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08 मई 2013

हिंदी ब्लोगिंग में लक्ष्य हुआ पार, मेरी पोस्टें हुई दस हजार

दोस्तों! हिंदी ब्लोगिंग में मेरा लक्ष्य हुआ पार, मेरी पोस्टें हुई दस हजार. मेरे बुजुर्गों, मेरे दोस्तों,मेरे हमदर्दों, मेरे आलोचकों और मेरे समालोचको आज आपके आशीर्वाद से मैंने हिंदी ब्लोगिंग की दुनिया में दस हजार हिंदी पोस्टें लिखने का रिकोर्ट बना लिया है.
                    मुझे याद आता है सात मार्च का वो दिन जब मैंने अपने इंजीनियरिंग कर रहे बेटे शाहरूख खान से अपना हिंदी ब्लॉग आपका अख्तर खान अकेला बनवाया था. जिसका लिंक यह www.akhtarkhanakela.blogspot.in है और इसी दिन मैंने अपनी पहली पोस्ट अपने परिचय के रूप में अंग्रेजी लिपि में लिखी थी. मुझे हिंदी टाईप नहीं आती और ना मुझे कम्प्यूटर का संचालन ही आता था. लेकिन पत्रकार और वकील होने के नाते अपने जज्बातों को मैं ब्लोगिंग की दुनिया में उतारना चाहता था. मैंने इसके लिए हिंदी टाइपिंग सिखने का प्रयास किया. लेकिन वकालात और सामाजिक कार्यों के साथ-साथ पारिवारिक मसरूफियत के कारण में हिंदी टाईप सीख नहीं पा रहा था और विचारों को लिखने के लिए दिल मचल रहा था. लिहाज़ा मुझे ट्रांसलिट्रेशन पर लिखने का सुझाव मेरे बेटे शाहरुख ने दिया और तब से मैंने ट्रांसलिट्रेशन पर अंग्रेजी में टाईप कर हिंदी कन्वर्जन में लिखना शुरू किया. उसके बाद तो फिर मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
मेरे साथियों मैंने कोशिश की है कि अपने विचारों को मैं इमानदारी से निष्पक्षता से अपने साथियों के साथ बाँट सकूं.मुझे ब्लोगिंग की तकनीकी समझ नहीं थी और अभी भी इतनी नहीं है. आज भी लिखने में पीछे हूँ लेकिन मैंने अपने दोस्तों से सहयोग लेकर ही आगे बढ़ा हूँ. मुझे हिंदी ब्लोगर ललित शर्मा , डाक्टर अनवर जमाल, एडवोकेट दिनेश राय द्विवेदी, एस मासूम, रमेश कुमार जैन उर्फ निर्भीक सहित दर्जनों साथियों और बहनों ने हौसला दिया और सीख दी. मेरी गलतियों को सुधारा, मेरे ब्लॉग को सजाया संवारा .मुझे फोटो डालना, ट्विटर के खाते पर लिखना सिखाया. फिर फेसबुक की दुनिया ने तो सोशल साईट पर मुझे आम कर दिया.
             मैं लिखता रहा और निरंतर लिखता गया. बीमारी ..पारिवारिक व्यस्तता ....कोटा से बाहर रहने का वक्त...इंटरनेट ..कम्प्यूटर में तकनीकी खराबियों के दिन अगर निकल दे तब सात मार्च दो हजार दस से आज तक इस हिंदी लेखन ब्लोगिंग में सौ दिन कम हो जाते है और अपनी शादी की सालगिरह के दिन दस मार्च मैंने  हिंदी में पोस्टें लिखना शुरू कीं. मैंने सन 2010 में 1811, 2011 में 3861, 2012 में 2900 और 2013 में बाकी पोस्टें लिखकर आज का दिन विजय दिवस के रूप में मना लिया है. मेरी कोशिश थी कि मैं जल्दी ही दस हजार पोस्टें लिखने का लक्ष्य पूरा करूँ ....