, जिस पर दो शब्दों में पहले भी बात हुई थी। क्या सरकार, क्या विपक्ष, एक अपवित्र गठजोड़ खड़ा हो गया है। जनता सीधे सरकार नहीं चला सकती। उसे सरकार चुनने से पहले ही यह तय करना होगा कि वह सिर्फ सही को चुने। क्योंकि वो जो एक वोट है, वही 121 करोड़ जिंदगियों का भविष्य लिख देता है।

हालांकि गुरुवार को मध्यरात्रि तक राज्यसभा में जिस निर्लज्जता के साथ इस वोटरूपी भरोसे को फाड़ा गया, उससे न तो हकीकत बदल सकती है, न ही ऐसे गैरजिम्मेदार सांसदों की तकदीर। सारे राष्ट्र ने अपनी भावनाओं को ऐसा क्रूर प्रहसन बनते हुए देखा है। आंख मींच लेने से तूफान लौट नहीं जाता। यानी भ्रष्ट नेता संभलकर रहें, जनाक्रोश का तूफान आना तय है।

लटक गया लोकपाल, सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित

नई दिल्ली. राज्यसभा से लोकपाल बिल के पास नहीं हो सका। संसद में हंगामे के बीच राज्यसभा अध्यक्ष हामिद अंसारी ने सत्र समाप्ति की घोषणा करते हुए सदन को अनिश्चितकालीन के लिए स्थगित कर दिया।

इससे पहले लोकपाल में आरक्षण के मुद्दे पर सदन की कार्रवाही 15 मिनट के लिए स्थगित की गई जिसके बाद संसदीय कार्यमंत्री पवन कुमार बंसल ने सरकार की ओर से जवाब देना शुरु किया। बंसल ने कहा कि शीतसत्र की कार्रवाही 21 दिसंबर को समाप्त होनी थी। लेकिन लोकपाल बिल का काम चल रहा था और सरकार शीत सत्र के दौरान ही लोकपाल को पास कराना चाहती थी। राष्ट्रपति से तीन दिन तक कार्रवाही बढ़ाने की अनुमति ली गई। लेकिन सदन में चर्चा के दौरान बहुत से संशोधन सामने आए हैं जिनपर चर्चा की आवश्यक्ता है। सरकार मजबूत लोकपाल लाने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार फैसला करेगी कि संसद की कार्रवाही अब कब होगी। यदि हम सच में ही मजबूत लोकपाल लाना चाहते हैं तो फिर सरकार को वक्त दिया जाना चाहिए। सदन में बहुत से संशोधन पेश किए गए हैं। सरकार सभी संशोधनों पर चर्चा करना चाहती है। सरकार को फैसला करना है कि अब कब सदन की कार्रवाही हो।

पवन कुमार बंसल को जवाब देते हुए राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि सरकार कार्रवाही जारी रखे, हम पूरी रात बैठने को तैयार हैं।
अरूण जेटली ने सरकार को जवबा देते हुए कहा सरकार सदन से भाग रही है क्योंकि वो विश्वास खो चुकी है। दिन भर की चर्चा की बाद सदन का मत जानने के बाद विपक्ष ने तीन संशोधन प्रस्ताव पेश किए हैं जिनके पास होने की संभावना है। सरकार के पास सदन में बहुमत नहीं है। मैं पूरे होश में कहता हूं कि सदन में जो हो रहा है वो सरकार की साजिश का नतीजा है। सरकार इस सदन में अल्पमत में हैं। जो सरकार सदन में वोट करवाने से दूर भाग रही है उसे देश में राज करने का कोई अधिकार नहीं है।
मैं सदन के अध्यक्ष से अपील करता हूं कि सदन को फैसला करना चाहिए कि सदन की कार्रवाही कब तक चलनी चाहिए न की सरकार को यह फैसला लेना चाहिए की सदन की कार्रवाही कब हो।

सीताराम येचुरी ने कहा कि हम कल भी इस चर्चा के लिए तैयार थे। सरकार कल बिल क्यों नहीं लाई ये हमें नहीं पता। सरकार के सामने कल दिक्कतें थी जिस कारण सरकार बिल लेकर नहीं आई। येचुरी ने कहा, मंत्री महोदय कह रहे हैं कि सरकार लोकपाल में प्रस्तावित संशोधने पर चर्चा करना चाहती है तो स्पष्ट करें कि चर्चा कब की जाएगी। इस बात का कोई अर्थ नहीं है कि सरकार फैसला करेगी कि सदन का सत्र कब चलेगा। सदन लगातार चल रहा है और अगर जरूरत पड़ी तो हम कल भी फिर से बैठेंगे।

जेटली और येचुरी के सवालों के जवाब में संसदीय कार्यमंत्री पीके बंसल ने कहा कि सरकार मजबूत लोकपाल लाना चाहता है। कुछ संवैधानिक मजबूरियां हैं जिन्हें निभाना जरूरी है। नया साल आ रहा है जिसमें सदन की कार्रवाही राष्ट्रपति के भाषण से ही शुरु होगी। लोकपाल में 187 संशोधन प्रस्ताव पेश किए गए हैं जिनमें से कुछ विवादित भी हैं इन पर सरकार का विचार करना जरूरी है।
पवन कुमार बंसल जिस वक्त अरुण जेटली और सीताराम येचुरी के सवालों का जवाब दे रहे थे उस वक्त सदन में हंगामे के कारण कार्रवाही को स्थगित करते हुए सदन के अध्यक्ष हामिद अंसारी ने कहा, सदन के सामने एक अप्रत्याशित परिस्थिति है। ऐसा लग रहा है जैसे सभी सदस्य एक दूसरे पर हावी होना चाहते हैं। सदन की कार्रवाही ऐसी परिस्थित में जारी नहीं रखी जा सकती। अब मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा है। न चाहते हुए भी मुझे सदन की कार्रवाही स्थगित करनी पड़ रही है। अध्यक्ष ने राष्ट्रगीत सदन में बजने के बाद सदन के अनिश्चितकालीन के लिए स्थगित करने की घोषणा की।

