रवि कुमार
"तुम्हारे हाथ उठे जब –जब
आम आदमी के बहाने
हमने देखी खुली आँखों से
प्रजातंत्र की नंगी तस्वीर
लूट हुई, दंगे हुए
बटवारा हुआ इंसानियत का
तुमने सिर्फ वोट बटोरे
फिर तुमने कमल खिलाया
कीचड़ का भी अपमान किया
आग लगाई
बस्तियां जलाई
देश में लहू की धार बहाई
दुहाई तुम्हारी दुहाई तुम्हारी..."
"तुम्हारे हाथ उठे जब –जब
आम आदमी के बहाने
हमने देखी खुली आँखों से
प्रजातंत्र की नंगी तस्वीर
लूट हुई, दंगे हुए
बटवारा हुआ इंसानियत का
तुमने सिर्फ वोट बटोरे
फिर तुमने कमल खिलाया
कीचड़ का भी अपमान किया
आग लगाई
बस्तियां जलाई
देश में लहू की धार बहाई
दुहाई तुम्हारी दुहाई तुम्हारी..."