मैं आभारी हूँ मेरे सभी आलोचकों का जिन्होंने वक्त-बा-वक्त मेरे कान उमेठ कर मुझे इस लेखन क्षेत्र में भटकने से बचाया और सही रास्ता दिखाया ..मैं आभारी हूँ उन लोगों का जिन्होंने मुझे ऊँगली पकड़ कर इस हिंदी ब्लोगिंग के नामुमकिन लक्ष्य को निर्धारित वक्त से पहले पूरा करने का हौसला दिया. दोस्तों मैंने लेख ..आलेख ..कविताएँ ..शायरी तो लिखी ही साथ में कुरान का संदेश हिंदी अनुवाद के रूप में अपने साथियों तक पहुंचाया. मैंने भगवत गीता का पाठ भी अपने साथियों को पढाया है
                    इसके साथ ही त्योहारों, देश के हालातों, सियासत पर लिखी पोस्ट पर मेरी जमकर आलोचना भी हुई. तब किसी ने मुझे मुसलमान लेखक समझकर मेरी आलोचना की तो किसी ने मुझे साहसी बताया और किसी ने मुझे साम्प्रदायिक भी करार दिया.किसी ने मुझे कोंग्रेस तो किसी ने भाजपा का और किसी ने कोमरेड विचारधारा का बताया.कई बार तो मेरे आलोचक जिन्होंने कुरान शरीफ तर्जुमे से नहीं पढ़ा है उन्होंने ने भी मेरी लेखनी पर आपत्ति जताई. कुछ हिन्दू भाइयों ने भी मुझे आईना दिखाने की कोशिश की.मगर फिर भी मुझे इस हिंदी ब्लोगिंग और ट्विटर की दुनिया में मेरे साथियों का बेहिसाब प्यार मिला है.उससे भी ज्यादा प्यार मुझे सोशल साईट फेसबुक पर मिला है.कई लोग मेरी पोस्ट फायरिंग स्टाइल से खुश भी थे और कई लोग वो पिछड़ न जाए इस डर से आहत भी थे. दोस्तों मैंने आपके आशीर्वाद, .आपके मार्गदर्शन और दुआओं से हिंदी ब्लोगिंग का अपना लक्ष्य पूरा किया है.मैं जानता हूँ कुछ लोग मुझे से खुश है और कई लोग मुझ से नाखुश है.लेकिन मैं उनका भी आभारी हूँ और मुझे उनकी आलोचनाओं का इसीलिए इंतजार है कहीं द्वेष भावना में भटक न जाऊं.  यदि अगर भटक जाऊं तब भी रास्ते पर आ जाऊं.
                      मैं शुक्रगुज़ार हूँ मेरी शरीके हयात का. जिसने मुझे हौंसला  दिया और ऐसे हालत दिए कि मैं यह सब कर सका.मैं शुक्रगुज़ार हूँ मेरे पत्रकार साथियों का और मेरे अदालत के वकील साथियों का जिन्होंने मुझे प्यार से नवाज़ा. खासकर पत्रकार के. डी. अब्बासी का भी आभारी हूँ और मेरी एक अनजान खुबसूरत मासूम सी महिला मित्र का भी आभारी हूँ. जिसने मुझे पुराने वक्त से निकाल कर नये अंदाज़ में लाकर खड़ा किया और नया लिखने का हौंसला दिया.मुझे मेरे साथियों के प्यार, आलोचना और समालोचना का उचित मार्गदर्शन के लिए हमेशा इंतजार था, इंतजार है और इंतजार रहेगा. एक बार फिर मेरे सभी साथियों का बहुत-बहुत शुक्रिया!                 -एडवोकेट अख्तरखान अकेला, कोटा-राजस्थान (M-9829086339)