इससे पहले राज्यसभा में बोलते हुए बीजेपी के राज्यसभा सांसद ने सरकार पर लोकपाल विधेयक को जानबूझकर लटकाने का आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस जानबूझकर सदन में हंगामा कर रही ताकि समय पूरा हो जाए और बिल पास न कराया जा सके। राज्यसभा में चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी भी मौजूद थे।
सदन की कार्रवाही पर बनी संशय की स्थिति पर टिप्पणी करते हुए बीजेपी नेता बलवीर पुंज ने कहा कि यदि वोटिंग नहीं होती है तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए काला दिन होगा। आपातकाल के बाद यह फिर से लोकतंत्र की हत्या जैसी होगा। सुबह से सदन चल रहा है और सदन में खलल डाला जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि सदन में हंगामा प्रायोजित है। साफ स्पष्ट है कि सरकार लोकपाल को लटका रही है।

महाराष्ट्र में दो जनवरी से किन्नरों का राष्ट्रीय अधिवेशन

किन्नरों का 2 जनवरी से 17 जनवरी तक महाराष्ट्र के अक्कलकुवा तालुका के सोरापाड़ा में राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया गया है। राज्य के किन्नरों की प्रमुख नायक रानी का कहना है कि इस सम्मेलन में देशभर के करीब 5 हजार किन्नर उपस्थिति दर्ज करायेंगे।

उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में किन्नरों की राजधानी सोरापाड़ा (अक्कलकुवा) है। नायक रानी का कहना है कि सम्मेलन का आयोजन यहां के महाकाली माता मैदान में किया गया है। इस आयोजन के मद्देनजर 26 दिसंबर को स्तंभपूजा का कार्यक्रम संपन्न हुआ है।

नायक रानी के अनुसार 15 दिन तक चलने वाले सम्मेलन में महाराष्ट्र के अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, दिल्ली, उत्तराखंड, उड़िसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के किन्नर उपस्थित रहेंगे।

बता दें कि किन्नरों को राष्ट्रीय सम्मेलन के पहले दिन दो जनवरी को महाकाली मंदिर से शहर भर में शोभायात्रा (जुलूस) निकाली जायेगी। तीन जनवरी को पहलवान बाबा दर्गा पर चादर चढ़ाई जायेगी और उसके बाद विभिन्न विषयों पर चर्चा होगी।

कूल्हे की पहचान से होगी कार स्टार्ट

सीट पर कूल्हे के दबाव समेत उसकी माप अगर दर्ज आंकड़ों से मेल नहीं खाएगी, तो कार स्टार्ट नहीं होगी। इस तकनीक से वाहनों की चोरी पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सकेगा।

जापान के एडवांस्ड इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी ने एक ऐसा सीट सिस्टम विकसित किया है जो कूल्हे के जरिए कार के सही ड्राइवर की पहचान सुनिश्चित करेगा। इस नई आइडेंटिफिकेशन टेक्नोलॉजी से वाहनों की चोरी पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाया जा सकेगा। इस प्रक्रिया में न सिर्फ कूल्हे के आकार-प्रकार बल्कि सीट पर पड़ने वाले दबाव के आधार पर पहचान तय होगी।

क्या है तकनीक :

सीट के पिछले हिस्से में प्रेशर सेंसर लगाए गए हैं जो शून्य से 256 के स्केल तक माप लेते हैं। सीट में प्रभावी पहचान सुनिश्चित करने के लिए कुल 360 सेंसर्स का इस्तेमाल किया गया है। ड्राइवर के कूल्हे की माप समेत सीट पर पड़ने वाले दबाव की जानकारी एक लैपटॉप को प्रेषित की जाएगी। इसके आधार पर लैपटॉप सीट पर बैठने वाले शख्स का एक खाका खींचेगा। अगर यह खाका पहले से दर्ज आंकड़ों से मेल खाता है, तो ही कार स्टार्ट होगी।

क्या होगा फायदा :

अभी तक पहचान सुनिश्चित करने के लिए जो तकनीक मसलन आवाज और अंगुलियों के निशान की पहचान की जाती है, उनके साथ छेड़छाड़ संभव है। इसके अलावा इन आइडेंटिफिकेशन टेक्नोलॉजी का सामने वाले पर मनोवैज्ञानिक दबाव भी पड़ता है। लेकिन इस तकनीक के साथ छेड़छाड़ करना संभव नहीं होगा। क्योंकि कूल्हे के दबाव को बदला नहीं जा सकता है।

आगे क्या :

इस टेक्नोलॉजी में एक पेंच यह है कि इंसान के कूल्हे का वजन घटता-बढ़ता रहता है। ऐसे में टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक इस खामी को दूर करने के लिए तकनीक में कुछ संशोधन कर रहे हैं। इसके अलावा इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ऑफिसों में भी हो सकेगा। खासकर ऐसे संस्थानों में जहां राष्ट्रहित या सामाजिक सरोकारों से जुड़े कार्य होते हैं। इस तकनीक के बल पर सूचनाओं को गलत हाथों में पड़ने से रोका जा सकेगा।

प्यारी जिसकी ज़बां वही है मेरा हिन्दुस्तां

India flag


जहाँ हर चीज है प्यारी
सभी चाहत के पुजारी
प्यारी जिसकी ज़बां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

