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24 नवंबर 2011

एक थपपड़ की गुन्ज .............

एक फिल्म करमा जिसमे एक जेलर दिलीप कुमार अपराधी अनुपम खेर के थप्पड़ मारता है और वोह उस वक्त एक डायलोग कहता है के इस थप्पड़ की गूंज अब सुनाई देगी और उसके बाद इस फिल्म में तबाही का सिलसिला शुरू होता है ...ऐसे ही हारे देश में अब नेताओं ..समाजसेवकों पर अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों द्वारा थोथी पब्लिसिटी प्राप्त करने और मिडिया की सुर्ख़ियों में रहने के लियें थप्पड़ ..चाकू ..जुटे और चप्पलों से हमले शुरू कर दिए है ॥ और यह हमले सभी सुरक्षा के गहरे में रहें वालों पर पुलिस और सुरक्षा कर्मियों की उअप्स्थिति में किये गये है ऐसे हमलावरों को पकड़ा ॥ माफ़ किया या कोई छोटा मोटा मुकदमा लगाया और छोड़ दिया बस तमाशा बन गया एक जगह से छूता फिर दूसरी जगह हमला कुछ लोग इनाम की घोषणा लेकर खड़े हो जाते है और कानून तमाशा बन जाता है ॥ ऐसे लोगों को जिसके थप्पड़ पढ़ता है वोह तो गवाही देने नहीं आता और मुलजिम छुट जाता है कोटा में अशोक गहलोत के सामने रघु शर्मा पिटे गवाही नहीं हुई मुलजिम बरी यही यासीन मलिक .अडवाणी जनार्दन द्विवेदी ..प्र्शन्त भूषण और शरद पंवार के मामले में होने वाला है अब अगर ऐसा ही होता रहा और पुलिस खामोश बनी रही तो जब जुटा और थप्पड़ चलाने की पुलिस अपराधियों को इजाजत देती है तो कल यही लोग नेताओं पर गोलियां और बम चलाने लगेंगे और स्थिति अराजकता की हो जायेगी इसलियें ऐसे थप्पड़ मार कर थोथी पब्लिसिटी के चाहने वालों को कदा सबक सीखने के लियें विधि विरुद्ध क्रिया कलाप अधिनियम या फिर रासुका जेसे कानूनों में बंद करना चाहिए ताकि इनकी जिंदगी जब जेल में गुज़रे इन्हें दंड मिले और यह किसी भी चुनाव या नोकरी से निर्योग्य हो जाएँ तब इन्हें अपनी गलती का अहसास हो वरना यह पागलपन पब्लिसिटी के लालच में बढ़ता जाएगा और ठाकरे बन्धुओं की गुंडा संस्क्रती इस देश की सुक्ख शांति को लील लेगी .......... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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