हिंदी ब्लोगिंग में लक्ष्य हुआ पार, मेरी पोस्टें हुई दस हजार

दोस्तों! हिंदी ब्लोगिंग में मेरा लक्ष्य हुआ पार, मेरी पोस्टें हुई दस हजार. मेरे बुजुर्गों, मेरे दोस्तों,मेरे हमदर्दों, मेरे आलोचकों और मेरे समालोचको आज आपके आशीर्वाद से मैंने हिंदी ब्लोगिंग की दुनिया में दस हजार हिंदी पोस्टें लिखने का रिकोर्ट बना लिया है.
                    मुझे याद आता है सात मार्च का वो दिन जब मैंने अपने इंजीनियरिंग कर रहे बेटे शाहरूख खान से अपना हिंदी ब्लॉग आपका अख्तर खान अकेला बनवाया था. जिसका लिंक यह www.akhtarkhanakela.blogspot.in है और इसी दिन मैंने अपनी पहली पोस्ट अपने परिचय के रूप में अंग्रेजी लिपि में लिखी थी. मुझे हिंदी टाईप नहीं आती और ना मुझे कम्प्यूटर का संचालन ही आता था. लेकिन पत्रकार और वकील होने के नाते अपने जज्बातों को मैं ब्लोगिंग की दुनिया में उतारना चाहता था. मैंने इसके लिए हिंदी टाइपिंग सिखने का प्रयास किया. लेकिन वकालात और सामाजिक कार्यों के साथ-साथ पारिवारिक मसरूफियत के कारण में हिंदी टाईप सीख नहीं पा रहा था और विचारों को लिखने के लिए दिल मचल रहा था. लिहाज़ा मुझे ट्रांसलिट्रेशन पर लिखने का सुझाव मेरे बेटे शाहरुख ने दिया और तब से मैंने ट्रांसलिट्रेशन पर अंग्रेजी में टाईप कर हिंदी कन्वर्जन में लिखना शुरू किया. उसके बाद तो फिर मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
मेरे साथियों मैंने कोशिश की है कि अपने विचारों को मैं इमानदारी से निष्पक्षता से अपने साथियों के साथ बाँट सकूं.मुझे ब्लोगिंग की तकनीकी समझ नहीं थी और अभी भी इतनी नहीं है. आज भी लिखने में पीछे हूँ लेकिन मैंने अपने दोस्तों से सहयोग लेकर ही आगे बढ़ा हूँ. मुझे हिंदी ब्लोगर ललित शर्मा , डाक्टर अनवर जमाल, एडवोकेट दिनेश राय द्विवेदी, एस मासूम, रमेश कुमार जैन उर्फ निर्भीक सहित दर्जनों साथियों और बहनों ने हौसला दिया और सीख दी. मेरी गलतियों को सुधारा, मेरे ब्लॉग को सजाया संवारा .मुझे फोटो डालना, ट्विटर के खाते पर लिखना सिखाया. फिर फेसबुक की दुनिया ने तो सोशल साईट पर मुझे आम कर दिया.
             मैं लिखता रहा और निरंतर लिखता गया. बीमारी ..पारिवारिक व्यस्तता ....कोटा से बाहर रहने का वक्त...इंटरनेट ..कम्प्यूटर में तकनीकी खराबियों के दिन अगर निकल दे तब सात मार्च दो हजार दस से आज तक इस हिंदी लेखन ब्लोगिंग में सौ दिन कम हो जाते है और अपनी शादी की सालगिरह के दिन दस मार्च मैंने  हिंदी में पोस्टें लिखना शुरू कीं. मैंने सन 2010 में 1811, 2011 में 3861, 2012 में 2900 और 2013 में बाकी पोस्टें लिखकर आज का दिन विजय दिवस के रूप में मना लिया है. मेरी कोशिश थी कि मैं जल्दी ही दस हजार पोस्टें लिखने का लक्ष्य पूरा करूँ ....मैं आभारी हूँ मेरे सभी आलोचकों का जिन्होंने वक्त-बा-वक्त मेरे कान उमेठ कर मुझे इस लेखन क्षेत्र में भटकने से बचाया और सही रास्ता दिखाया ..मैं आभारी हूँ उन लोगों का जिन्होंने मुझे ऊँगली पकड़ कर इस हिंदी ब्लोगिंग के नामुमकिन लक्ष्य को निर्धारित वक्त से पहले पूरा करने का हौसला दिया. दोस्तों मैंने लेख ..आलेख ..कविताएँ ..शायरी तो लिखी ही साथ में कुरान का संदेश हिंदी अनुवाद के रूप में अपने साथियों तक पहुंचाया. मैंने भगवत गीता का पाठ भी अपने साथियों को पढाया है
                    इसके साथ ही त्योहारों, देश के हालातों, सियासत पर लिखी पोस्ट पर मेरी जमकर आलोचना भी हुई. तब किसी ने मुझे मुसलमान लेखक समझकर मेरी आलोचना की तो किसी ने मुझे साहसी बताया और किसी ने मुझे साम्प्रदायिक भी करार दिया.किसी ने मुझे कोंग्रेस तो किसी ने भाजपा का और किसी ने कोमरेड विचारधारा का बताया.कई बार तो मेरे आलोचक जिन्होंने कुरान शरीफ तर्जुमे से नहीं पढ़ा है उन्होंने ने भी मेरी लेखनी पर आपत्ति जताई. कुछ हिन्दू भाइयों ने भी मुझे आईना दिखाने की कोशिश की.मगर फिर भी मुझे इस हिंदी ब्लोगिंग और ट्विटर की दुनिया में मेरे साथियों का बेहिसाब प्यार मिला है.उससे भी ज्यादा प्यार मुझे सोशल साईट फेसबुक पर मिला है.कई लोग मेरी पोस्ट फायरिंग स्टाइल से खुश भी थे और कई लोग वो पिछड़ न जाए इस डर से आहत भी थे. दोस्तों मैंने आपके आशीर्वाद, .आपके मार्गदर्शन और दुआओं से हिंदी ब्लोगिंग का अपना लक्ष्य पूरा किया है.मैं जानता हूँ कुछ लोग मुझे से खुश है और कई लोग मुझ से नाखुश है.लेकिन मैं उनका भी आभारी हूँ और मुझे उनकी आलोचनाओं का इसीलिए इंतजार है कहीं द्वेष भावना में भटक न जाऊं.  यदि अगर भटक जाऊं तब भी रास्ते पर आ जाऊं.
                      मैं शुक्रगुज़ार हूँ मेरी शरीके हयात का. जिसने मुझे हौंसला  दिया और ऐसे हालत दिए कि मैं यह सब कर सका.मैं शुक्रगुज़ार हूँ मेरे पत्रकार साथियों का और मेरे अदालत के वकील साथियों का जिन्होंने मुझे प्यार से नवाज़ा. खासकर पत्रकार के. डी. अब्बासी का भी आभारी हूँ और मेरी एक अनजान खुबसूरत मासूम सी महिला मित्र का भी आभारी हूँ. जिसने मुझे पुराने वक्त से निकाल कर नये अंदाज़ में लाकर खड़ा किया और नया लिखने का हौंसला दिया.मुझे मेरे साथियों के प्यार, आलोचना और समालोचना का उचित मार्गदर्शन के लिए हमेशा इंतजार था, इंतजार है और इंतजार रहेगा. एक बार फिर मेरे सभी साथियों का बहुत-बहुत शुक्रिया!                 -एडवोकेट अख्तरखान अकेला, कोटा-राजस्थान (M-9829086339)