जहाँ ग़ालिब की ग़ज़ल है
वो प्यारा ताज महल है
प्यार का एक निशां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

जहाँ फूलों का बिस्तर है
जहाँ अम्बर की चादर है
नजर तक फैला सागर है
सुहाना हर इक मंजर है
वो झरने और हवाएँ,
सभी मिल जुल कर गायें
प्यार का गीत जहां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

जहां सूरज की थाली है
जहां चंदा की प्याली है
फिजा भी क्या दिलवाली है
कभी होली तो दिवाली है
वो बिंदिया चुनरी पायल
वो साडी मेहंदी काजल
रंगीला है समां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

कही पे नदियाँ बलखाएं
कहीं पे पंछी इतरायें
बसंती झूले लहराएं
जहां अन्गिन्त हैं भाषाएं
सुबह जैसे ही चमकी
बजी मंदिर में घंटी
और मस्जिद में अजां
वही है मेरा हिन्दुस्तां

कहीं गलियों में भंगड़ा है
कही ठेले में रगडा है
हजारों किस्में आमों की
ये चौसा तो वो लंगडा है
लो फिर स्वतंत्र दिवस आया
तिरंगा सबने लहराया
लेकर फिरे यहाँ-वहां
वहीँ है मेरा हिन्दुस्तां :D संकलित

गीता और दैनिक जीवन

गीता में कुछ ऐसे सत्य कहे गए हैं, जो हमारे जीवन का भाग होने चाहिएं.यदि ऐसा हो जाए तो हमारा समाज अनेक त्रुटियों से मुक्त हो जाए.
दान

17-20 'दान देना मेरा धर्म है'-जो दान इस भावना से उचित स्थान में, उचित समय पर, किसी दान लेने योग्य व्यक्ति को दिया जाता है, और उस व्यक्ति से किसी प्रकार की सेवा की आशा नहीं की जाती, ऐसा दान सात्त्वि होता है.

हम दान तो देते हैं परन्तु बिना सोचे समझे.दान देते समय हम ने कभी नहीं सोचा, कि दान लेने वाला दान लेने योग्य भी है या नहीं.बिना सोचे समझे दान देने की इस प्रथा ने हमारे समाज में एक नया वर्ण पैदा कर दिया है जिसे हम भिखारी वर्ण कह सकते हैं.कुछ अंकडे बताते हैं कि इस भिखारी वर्ण की संख्या भारतीय सेना की संख्या से अधिक है.भारतीय सेना तो देश का गौर्व है और यह भिखारी वर्ण देश का कलंक है.

17-21 जो दान किसी सेवा के बदले में या किसी फल की इच्छा से दिया जाता है या जो दु:खी हो कर दिया जाता है, ऐसा दान राजसिक है.

17-22 जो दान बिना सत्कार के, बडी घृणा से, गलत स्थान पर और गलत समय पर किसी(दान लेने के) अयोग्य व्यक्ति को दिया जाता है, वह दान तामसिक है.

अब आप ही अनुमान लगाएं कि आप का दान कैसा है.कृप्या सोचें कि आप का दान सात्त्वि हो.

भोजन

17-8 आयु, सत्त्वगुण, बल, स्वास्थ्य, सुख और आनन्द को बढाने वाले रसदार, चिकने और रुचिकर भोजन सात्त्वि (स्वभाव के) लोगों को अच्छे लगते हैं.

17-9 कडवे, खट्टे, नमकीन, बहुत गरम, तीखे और जलन पैदा करने वाले भोजन, जो दु:ख, शोक, और रोग पैदा करते हैं, वे राजसिक (स्वभाव के) लोगों को अच्छे लगते हैं.

17-10 देर का पडा हुआ, रसहीन, दुर्गन्ध युक्त, बासी, जूठा और गंदा भोजन तामसिक (स्वभाव के) लोगों को अच्छा लगता है.

तप

17-14 देवता, ब्राह्मण, गुरु और ज्ञानी जनों का सत्कार, पवित्रता, छल कपट का अभाव, ब्रह्मचर्य और किसी को दु:ख न देना--इसे शरीर का तप कहते हैं.

17-15 ऐसे शब्द बोलना जो दूसरों को बुरे न लगें, जो सत्य हों, जो प्रिय और हितकर हों, नियमत रूप से शास्त्रों का अध्ययन--इसे वाणि का तप कहते हैं.

17-16 मन की प्रसन्नता, दयालू भाव, मौन व्रत रखना, मन को वश में रखना, और अपने विचारों को शुध्द रखना--यह मन का तप है.

17-17 यदि युक्त मन वाले व्यक्ति, फल की इच्छा किए बिना, पूर्ण श्रध्दा से ये तीन प्रकार(शरीर-वाणी-मन) के तप करते हैं--ऐसे तप सात्त्वि होते हैं.

ये तप हमारे मानसिक सन्तुलन को स्वस्थ रखते हैं. इन से हमारा चरित्र भी बलवान होता है. ऐसी अवस्था में हम समाज के एक लाभदायक सदस्य बनते हैं. हम भी ऊपर उठते हैं और समाज को भी ऊपर उठाते हैं.

17-18 जो तप सत्कार, मान या केवल पूजा के लिए, या केवल दिखावे के

लिए किया जाता है, वह तप राजसिक है.ऐसा तप अस्थाई और अस्थिर होता है अर्थात ऐसे तप का पुण्य देर तक नहीं रहता.

17-19 जो तप मूढता पूर्वक हठ से, अपने आप को कष्ट देकर या दूसरों को हानि पहुंचाने के लिए किया जाता है--वह तामसिक तप कहलाता है.

