केन नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के दमोह जनपद की कैमूर पहाड़ी से है, जो उत्तर प्रदेश में बांदा जनपद के बिल्हरका गांव से प्रवेश करती है। नदी का नाम 'केन' कैसे पड़ा इसे लेकर दो किंवदंतियां हैं। पहली किंवदंती के अनुसार, इस नदी का पुराना नाम 'कर्णवती' था।
एक बुजुर्ग ने बताया कि नदी के किनारे अक्सर एक प्रेमी युगल अठखेलियां किया करता था। बाद में किसी ने युवक की हत्या कर उसके शव को नदी के किनारे दफना दिया। युवक की प्रेमिका ने ईश्वर से अपने प्रेमी का शव दिखाने की प्रार्थना की। तब नदी में भीषण बाढ़ आई और नदी का किनारा कटा तो शव उसके सामने नजर आया। शव देखते ही लड़की ने भी अपने प्राण त्याग दिए। इस घटना के बाद नदी का नाम कर्णवती से 'कन्या' हो गया। कन्या का अपभ्रंश 'कयन' और फिर 'केन' हो गया। महाभारत में भी 'केन-एक कुमारी कन्या' का उल्लेख मिलता है।
वहीं, मध्य प्रदेश के छतरपुर जनपद में केन नदी के किनारे बसे अंतिम गांव बछेड़ाखेड़ा के रहने वाले बुजुर्ग पंडित बद्री प्रसाद दीक्षित कहते हैं कि यह देश की ऐसी अकेली नदी है जो सात पहाड़ों का सीना चीरकर बह रही है, इस नदी में बेहद कीमती 'शजर' पाया जाता है। शजर पन्ना जनपद के अजयगढ़ कस्बे से लेकर उत्तर प्रदेश में बांदा के कनवारा गांव तक भारी मात्रा में पाया जाता है।
वह कहते हैं कि ऊपर से बदरंग दिखने वाले शजर को मशीन से तराशने पर उस पर झाड़ियों, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, मानव और नदी की जलधारा केविभिन्न चमकदार रंगीन चित्र उभरते हैं। दीक्षित बताते हैं कि इस नदी में पाया जाने वाला शजर पत्थर ईरान में ऊंचे दामों में बिकता है, तभी तो मुम्बई के एक विशेष समुदाय के व्यापारी इसे चोरी-छिपे थोक में खरीदकर ले जाते हैं।
मुम्बई में रहने वाले बांदा के मोहम्मद अब्दुल का कहना है कि केन नदी के शजर को मुम्बई में मशीन से तराशकर ईरान भेजा जाता है, वहां इसकी अच्छी रकम मिलती है। छतरपुर जिले के गौरिहार उपखंड के उप प्रखंड जिलाधिकारी रमेश कुमार सिंह ने बताया कि मध्य प्रदेश के हिस्से की जलधारा में पाए जाने वाले शजर की चोरी नहीं होती।