09 जुलाई 2012

खुद मिटा देंगे लेकिन "जन लोकपाल बिल" लेकर रहेंगे

दोस्तों ! आखिरकार टीम अन्ना को जंतर-मंतर पर अनशन करने की अनुमति मिल गई है। मिली जानकारी के मुताबिक, शनिवार को टीम अन्ना को 25 जुलाई से 8 अगस्त तक दिल्ली के जंतर-मंतर पर अनशन करने के लिए दिल्ली पुलिस की इजाजत मिल गई है । गौरतलब है कि दो दिन पहले दिल्ली पुलिस ने मानसून सेशन के हवाला देते हुए टीम अन्ना को अनुमति देने से मना कर दिया था। टीम अन्ना के अहम अरविंद केजरीवाल के अनुसार दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से शनिवार को मुलाकात के बाद यह परमिशन दी गई है। वहीं दिल्ली पुलिस का कहना है कि कुछ शर्तों के साथ टीम अन्ना को यह अनुमति दी गई है । 
दोस्तों ! आप यह मत सोचो कि- देश ने हमारे लिए क्या किया है, बल्कि यह सोचो हमने देश के लिए क्या किया है ? इस बार आप यह सोचकर "आर-पार" की लड़ाई के लिए श्री अन्ना हजारे जी के अनशन में शामिल (अपनी-अपनी योग्यता और सुविधानुसार) हो. वरना वो दिन दूर नहीं. जब हम और हमारी पीढियां कीड़े-मकोड़ों की तरह से रेंग-रेंगकर मरेगी. आज हमारे देश को भ्रष्टाचार ने खोखला कर दिया है. माना आज हम बहुत कमजोर है, लेकिन "एकजुट" होकर लड़ो तब कोई हम सबसे ज्यादा ताकतवर नहीं है. 
 इतिहास गवाह रहा कि जब जब जनता ने एकजुट होकर अपने अधिकारों को लेने के लिए लड़ाई (मांग) की है, तब तब उसको सफलता मिली है. लड़ो और आखिरी दम तक लड़ों. यह मेरी-तुम्हारी लड़ाई नहीं है. हम सब की लड़ाई है. मौत आज भी आनी है और मौत कल भी आनी है. मौत से मत डरो. मौत एक सच्चाई है. इसको दिल से स्वीकार करो.  
 पूरा आलेख यहाँ सिरफिरा-आजाद पंछी: लड़ो और आखिरी दम तक लड़ों क्लिक करके पढ़ें.
अगर हम अपना-अपना राग और अपनी अपनी डपली बजाते रहे तो हमें कभी कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून नहीं मिलेगा. अब यह तुम्हारे ऊपर है कि गीदड़ की मौत मरना चाहते हो या शेर की मौत मरना चाहते हो. सब जोर से कहो कि- खुद मिटा देंगे लेकिन "जन लोकपाल बिल" लेकर रहेंगे. जो हमें जन लोकपाल बिल नहीं देगा तब हम यहाँ(ससंद) रहने नहीं देंगे. 
निम्नलिखित समाचार भी पढ़ेंभ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की लड़ाई.