सुख

18-36 हे भरत श्रेष्ठ! अब मुझ से तीन प्रकार के सुख के विषय में सुन.वह सुख जो मनुष्य बहुत लम्बे अभ्यास द्वारा प्राप्त करता है और जिस से उस के दु:खों का अन्त हो जाता है_

18-37 वह सुख जो पहले तो विष समान होता है, अन्त में अमृत समान हो जाता है, वह सुख जो आत्मज्ञान के फलस्वरूप मिलता है--वह सात्त्वि सुख है.

18-38 जो सुख इंद्रियों और उन के विषयों के मिलाप से मिलता है.जो पहले तो अमृत समान होता है, अन्त में विष समान हो जाता है--वह सुख राजसिक कहलाता है.

18-39 वह सुख जो आरंभ और अन्त में जीव को भ्रम में डाले रखता है. जो निद्रा, आलस्य और प्रमाद से उत्पन्न होता है--वह सुख तामसिक है.

5-22 इंद्रियों के सम्बंध से जो सुख मिलते हैं, वे तो दु:ख को ही जन्म देते

हैं.हे कुन्ती पुत्र! उन का आरंभ भी होता है और उन का अन्त भी

होता है. बुध्दिमान पुरुष इन में आनन्द नहीं मानता.

स्त्री के शुभ गुण

10-34 सर्व भक्षक मृत्यु मैं हूं.भविष्य में होने वाले जीवों का मूल मैं

हूं.नारीयों के गुणों में यश, भाग्य, मीठी वाणी, स्मरण शक्ति, बुध्दि

और क्षमा भाव मैं हूं.

जिस स्त्री में यह छ: गुण हों उस के घर और परिवार में सुख और

शान्ति का राज्य होगा.ये गुण स्त्री को देवी बना देते हैं.ये गुण वे अमूल्य ज़ेवर हैं जिन्हें पहन कर स्त्री एक आदर्श बेटी, एक आदर्श पत्नि, एक आदर्श बहन और एक आदर्श मां बन जाती है.

गीता पाठ और वहम

हिन्दू समाज में यह माना जाता है कि गीता का पाठ मृत्यु के पश्चात घर को शुध्द करने के लिए किया जाए या उस व्यक्ति को गीता सुनाई जाए जो संसार छोड रहा हो. शुभ अवसर पर गीता पाठ शुभ नहीं. शुभ अवसर पर गीता के पाठ को शुभ क्यों नहीं माना जाता, इस विषय में कुछ कहना कठिन है.इस वहम को पैदा करने में क्या पुरोहित वर्ग दोषी है? इस वहम को पैदा करने में पुरोहित वर्ग भले ही दोषी न हो, परन्तु इस वहम को दूर न करने में पुरोहित वर्र्ग दोषी अवश्य है. इस वर्ग की आय के साधन कर्मकांड की क्रियाए हैं. गीता ऐसी क्रियाओं के त्याग का उपदेश देती है.इस अवस्था में यह वर्ग ऐसे ग्रंथ के पाठ का प्रचार क्यों करेगा जो उस की आय के साधनों को ठेस पहुंचाता हो.

शुभ अवसर पर गीता का पाठ न करना केवल एक वहम है और कुछ नहीं. आप सोचें कि यदि एक प्राणि मरते समय गीता के कुछ अक्षर सुन लेने से ही परम गति प्राप्त कर लेता है, तो जिस प्राणि ने सारा जीवन गीता पाठ किया हो वह क्या नहीं प्राप्त कर पाएगा. वह तो भगवान रूप हो कर जीएगा और मृत्यु पश्चात भगवान के साथ एक हो जाएगा.

सुनिए भगवन क्या कहते हैं-

8-7 ्र तू हर समय मेरा ध्यान कर और युध्द कर. अपने मन और बुध्दि से वही कर जो मैं चाहता हूं. नि:संदेह तू मुझे प्राप्त होगा.

18-64 अब तू मेरे परम वचन सुन, जो बहुत ही रहस्यपूर्ण हैं. तू मुझे बहुत प्रिय है इस लिए मैं तुझे बताता हूं कि तेरे लिए क्या हितकर है.


18-65 तू अपना मन मुझ में टिका. मेरी भक्ति कर.मेरी पूजा कर.मुझे ही नमस्कार कर. ऐसा करने से तू मुझे प्राप्त होगा. मैं तुझे सत्य वचन देता हूं क्योंकि तू मुझे अति प्रिय है.

यदि शुभ अवसर पर गीतापाठ शुभ न होता तो भगवान अर्जुन से यह क्यों कहते, 'तू हर समय मेरा ध्यान कर'.

मृत्यु समय और गीता

8-5 मृत्यु के समय जो केवल मेरा ध्यान करते हुए शरीर त्याग कर इस संसार से जाता है, वह मुझे प्राप्त होता है. इस में कोई संशय नहीं .

8-6 हे कुन्ती पुत्र! मृत्यु के समय मनुष्य जिस का ध्यान करते हुए शरीर छोडता है, सदा उसी के ध्यान में मग्न रहने के कारण, वह उसे ही प्राप्त होता है.

8-10जो प्राणि अन्तकाल में निश्चल मन से, भक्ति युक्त हो कर, योगबल से अपने प्राणों को भौहों के मध्य में भली प्रकार टिका लेता है, वह परम दिव्य पुरुष को प्राप्त होता है.

8-12शरीर के सब द्वारों को बंद कर,मन को हृदय में टिका कर, प्राणों को मस्तक में स्थित कर, योग द्वारा एक चित्त हो कर_

8-13जो मनुष्य ब्रह्मरूप अक्षर ॐ का उच्चारण करता है और मेरा ध्यान करते हुए शरीर छोडता है वह परम गति प्राप्त करता है.

