दोस्तों
देश का भी अजीब संविधान अजीब क़ानून है ,,नोकरशाहों ने चुनाव की निष्पक्षता
के लिए लोकप्रतििनिधित्व अधिनियम बनाया ,,इस अधिनियम में धारा तीन में
राजयसभा के लिए पहले उस राज्य या क्षेत्र में मतदाता होने पर ही वहाँ से
राजयसभा का सदस्य का चुनाव लड़ने का नियम था जो बाद में वर्ष दो हज़ार तीन
में संशोधित कर पुरे भारत में कही का भी मतदाता होने पर राजयसभा का कहीं से
भी चुनाव लड़ने का प्रावधान जोड़ा गया और फिर
लोकसभा के चुनाव के लिए लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा चार डी में
संशोधन नहीं किया गया इस धरा में किसी अन्य सीट के मामले में वह किसी
संसदीय क्षेत्र का मतदाता यानि उसी क्षेत्र का मतदाता होना चाहिए क्यूंकी
राजयसभा के मामले में तो संशोधन हुआ है इस मामले में संशोधन नहीं हुआ
,,,,,,,,,,,फिर भी अधिनियम की धारा तीस की उपधारा सात की धारा छः उपधारा
एक में दो सीटों से अधिक सीटों पर चुनाव का नामांकन नहीं भरने के निर्देश
देकर गोलमोल दो सीटों से आवेदन भरने की अनुमति दी है जब सभी जानते है के
कोई भी व्यक्ति दो लोकसभा क्षेत्रों से निर्वाचित होने पर सदस्य नहीं रह
सकता और एक लोकसभा क्षेत्र से उसे इस्तीफा देना अनिवार्य है तो भाई दुबारा
चुनाव् का खर्चा करवाकर जनता पर भार डालने के लिए यह बेवक़ूफ़ी भरा नियम
क्यूँ ,,,,,,,,,,,,,,,
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