24 सितंबर 2011

अनपढ़ और गंवारों के समूह में शामिल होने का आमंत्रण पत्र

दोस्तों, क्या आप सोच सकते हैं कि "अनपढ़ और गँवार" लोगों का भी कोई ग्रुप इन्टरनेट की दुनिया पर भी हो सकता है? मैं आपका परिचय एक ऐसे ही ग्रुप से करवा रहा हूँ. जो हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु हिंदी प्रेमी ने बनाया है. जो अपना "नाम" करने पर विश्वास नहीं करता हैं बल्कि अच्छे "कर्म" करने के साथ ही देश प्रेम की भावना से प्रेरित होकर अपने आपको "अनपढ़ और गँवार" की संज्ञा से शोभित कर रहा है.अगर आपको विश्वास नहीं हो रहा, तब आप इस लिंक पर "हम है अनपढ़ और गँवार जी" जाकर देख लो. वैसे अब तक इस समूह में कई बुध्दिजिवों के साथ कई डॉक्टर और वकील शामिल होकर अपने आपको फक्र से अनपढ़ कहलवाने में गर्व महसूस कर रहे हैं. क्या आप भी उसमें शामिल होना चाहेंगे? फ़िलहाल इसके सदस्य बहुत कम है, मगर बहुत जल्द ही इसमें लोग शामिल होंगे. कृपया शामिल होने से पहले नियम और शर्तों को अवश्य पढ़ लेना आपके लिए हितकारी होगा.एक बार जरुर देखें.
"हम है अनपढ़ और गँवार जी" समूह का उद्देश्य-
इस ग्रुप में लगाईं फोटो स्व.श्री राम स्वरूप जैन और माताश्री फूलवती जैन जी की है. जो अनपढ़ है. मगर उन्होंने अपने तीनों बेटों को कठिन परिश्रम करने के संस्कार दिए.जिससे इनके तीनों बेटे अपने थोड़ी-सी पढाई के बाबजूद कठिन परिश्रम के बल पर समाज में एक अच्छा स्थान रखते हैं.
इनके अनपढ़ और भोले-भाले होने के कारण इन्होने दिल्ली में आने के चार साल बाद ही अपनी बड़ी बेटी स्व. शकुन्तला जैन को दहेज लोभी सुसराल वालों के हाथों जनवरी,सन-1985 में गँवा दिया था और तब मेरे अनपढ़ माता-पिताश्री से दिल्ली पुलिस के भ्रष्ट अधिकारियों ने कोरे कागजों पर अंगूठे लगवाकर मन मर्जी का केस बना दिया. जिससे सुसराल वालों को कानूनरूपी कोई सजा नहीं मिल पाई. गरीबों के प्रति फैली अव्यवस्था और सरकारी नीतियों के कारण ही पता नहीं कब इनके सबसे छोटे बेटे रमेश कुमार जैन उर्फ सिरफिरा के सिर पर लेखन का क्या भुत सवार हुआ. फिर लेखन के द्वारा देश में फैली अव्यवस्था का विरोध करने लगा.
हिंदी मैं नाम लिखने की भीख मांगता एक पत्रकार-
मुझ "अनपढ़ और गँवार" नाचीज़(तुच्छ) इंसान को ग्रुप/समूह के कितने सदस्य अपनी प्रोफाइल में अपना नाम पहले देवनागरी हिंदी में लिखने के बाद ही अंग्रेजी लिखकर हिंदी रूपी भीख मेरी कटोरे में डालना चाहते है.किसी भी सदस्य को अपनी प्रोफाइल में नाम हिंदी में करने में परेशानी हो रही हो तब मैं उसकी मदद करने के लिए तैयार हूँ. लेकिन मुझे प्रोफाइल में देवनागरी "हिंदी" में नाम लिखकर "हिंदी" रूपी एक भीख जरुर दें. आप एक नाम दोंगे खुदा दस हजार नाम देगा. आपके हर सन्देश पर मेरा "पंसद" का बटन क्लिक होगा. दे दो मुझे दाता के नाम पे, मुझे हिंदी में अपना नाम दो, दे दो अह्ल्ला के नाम पे, अपने बच्चों के नाम पे, अपने माता-पिता के नाम पे. दे दो, दे दो मुझे हिंदी में अपना नाम दो. पूरा लेख पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.