क्या गीता पाठ के बिना ऐसा करना संभव है.

भगवान का आदेश

18-64 अब तू मेरे परम वचन सुन, जो बहुत ही रहस्यपूर्ण हैं. तू मुझे बहुत प्रिय है इस लिए मैं तुझे बताता हूं कि तेरे लिए क्या हितकर है.

18-65 तू अपना मन मुझ में टिका. मेरी भक्ति कर. मेरी पूजा कर और मुझे ही नमस्कार कर. ऐसा करने से तू मुझे प्राप्त होगा. मैं तुझे सत्य वचन देता हूं क्योंकि तू मुझे अति प्रिय है.


18-66 सब धर्मों(विश्वासों) को छोड. तू मेरी शरण में आ. तू चिन्ता मत कर. मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूंगा.

18-67 तू मेरे इस उपदेश को किसी ऐसे व्यक्ति से मत कहना, जिस ने न तपस्या की है और न भक्ति की है.या जो इसे सुनना नहीं चाहता.या जो मेरी निन्दा करता है.

गीता प्रचार और गीता पाठ का फल

18-68 जो मेरे परम रहस्यपूर्ण उपदेश को मेरे भक्तों में कहेगा और मुझ में परम भक्ति रखेगा, नि:संदेह वह मुझे प्राप्त होगा.

18-69 जो इस प्रकार मेरी सेवा करता है, मनुष्यों में और कोई उस से अच्छा नहीं. इस संसार में मुझे भी उस से अधिक कोई और प्रिय नहीं.

18-70 जो व्यक्ति हमारे इस पवित्र संवाद का अध्ययन करेगा, मैं समझूं गा कि वह ज्ञानयज्ञ द्वारा मेरी पूजा कर रहा है.

18-71 जो व्यक्ति श्रध्दा से और दोष ढूंढने की दृष्टि से रहित हो कर इस उपदेश को सुनेगा. वह मुक्त हो कर उन शुभ लोकों(स्वर्ग) को प्राप्त होगा, जहां पुण्य आत्माएं निवास करती हैं.भगवान कहते हैं

1 जो इस उपदेश को मेरे भक्तों से कहेगा, वह मुझे प्राप्त होगा.

2 जो इस पवित्र संवाद का अध्ययन करेगा, मैं समझूंगा कि वह ज्ञानयज्ञ

द्वारा मेरी पूजा कर रहा है.

3 जो व्यक्ति श्रध्दा से इस उपदेश को सुनेगा वह स्वर्ग प्राप्त करेगा.

क्या यह गीता पाठ के बिना हो सकता है.हम एक मिथ्या वहम का शिकार हो कर भगवान के आदेश का उलंघन कर रहे हैं. हमारे समाज की दुर्दशा का यही मूल कारण है.यही वहम हमें अंधकार से प्रकाश की ओर जाने नहीं देता.इसी कारण आज हिन्दू समाज में अंधविश्वास का राज्य है.

आज हम कितने देवी देवताओं की पूजा करते हैं.हमारे मन्दिर भगवान के पूजा स्थान कम हैं, भगवान के विभूति स्थान अधिक हैं.बच्चे यह नहीं समझ पाते कि इनमें भगवान कौन है. आप कह सकते हैं कि ये सब भगवान के ही भिन्न भिन्न रूप हैं.

जब भगवान एक है,तो केवल भगवान की ही पूजा होनी चाहिए .भगवान की पूजा में ही उसके भिन्न भिन्न रूपों की पूजा है.

क्या हमें मनुष्य से प्यार करना चाहिए या उस की परशाईं से .

गीता का आदेश भी यही है

9-23 जो भक्त श्रध्दा से दूसरे देवताओं की पूजा करते हैं, वे भी मेरी ही पूजा करते हैं. परन्तु उन की पूजा विधि अनुसार नहीं.

हमें अपनी पूजा को विधि अनुसार बनाने के लिए भगवान के आदेश को मानना होगा.

भगवान के आदेश को फिर सुनिए और याद रखिए

18-66 तू सब धर्मों(विश्वासों) को छोड. तू मेरी शरण में आ. तू चिन्ता मत कर. मैंं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूंगा.

18-65 तू अपना मन मुझ में टिका. मेरी भक्ति कर. मेंरी पूजा कर.मुझे ही नमस्कार कर. ऐसा करने से तू मुझे प्राप्त होगा. मैं तुझे सत्य वचन देता हूं, क्योंकि तू मुझे अति प्रिय है.

नोट:- अपने सगुण रूप में भगवान कृष्ण ही परम ब्रह्म हैं.भगवान कहते हैं-

14-27 मैं उस ब्रह्म का स्वरूप हूं जो अमर है, अविनाशी है, शाश्वत धर्म और परमानन्द है.

ॐ तॅत सॅत
अर्जुन की
प्रार्थना

गीता के ग्यारहवें अध्याय में अर्जुन ने बहुत ही सुंदर शब्दों में भगवान की स्तुति की है.

अध्याय 11 शलोक 36-42

इस प्रार्थना को हमें प्रतिदिन प्रात: और सायं कहना चाहिए.

हे हृषिकेश.यह तो उचिता ही है कि संसार आप के कीर्तन से हर्षित होता है और आनन्द मानता है.राक्षस डर कर इधर उधर भागते हैं और सिध्द जनों के समूह आप को प्रणाम करते हैं.हे महात्मा.वे आप को प्रणाम क्यों न करें, आप तो ब्रह्मा जी से भी महान हैं.आप आदि स्रष्टा हैं.हे अनन्त, हे देवों के देव, हे जगताधार.आप सत हैं और आप ही असत हैं.इन से परे आप ही अक्षर ब्रह्म हैं.

