यह भ्रष्ट आचरण है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध एकजुट राष्ट्र को धोखा देने का। भ्रष्टाचार के मुकाबले शक्तिशाली लोकपाल लाने का वादा कर रहे सांसदों के पथभ्रष्ट होने का। जनभावनाओं को निर्ममता से भावहीन करने की कोशिशों का। यह भ्रष्ट आचरण है। सरकार के दोहरे चरित्र का। विपक्षी दलों की विचारशून्यता का
यह भ्रष्ट आचरण है। उन सांसदों का, जिन्होंने सत्ता में रहकर लोकपाल कानून को सुनियोजित षडच्यंत्र में बदल दिया। उन सांसदों का, जिन्होंने अपनी सुविधा, सुरक्षा और स्वार्थ के लिए इसे दंतहीन, श्रीहीन और दीनहीन बना दिया। विपक्ष के उन सदस्यों का, जिन्होंने इसे अपनी खुदगर्जी और मनमर्जी के कारण संशोधनों के पहाड़ तले रौंद दिया।
यह भ्रष्ट आचरण है 121 करोड़ नागरिकों को कम से कम छह माह पीछे धकेल देने का। उन तमाम फैसलों को रोकने का, जो देश को अर्थ संकट से लड़ने की ताकत देते। उस तमाम कामकाज को छोड़ने का, जिससे आर्थिक सुधारों का दूसरा और प्रभावी दौर शुरू होता।
यह भ्रष्ट आचरण है। देश की तरक्की को ‘अनिश्चितकाल के लिए स्थगित’करने का। देश को पिछले छह माह से सिर्फ शक्तिशाली लोकपाल कानून लाने के छलावे में उलझाए रखने का। इस बीच जीडीपी की दर कमजोर करने का। कृषि उत्पादन घटने देने का। औद्योगिक उत्पादन को रसातल में भेजने का। और महंगाई से आम आदमी के सपनों को चूर-चूर कर देने का। भयावह भ्रष्ट आचरण है यह सब।
यह हमारी, अपनी चुनी हुई सरकार का आचरण है। हमारे अपने हाथों से संसद में पहुंचे एक-एक, हरेक सांसद का। प्रधानमंत्री लोकपाल की परिधि में होंगे, पूरे होंगे, आधे होंगे, सशर्त होंगे, यह तो तय हो रहा है। सीबीआई लोकपाल के मातहत होगी, कहने से जांच करेगी या नहीं करेगी, इस पर भी फैसला हो रहा है।
सिर्फ उच्चस्तरीय नौकरशाह लोकपाल की जद में होंगे या सौ फीसदी सरकारी कर्मचारी, यह भी बहस चल रही है। लोकपाल कितना कमजोर किया जाए, यह तय करने की तो होड़ सी मची है। लेकिन हमारे वोट से संसद में बैठकर हम पर शासन कर रहे इन सभी नेताओं के ऐसे भ्रष्ट आचरण को हम किस परिधि में लाएं? कैसे तय करें?
समस्या वही है, जिस पर दो शब्दों में पहले भी बात हुई थी। क्या सरकार, क्या विपक्ष, एक अपवित्र गठजोड़ खड़ा हो गया है। जनता सीधे सरकार नहीं चला सकती। उसे सरकार चुनने से पहले ही यह तय करना होगा कि वह सिर्फ सही को चुने। क्योंकि वो जो एक वोट है, वही 121 करोड़ जिंदगियों का भविष्य लिख देता है।
हालांकि गुरुवार को मध्यरात्रि तक राज्यसभा में जिस निर्लज्जता के साथ इस वोटरूपी भरोसे को फाड़ा गया, उससे न तो हकीकत बदल सकती है, न ही ऐसे गैरजिम्मेदार सांसदों की तकदीर। सारे राष्ट्र ने अपनी भावनाओं को ऐसा क्रूर प्रहसन बनते हुए देखा है। आंख मींच लेने से तूफान लौट नहीं जाता। यानी भ्रष्ट नेता संभलकर रहें, जनाक्रोश का तूफान आना तय है।
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