07 अगस्त 2011

दोस्तों ! एक है रमेश कुमार जैन, जिनका दुनिया की हकीक़त देखकर सिर-फिर गया

दोस्तों ! एक है रमेश कुमार जैन,
जिनका दुनिया की हकीक़त
देखकर सिर-फिर गया.
और बस इसीलिए
वो रमेश कुमार जैन से
रमेश कुमार सिरफिरा हो गए.
पहले पत्रकार बने, फिर नेता बने
अब देख लो, बेहतरीन ब्लोगर बन गए है.
मन में जिनके निर्भीकता और
बेबाकी में भी अपनापन हो
सभी की मदद करने की चाहत
और हौंसला जिसके मन में हो
देखो मेरे भाइयों! अपनों के ही बेगाने हो जाने से
आज वो अकेले हो गए हैं.
संघर्ष ही जिनका जीवन बना हो
राह में जिनके कांटे ही कांटे बिछे हों
जिनके सत्य वचनों से
जिसका दुश्मन जमाना बना हो.
आज उन्हें देख लो मेरे भाइयों!
वो अपने साहस, धैर्य, त्याग,
तपस्या, बलिदान और संयम से
पप्पू की तरह से फिर पास हो गए है.
अख़बार जिनका "जीवन का लक्ष्य" हो
ब्लॉग जिनका खुद के नाम पर हो
दोस्त जिनके हजारों हों
ब्लोगिंग की रेटिंग जिनकी अव्वल हो
आज देख लो मेरे भाइयों!
वही रमेश कुमार जैन पहले सिरफिरा
और अब सबके अपने हो गए हैं
शोषण-उत्पीडन के खिलाफ जंग और
बेबाकी, सत्यता, ईमानदारी, कर्मठता
जिसका मकसद हो, आज उन्हें देख लो
वो अलग-थलग होकर भी
अपने इस संघर्षशील आचरण से
प्यार-मुहब्बत, इंसानियत, ब्लोगिंग
और पत्रकारिता के शीर्ष हो गये हैं
या चुट्किले अंदाज़ में यूँ कहिये
भाई रमेश, मुन्नी को बदनाम कर
शीला को जवान कर
भाई रमेश कुमार सिरफिरा जी
ब्लोगिग्न और पत्रकारिता की दुनिया के
दूसरे "दबंग" हो गए हैं
कुदरत का अजब नजारा
यह भी देख लो, राशि में लिखी है
जिनकी दुश्मनी हमसे वो फिर भी हमारे
दोस्त से भी बढ़कर भाई हो गए
भाईयों यह तो है, भाई रमेश कुमार जैन जी

 आपका-अख्तर खान "अकेला"

अब ओर क्या कहूँ इनके बारें में ज्यादा अगर जानना हो मेरी कलम से तब यहाँ "यारों मैं बेफिक्र हुआ, मुझे 'सिरफिरा' सम्पादक मिल गया"  पर करो क्लिक और जान लो. सिरफिरा के बारे में कुछ अंश लेकिन उनका परिचय उन्हीं के अंदाज़ में एक बार फिर से पेश हैं

 रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" 

लिंग: पुरुषखगोलीय राशि: मेष,    उद्योग: प्रकाशन 

व्यवसाय: प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकारिता व विज्ञापन बुकिंग 

स्थान: A-34-A,शीश राम पार्क, सामने-शिव मंदिर, उत्तम नगर, नई दिल्ली-59 

फ़ोन: 09868262751, 09910350461, 011-28563826 : भारत

    मेरे बारे में -मुझे अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा के कारण ही पत्रकारिता के क्षेत्र में 'सिरफिरा' प्रेसरिपोर्टर के नाम से पहचाना जाता है.अन्याय का विरोध करना और अपने अधिकारों हेतु जान की बाज़ी तक लगा देना.हास्य-व्यंग साहित्य, लघुकथा-कहानी-ग़ज़ल-कवितायों का संग्रह,कानून की जानकारी वाली और पत्रकारिता का ज्ञान देने वाली किताबों का अध्ययन,लेखन,खोजबीन और समस्याग्रस्त लोगों की मदद करना.एक सच्चा,ईमानदार, स्वाभिमानी और मेहनती इंसान के रूप में पहचान. मै अपने क्षेत्र दिल्ली से चुनावचिन्ह "कैमरा" पर निर्दलीय प्रत्याक्षी के रूप में दो चुनाव लड़ चुका हूँ.दिल्ली नगर निगम 2007,वार्ड न.127 व उत्तमनगर विधानसभा 2008 के दोनों चुनाव में बगैर किसी को दारू पिलाये ही मात्र अपनी अच्छी विचारधारा से काफी अच्छे वोट हासिल किये थें.मेरी फर्म "शकुंतला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" परिवार द्वारा प्रकाशित पत्र-पत्रिकाएँ-जीवन का लक्ष्य (पाक्षिक)शकुंतला टाइम्स(मासिक),शकुंतला सर्वधर्म संजोग(मासिक),शकुंतला के सत्यवचन(साप्ताहिक) ,उत्तम बाज़ार (त्रैमासिक) "शकुंतला एडवरटाईजिंग एजेंसी" द्वारा सभी पत्र-पत्रिकायों की विज्ञापन बुकिंग होती है.निष्पक्ष,निडर,अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक,मुद्रक,संपादक,स्वतंत्र पत्रकार,कवि व लेखक