आप आदि देव हैं और सनातन पुरुष हैं.आप इस विश्व के परम आश्रय हैं.आप ज्ञाता हैं और आप ही ज्ञेय हैं.आप ही परम लक्षय हैं. हे अनन्तरूप.आप से ही यह विश्व व्याप्त है.आप वायु हैं, यमराज हैं और अग्नि हैं.आप समुद्र देव और चंद्रमा हैं.आप ही प्रजपति हैं. आप ही संसार के पितामह हैं.

आप को हजार बार प्रणाम, आप को बार बार प्रणाम.

आप को सामने से प्रणाम, आप को पीछे से प्रणाम.

आप को सब ओर से प्रणाम.

आप के बल का अन्त नहीं.आप की शक्ति अपार है.आप ही सब ओर व्याप्त हैं.इस लिए आप ही सर्व हैं.आप इस चराचर जगत के पिता हैं.यदि किसी की पूजा की जाए वह आप हैं.आप गुरुओं के गुरु हैं.हे अनुभव प्रभाव वाले.जब तीन लोकों आप के समान ही कोई नहीं, तो फिर आप से महान कौन होगा.

हे भगवन.अपने शरीर को आप के चरणों में झुका कर मैं आप को प्रणाम करता हूं और आप से प्रार्थना करता हूं कि आप मुझे ऐसा ही समझें जैसे पिता अपने पुत्र को, मित्र अपने मित्र को और प्रेमी अपनी प्रेमिका को समझता है.

अमीर खुसरो - जीवन कथा और कविताऐं

गोरी सोवे सेज पर मुख पर डारे केस
चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुँ देस

खडी बोली हिन्दी के प्रथम कवि अमीर खुसरो एक सूफीयाना कवि थे और ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के मुरीद थेइनका जन्म ईस्वी सन् 1253 में हुआ थाइनके जन्म से पूर्व इनके पिता तुर्क में लाचीन कबीले के सरदार थेमुगलों के जुल्म से घबरा कर इनके पिता अमीर सैफुद्दीन मुहम्मद हिन्दुस्तान भाग आए थे और उत्तरप्रदेश के ऐटा जिले के पटियाली नामक गांव में जा बसेइत्तफाकन इनका सम्पर्क सुल्तान शमसुद्दीन अल्तमश के दरबार से हुआ, उनके साहस और सूझ-बूझ से ये सरदार बन गए और वहीं एक नवाब की बेटी से शादी हो गई और तीन बेटे पैदा हुए उनमें बीच वाले अबुल हसन ही अमीर खुसरो थेइनके पिता खुद तो खास पढे न थे पर उन्होंने इनमें ऐसा कुछ देखा कि इनके पढने का उम्दा इंतजाम किया एक दिन वे इन्हें ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के पास ले गए जो कि उन दिनों के जाने माने सूफी संत थेतब इनके बालमन ने उत्सुकता वश जानना चाहा कि वे यहाँ क्यों लाए गए हैं? तब पिता ने कहा कि तुम इनके मुरीद बनोगे और यहीं अपनी तालीम हासिल करोगे

उन्होंने पूछा - मुरीद क्या होता है?

उत्तर मिला - मुरीद होता है, इरादा करने वाला
ज्ञान प्राप्त करने का इरादा करने वाला

बालक अबुल हसन ने मना कर दिया कि उसे नहीं बनना किसीका मुरीद और वे दरवाजे पर ही बैठ गए, उनके पिता अन्दर चले गएबैठे-बैठे इन्होंने सोचा कि ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया अगर ऐसे ही पहुँचे हुए हैं तो वे अन्दर
बैठे-बैठे ही मेरी बात समझ जाएंगे, जो मैं सोच रहा
हूँ।

और उन्होंने मन ही मन संत से पूछा कि मैं अन्दर आऊं या बाहर से ही लौट जाऊं?

तभी अन्दर से औलिया का सेवक हाजिर हुआ और उसने इनसे कहा कि -

'ख्वाजा साहब ने कहलवाया है कि जो तुम अपने दिल में मुझसे पूछ रहे हो, वह मैं ने जान लिया है, और उसका जवाब यह है कि अगर तुम सच्चाई की खोज करने का इरादा लेकर आए हो तो अन्दर आ जाओ। लेकिन अगर तुम्हारे मन में सच्चाई की जानकारी हासिल करने की तमन्ना नहीं है तो जिस रास्ते से आए हो वापस चले जाओ।

फिर क्या था वे जा लिपटे अपने ख्वाजा के कदमों सेतब से इन पर काव्य और गीत-संगीत का नशा सा तारी हो गया और इन्होंने ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया को अपना प्रिय मान अनेकों गज़लें और शेर कहेकई दरबारों में अपनी प्रतिभा का सिक्का जमाया और राज्य कवि बनेपर इनका मन तो ख्वाजा में रमता था और ये भटकते थे उस सत्य की खोज में जिसकी राह दिखाई थी ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया ने

एक बार की बात हैतब खुसरो गयासुद्दीन तुगलक के दिल्ली दरबार में दरबारी थेतुगलक खुसरो को तो चाहता था मगर हजरत निजामुद्दीन के नाम तक से चिढता थाखुसरो को तुगलक की यही बात नागवार गुजरती थीमगर वह क्या कर सकता था, बादशाह का मिजाजबादशाह एक बार कहीं बाहर से दिल्ली लौट रहा था तभी चिढक़र उसने खुसरो से कहा कि हजरत निजामुद्दीन को पहले ही आगे जा कर यह संदेस दे दे कि बादशाह के दिल्ली पहुँचने से पहले ही वे दिल्ली छोड क़र चले जाएं

खुसरो को बडी तकलीफ हुई, पर अपने सन्त को यह संदेस कहा और पूछा अब क्या होगा?

