राहत शिविर का रुदन कलेजा छलनी कर देता है। पहाड़ सी पीड़ा लिए लोग
पहाड़ों से लौट रहे हैं। चारधाम यात्रा मार्ग पर मानवीय त्रासदियों के
निशान छोड़कर। यहां कदम-कदम पर उजागर हो रही हैं सरकारी तंत्र की बेहिसाब
जानलेवा लापरवाहियां। पुलिस थानों में बचाव के नाम पर सिर्फ टॉर्च और
रस्सियां हैं। बचाव और राहत दल के नाम पर अग्रिम पंक्ति में अप्रशिक्षित
होमगार्ड ही लगाए गए थे।
देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, जोशीमठ, केदारघाटी में कोई
हैल्पलाइन नंबर तक नहीं है। एकमात्र प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सिर्फ
श्रीनगर में है। श्रीनगर से बद्रीनाथ 175 किमी और केदारनाथ 150 किमी है।
पर्यटन विभाग का गढ़वाल और कुमाऊं मंडल विकास निगम सुविधाओं के नाम पर या
तो रैन बसेरे बनाता या कमाई के लिए अपने रिसॉर्ट दुरुस्त करता रहा।
बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने अपनी भूमिका सिर्फ चढ़ावा समेटने तक
रखी। सुरक्षा के लिए कोई योजना या उपकरण नहीं। पिछले साल दस बुजुर्गों की
मौत गौरीकुंड से ऊपर ऑक्सीजन की कमी से हो गई थी। एक स्थानीय एनजीओ चलाने
वाले जेपी मैठाणी कहते हैं कि करोड़ों रुपए का चढ़ावा समेटने वाली मंदिर
समिति श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था करने की जिम्मेदारी सरकार पर डाल रही
है। कुप्रबंधन से होने वाली मौतों के लिए समिति भी बराबर जिम्मेदार है।
बद्रीनाथ-केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग सितंबर 2011 से टूटा है। गौरीकुंड से
केदारनाथ का 14 किमी लंबा मार्ग इतना खराब है कि मामूली बारिश भी कहर बरपा
देती है। हर साल 600 से ज्यादा श्रद्धालु हार्ट अटैक, भूस्खलन और बदहाल
सड़कों के कारण हादसों में मारे जाते हैं।