    रुचि 

    एक अभिलाषा-भ्रष्टाचार मुक्त 

    सर्वक्षेष्ट व समृध्द भारत देश में प्रजातंत्र 

    कभी-कभार फुर्सत मिलने पर ही:-क्रिकेट देखना और खेलना

    सांप-सीढ़ी और लूडो खेलना

    दिमागी कसरत वाली गेम कंप्यूटर व टी.वी. पर खेलना.

      पसंदीदा मूवी्स

      पसंदीदा संगीत

      पसंदीदा पुस्तकें

      20 फ़रवरी 2011

      यारों मैं बेफिक्र हुआ, मुझे 'सिरफिरा' सम्पादक मिल गया

      दोस्तों! आज मैं बहुत खुश हूँ. मुझे एक सम्पादक मिल गया है. अब तक मैं टूटी-फूटी हिंदी में गलत-सलत उच्चारण से बहुत कुछ गलत लिखा करता था. लेकिन उसकी मरम्मत(संपादन) के लिए मुझे कोई मेरा भाई नहीं मिल पा रहा था. खुदा का शुक्र है कि-मेरी दुआ पूरी हुई, मेरी खोज पूरी हुई.  मुझे मेरे भाई रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" जी सम्पादक के रूप में मिल गये. अब कहिये जनाब! आपको मेरी इस खोज और मेरे इस चयन पर ख़ुशी हुई या नहीं हुई कि-मैंने एक व्यवसायिक प्रकाशक, सम्पादक को इस मामले में अपने साथ जोड़कर संपादन की ज़िम्मेदारी सोंपी है. रमेश कुमार जैन मेरे भाई है.  
              न्होंने अपने ब्लॉग पर एक पोस्ट लिखी थी. आलोचना करो और 200 रूपये इनाम पाओ! मैं ठहरा एक लालची. इसलिए इनाम के चक्कर में पड़ गया. दूसरा मैं अपनी आदत से मजबूर होकर फंस गया. शर्त थी गलती निकालो और इनाम पाओ! मेरी आदत थी कि-मैं किसी की भी गलती नहीं निकालता. काफी वक्त मेरे अंदर अन्तर्द्वन्द्ध रहा. बाद में मैंने वैसे ही इनाम पाने के लिए एक संदेश मेरे भाई रमेश जी को दिया. बस उनके पहले जवाब ने मुझे प्रफुल्लित कर दिया और मुझे लगा कि-मैंने 20 साल तक पत्रकारिता और सम्पादन काल में कुछ नहीं खोजा. जो जनाब रमेश जी ने मिलकर मेरी भूख शांत कर दी. 
                    मैंने भी नकल की और भाई रमेश जी की तर्ज़ पर एक प्रतियोगिता इनाम पाने की घोषणा कर डाली. एक भी अच्छी और सुधरी हुई चीज़ मेरे ब्लॉग में ढुंढ़ों और 500 रूपये का इनाम पाओ. यकीन मानो. शुक्र मनाओ एक भी संदेश नहीं आया, क्योंकि मेरे ब्लॉग में कुछ ऐसा ठीक है ही नहीं. जो कोई इसके सुधरे हुए हिस्से को बता सके. खैर मैं तो अभी लोगों को पुरस्कार देने से बचा हुआ हूँ. लेकिन मैं रमेश जी से प्रभावित हुआ हूँ. इसलिए मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ. 
                  मैंने उनसे प्रार्थना की. रमेश भाई तुम मेरी पोस्टों का सम्पादन करो और उन्होंने स्वीकार किया. इस मामले में उनका मैं शुक्रगुजार हूँ. उन्होंने मुझे सहयोग भी किया है. दोस्तों! रमेश कुमार जैन नाम के ही "सिरफिरे" है. लेकिन इनका "सिर" फिरा हुआ नहीं है, क्योंकि "सिर" किसी का भी "फिर" ही नहीं सकता यह तो स्थिर रहता है. हाँ, सम्पादन की भाषा में बोलें तो दिमाग जरुर "फिर" जाता है. जो एक पत्रकार का दिमाग है वो इसलिए सहज सम्पादित रहता है. तब "फिरने" का सवाल ही नहीं उठता. 