'' कुछ नहीं खुसरो! तुम घबराओ मत। हनूज दिल्ली दूरअस्त - यानि अभी बहुत दिल्ली दूर है।

सचमुच बादशाह के लिये दिल्ली बहुत दूर हो गईरास्ते में ही एक पडाव के समय वह जिस खेमे में ठहरा था, भयंकर अंधड से वह टूट कर गिर गया और फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई

तभी से यह कहावत अभी दिल्ली दूर है पहले खुसरो की शायरी में आई फिर हिन्दी में प्रचलित हो गई

छह वर्ष तक ये जलालुद्दीन खिलजी और उसके पुत्र अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में भी रहे ये तब भी अलाउद्दीन खिलजी के करीब थे जब उसने चित्तौड ग़ढ क़े राजा रत्नसेन की पत्नी पद्मिनी को हासिल करने की ठान ली थीतब ये उसके दरबार के खुसरु-ए-शायरा के खिताब से सुशोभित थेइन्होंने पद्मिनी को बल के जोर पर हासिल करने के प्रति अलाउद्दीन खिलजी का नजरिया बदलने की कोशिश की यह कह कर कि ऐसा करने से असली खुशी नहीं हासिल होगी, स्त्री हृदय पर शासन स्नेह से ही किया जा सकता है, वह सच्ची राजपूतानी जान दे देगी और आप उसे हासिल नहीं कर सकेंगेऔर अलाउद्दीन खिलजी ने खुसरो की बात मान ली कि हम युध्द से उसे पाने का इरादा तो तर्क करते हैं लेकिन जिसके हुस्न के चर्चे पूरे हिन्द में हैं, उसका दीदार तो करना ही चाहेंगे

तब स्वयं खुसरो पद्मिनी से मिलेशायर खुसरो के काव्य से परिचित पद्मिनी उनसे बिना परदे के मिलीं और उनका सम्मान कियारानी का हुस्न देख स्वयं खुसरो दंग रह गएफिर उन्होंने रानी को अलाउद्दीन खिलजी के बदले इरादे से वाकिफ कराया कि आप अगर युध्द टालना चाहें तो एक बार उन्हें स्वयं को देख भर लेने देंइस पर रानी का जवाब नकारात्मक था कि इससे भी उनकी आत्मा का अपमान होगाइस पर अनेकानेक तर्कों और राजपूतों की टूटती शक्ति और युध्द की संभावना के आपत्तिकाल में पडी रानी ने अप्रत्यक्षत: अपना चेहरा दर्पण के आगे ऐसे कोण पर बैठ कर अलाउद्दीन खिलजी को दिखाना मंजूर किया कि वह दूर दूसरे महल में बैठ कर मात्र प्रतिबिम्ब देख सकेकिन्तु कुछ समय बाद जब अलाउद्दीन खिलजी ने उनका अक्स आईने में देखा तो बस देखता ही रह गया, भूल गया अपने फैसले को, और पद्मिनी के हुस्न का जादू उसके सर चढ ग़या, इसी जुनून में वह उसे पाने के लिये बल प्रयोग कर बैठा और पद्मिनी ने उसके नापक इरादों को भांप उसके महल तक पहुँचने से पहले ही जौहर कर लिया था

इस घटना का गहरा असर अमीर खुसरो के मन पर पडाऔर वे हिन्द की संस्कृति से और अधिक जुड ग़एऔर उन्होंने माना कि अगर हम तुर्कों को हिन्द में रहना ही तो पहले हमें हिन्दवासियों के दिल में रहना होगा और इसके लिये पहली जरूरत है कि हम हिन्दवी सीखें हिन्दवी किसी तरह से अरबी-फारसी के मुकाबले कमतर नहींदिल्ली के आस-पास बोली जाने वाली भाषा को ' हिन्दवी नाम सबसे पहले खुसरो ने ही दिया थायही शब्द बाद में हिन्दी बना और यही तुर्की कवि हिन्दी का पहला कवि बना

ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया हर रोज ईशा की नमाज के बाद एकान्तसाधना में तल्लीन हो जाया करते थेऔर इस एकान्त में विघ्न डालने की अनुमति किसी शिष्य को न थी सिवाय खुसरो केऔलिया इन्हें जी जान से चाहते थेवे कहते - मैं और सब से ऊब सकता हूँ , हाँ तक कि अपने आप से भी उकता जाता हूँ कभी-कभी लेकिन खुसरो से नहीं उकता सकता कभीऔर यह भी कहा करते थे कि तुम खुदा से दुआ मांगो कि मेरी उम्र लम्बी हो, क्योंकि मेरी जिंदगी से ही तेरी जिन्दगी जुडी हैमेरे बाद तू ज्यादा दिन नहीं जी सकेगा, यह मैं अभी से जान गया हूँ खुसरो, मुझे अपनी लम्बी उम्र की ख्वाहिश नहीं लेकिन मैं चाहता हूँ तू अभी और जिन्दा रह और अपनी शायरी से जहां महका

और हुआ भी यही, अमीर खुसरो किसी काम से दिल्ली से बाहर कहीं गए हुए थे वहीं उन्हें अपने ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के निधन का समाचार मिलासमाचार क्या था खुसरो की दुनिया लुटने की खबर थीवे सन्नीपात की अवस्था में दिल्ली पहुँचे , धूल-धूसरित खानकाह के द्वार पर खडे हो गए और साहस न कर सके अपने पीर की मृत देह को देखने काआखिरकार जब उन्होंने शाम के ढलते समय पर उनकी मृत देह देखी तो उनके पैरों पर सर पटक-पटक कर मूर्छित हो गएऔर उसी बेसुध हाल में उनके होंठों से निकला,

गोरी सोवे सेज पर मुख पर डारे केस
चल खुसरो घर आपने सांझ भई चहुं देस
।।

अपने प्रिय के वियोग में खुसरो ने संसार के मोहजाल काट फेंकेधन-सम्पत्ति दान कर, काले वस्त्र धारण कर अपने पीर की समाधि पर जा बैठे - कभी न उठने का दृढ निश्चय करके और वहीं बैठ कर प्राण विसर्जन करने लगेकुछ दिन बाद ही पूरी तरह विसर्जित होकर खुसरो के प्राण अपने प्रिय से जा मिलेपीर की वसीयत के अनुसार अमीर खुसरो की समाधि भी अपने प्रिय की समाधि के पास ही बना दी गई

आज तक दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन की समाधि के पास बनी अमीर खुसरो की समाधि मौजूद है हर बरस यहाँ उर्स मनाया जाता है हर उर्स का आरंभ खुसरो के इसी अंतिम दोहे से किया जाता है - गोरी सोवे सेज पर

अमीर खुसरो की 99 पुस्तकों का उल्लेख मिलता है, किन्तु 22 ही अब उपलब्ध हैं हिन्दी में खुसरो की तीन रचनाएं मानी जाती हैं, किन्तु इन तीनों में केवल एक खालिकबारी उपलब्ध हैइसके अतिरिक्त खुसरो की फुटकर रचनाएं भी संकलित है, जिनमें पहेलियां, मुकरियां, गीत, निस्बतें और अनमेलियां हैंये सामग्री भी लिखित में कम उपलब्ध थीं, वाचक रूप में इधर-उधर फैली थीं, जिसे नागरी प्रचारिणी सभा ने खुसरो की हिन्दी कविता नामक छोटी पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया था

खुसरो के गीत

बहोत रही बाबुल घर दुल्हन, चल तोरे पी ने बुलाई
बहोत खेल खेली सखियन से, अन्त करी लरिकाई

बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सगरे लोग लुगाई

चार कहार मिल डोलिया उठाई, संग परोहत और भाई

चले ही बनेगी होत क
हाँ है, नैनन नीर बहाई
अन्त बिदा हो चलि है दुल्हिन, काहू कि कछु न बने आई

मौज-खुसी सब देखत रह गए, मात पिता और भाई

मोरी कौन संग लगन धराई, धन-धन तेरि है खुदाई

बिन मांगे मेरी मंगनी जो कीन्ही, नेह की मिसरी खिलाई

एक के नाम कर दीनी सजनी, पर घर की जो ठहराई

गुण नहीं एक औगुन बहोतेरे, कैसे नोशा रिझाई

खुसरो चले ससुरारी सजनी, संग कोई नहीं आई

यह सूफी कविता मृत्यु के बाद ईश्वर रूपी नौशे से मिलन के दर्शन को दर्शाती है

बहुत कठिन है डगर पनघट की
कैसे मैं भर लाऊं मधवा से मटकी
मेरे अच्छे निजाम पिया

पनिया भरन को मैं जो गई थी
छीन-झपट मोरी मटकी पटकी
बहुत कठिन है डगर पनघट की

खुसरो निजाम के बल-बल जाइए
लाज राखी मेरे घूंघट पट की
कैसे मैं भर लाऊं मधवा से मटकी
बहुत कठिन है डगर पनघट की

इस कविता में त्यागमय जीवन की कठिनाईयों का उल्लेख हैइन कठिनाईयों से उबार इनके पीर निजाम ने ही उनकी लाज रख ली है

होली

दैया री मोहे भिजोया री
शाह निजाम के रंग में
कपडे रंग के कुछ न होत है,
या रंग मैंने मन को डुबोया री
दैया री मोहे भिजोया री

आज भी हिन्दी के कई लोकगीत और हिन्दी की कई बूझ और बिनबूझ पहेलियाँ, मुकरियां हैं जो हमें अमीर खुसरो की देन हैंहाँ कुछ प्रस्तुत हैं

बूझ पहेलियाँ - इन पहेलियों में ही वह उत्तर छिपा होता है

खडा भी लोटा पडा भी लोटा
है बैठा पर कहें हैं लोटा
खुसरो कहें समझ का टोटा
( लोटा)

बीसों का सर काट लिया
ना मारा ना खून किया
( नाखून )

बिनबूझ पहेलियाँ

एक थाल मोती से भरा
सबके सर पर औंधा धरा
चारों ओर वह थाली फिरे
मोती उससे एक न गिरे

( आकाश )

एक नार ने अचरज किया
सांप मार पिंजरे में दिया
ज्यों-ज्यों
साँप ताल को खाए
ताल सूख सांप मर जाए
( दिया-बाती)

मुकरियां

पडी थी मैं अचानक चढ यो
जब उतरयो पसीनो आयो
।।
सहम गई नहिं सकी पुकार

ऐ सखि साजन ना सखि बुखार
।।

राह चलत मोरा अंचरा गहे
मेरी सुने न अपनी कहे
ना कुछ मोसे झगडा-टंटा
ऐ सखि साजन ना सखि कांटा

ऐसी हज़ारों पहेलियाँ, मुकरियां, गीत आदि खुसरो हमें विरासत में देकर गए हैं, जिनसे उनकी हिंदवी हिन्दी आज भी समृध्द है

- मनीषा कुलश्रेष्ठ

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