                रमेश जी एक स्वतंत्र पत्रकार,प्रकाशक और मुद्रक है. यह दिल्ली के उत्तमनगर क्षेत्र में निर्दलीय नेतागिरी भी कर चुके हैं और "कैमरा" चुनाव चिन्ह पर दो बार चुनाव लड़कर अच्छे वोट प्राप्त किये थें. इनका जीवन का मुख्य लक्ष्य भारत को एक लोकतांत्रिक भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र बनाना है और इसी प्रयासों में यह जुटे हैं. इनका "शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" परिवार के नाम से प्रकाशन है. जोकि उत्तम नगर, दिल्ली में कार्यरत है. "जीवन का लक्ष्य" व "शकुन्तला सर्वधर्म सजोग" सहित साप्ताहिक, मासिक,पाक्षिक, तैमासिक प्रकाशन इनके चल रहे हैं. रमेश जी को टी.वी.सीरियलों में भी वही सीरियल पसंद हैं. जिनमें हंसी-हंसी में कुछ शिक्षा भी शामिल हो, फ़िल्में वो पसंद हैं. जो राष्ट्रभक्ति को बढ़ावा देती हो और "दिल" शायद थोड़ा टूटा हुआ-सा है. इसीलिए इन जनाब को दर्द भरी गजलें और दर्द भरे गीत पसंद है.
                 मेश भाई के अनेक ब्लॉग पांचवे स्तम्भ की दुनिया में है. पहला "सिरफिरा-आज़ाद पंछी" दूसरा "रमेश कुमार सिरफिरा" तीसरा "सच्चा दोस्त" चौथा "आपकी शायरी" पांचवां "आपको मुबारक हो" और छठा "मुबारकबाद",  शकुन्तला प्रेस ऑफ इंडिया प्रकाशन,    सच का सामना(आत्मकथा), तीर्थंकर महावीर स्वामी जी,   शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय  और (जिनपर कार्य चल रहा है>>शकुन्तला महिला कल्याण कोष, मानव सेवा एकता मंच,  एवं चुनाव चिन्ह पर आधरित कैमरा-तीसरी आँख ब्लॉग हैं. 
           कैमरा-तीसरी आँख वाला ब्लॉग पर अपने लड़े दोनों चुनाव की प्रक्रिया और अनुभव डालने का प्रयास कर रहे हैं. जिससे 2012 में दिल्ली नगर निगम के चुनाव होने है और उनकी दिली इच्छा है कि इस बार पहले ज्यादा निर्दलीय लोगों को चुनाव में खड़ा करने के लिए प्रेरित कर सकूँ. पिछली बार उन्होंने 11 लोगों की मदद की थी. उनका कहना है कि-जबतक आम-आदमी और अच्छे लोग राजनीति में नहीं आयेंगे. तब तक देश के बारें में अच्छा सोचना बेकार है. मेरे ब्लॉग से अगर लोगों को चुनाव प्रक्रिया की जानकारी मिल गई. तब शायद कुछ अन्य भी हौंसला दिखा सकें. मेरे अनुभव और संपत्ति की जानकारी देने से लोगों में एक नया संदेश भी जाएगा. 
                  नके "मुबारकबाद" ब्लॉग के काम में यह विनोद जैन को अपना सहयोगी मानते हैं और अपने वैवाहिक जीवन के कटु अनुभवों को सच का सामना(आत्मकथा) के माध्यम से उपन्यास के रूप में समेटने की कोशिश में भी लगे हुए हैं. ऐसे जनाब हैं मेरी पोस्टों के सम्पादक जनाब रमेश कुमार जैन. आप सभी को अच्छा लगा ना इनसे मिलकर. अब मिलते रहेंगे। आपको इनके बारें में ओर ज्यादा जाने की इच्छा है तो आप इनके ब्लॉग पर किल्क करें. 
      -आपका अपना:-अख्तर खान अकेला, कोटा (राजस्थान)
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