तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
12 जनवरी 2012
सलमान रुश्दी तो इन्सान नहीं जानवर है लेकिन पक्षपाती खबर खाने वाले सम्पादक और पत्रकारों को क्या कहें जनाब
दूध और चारोली का कारगर नुस्खा, कैसे भी हों मुहांसे गायब हो जाएंगे
चेहरे की खूबसूरती के लिये आधुनिक कोस्मेटिक्स का प्रयोग करना खुद समस्याओं को न्योता देने के समान जोखिम भरा होता है। इसीलिए अनुभवियों और जानकारों का सीख होती है कि किसी को सिर्फ इसलिए गले मत लगाओ कि वह नया है, और पुराना सोचकर ही किसी को ठुकरा देना भी जायज नहीं है।हमारे यहां घर-परिवारों में परंपरागत रूप से कई कार्य होते रहें हैं जिनमें से कुछ वाकई आज भी बेहद कारगर और कीमती होते हैं। यहां हम कुछ ऐसे ही बहुत काम के नुस्खों को बता रहें हैं, जो प्रयोग करने पर आपको भी यकीनन पसंद आएंगे...
मुहांसों से मुक्ति- नारंगी और चारोली के छिलकों को दूध के साथ पीस कर इसका लेप तैयार कर लें और चेहरे पर लगाए। इसे अच्छी तरह सूखने दें और फिर खूब मसल कर चेहरे को धो लें। इससे चेहरे के मुहंासे गायब हो जाएंगे। अगर एक हफ्ते तक प्रयोग के बाद भी असर न दिखाई दे तो लाभ होने तक इसका प्रयोग जारी रखें।
खुजली का सफाया- अगर आप गीली खुजली की बीमारी से पीडि़त हैं तो 10 ग्राम सुहागा पिसा हुआ, 100 ग्राम चारोली, 10 ग्राम गुलाब जल इन तीनों को साथ में पीसकर इसका पतला लेप तैयार करें और खुजली वाले सभी स्थानों पर लगाते रहें। ऐसा करीबन 4-5 दिन करें। इससे खुजली में काफी आराम मिलेगा व आप ठीक हो जाएंगे।
ठंड में पुरुष कर लें ये प्रयोग, ताकत के लिए और कुछ भी खाने की जरुरत नहीं रहेगी
आयुर्वेद में ठंड को खाने-पीने और सेहत बनाने के लिए सबसे बढिय़ा मौसम माना गया है। कहा जाता है कि सर्दियों के मौसम में सेवन की गई चीजों का प्रभाव शरीर पर सालभर रहता है। इसीलिए ठंड में सेहत बनाने के लिए लोग कई तरह की चीजों का सेवन करते हैं।
पुरुषों को तो आयुर्वेद में विशेषकर नपुंसकता दूर कर ठंड में ताकत देने वाली चीजों को प्रयोग करने को कहा गया है। आज हम बताने जा रहे हैं आपको एक ऐसा आयुर्वेदिक योग, जिसका प्रयोग करने के बाद पुरुषों को सालभर किसी भी तरह की ताकत बढ़ाने वाली दवाई या किसी अन्य चीज के इस्तेमाल की जरुरत नहीं होगी।
सामग्री - असगंध, सफेद मूसली, काली मूसली, कौंच के बीज, शतावर, ताल मखाना, बीजबंद, जायफल, जावित्री, ईसबगोल, नागकेशर, सोंठ, गोल मिर्च, लौंग, पीपर कमलगट्टे की गिरी, छुहारे, मुनक्का, चिरोंजी सब 50-50 ग्राम, मिश्री सवा दो किलो, घी 400 ग्राम।
बनाने की विधि- मिश्री और घी को छोड़कर शेष सारी औषधियों को अलग-अलग कूटपीस कर कपड़े से छान लें। सबको मिलाकर घी में भून लें।अब मिश्री की पतली चाशनी बनाकर उतार लें और सारी दवा इसमें डालकर अच्छी तरह मिलाकर उपर सोने व चांदी का वर्क मिला दें।
सेवन विधि - 10 से 20 ग्राम इस योग को चाटकर उपर से एक गिलास गरमागरम दूध पी जाएं।
लाभ -सर्दियों में कुछ दिन इसका लगातार सेवन करते रहने से नपुंसकता दूर होती है। वीर्य गाढ़ा और पुष्ट होता है। शरीर बलवान बन जाता है।इसके अलावा पेशाब में जलन, पथरी और वात रोग भी इसके लगातार सेवन से मिट जाते हैं।
बीकानेर घराने की लाडली से कोटा की राजमाता तक..दुर्लभ तस्वीरें..
कोटा. कोटा की पूर्व राजमाता शिवकुमारी के निधन के साथ ही एक पूरा अध्याय समाप्त हो गया। वे महज 14 साल की उम्र में ब्याह कर कोटा राजपरिवार में आई। जिंदगी के 82 साल उन्होंने कोटा को समर्पित किए।
राज भी देखा और उसमें प्रजा की भागीदारी भी। खुद बतौर विधायक जनता के दु:ख दर्द समझ कर उनके विकास की साक्षी भी रहीं। अपने व्यवहार और आचरण से ही वे सही मायने में जनता की राजमाता थीं।
बीकानेर के पूर्व महाराजा गंगासिंह की लाडली।
कोटा के महाराव भीमसिंह (द्वितीय) के अर्धागिनी।
सौंदर्य की प्रतिमूर्ति शिवकुमारी।
पूर्व राजमाता अपने पति पूर्व महाराव स्व. भीमसिंहजी और पुत्र पूर्व महाराव बृजराजसिंह व दो पुत्रियों के साथ। फाइल फोटो
पूर्व उपराष्ट्रपति भैंरोसिंह शेखावत के साथ पूर्व राजमाता
जज ओपी विश्नोई के साथ पूर्व राजमाता शिवकुमारी
वीडियो में देखें दुनिया का सबसे महंगा 'घर' जो तरस रहा है इंसानों के लिए
मुंबई. जिस देश में (अमित सेन गुप्ता समिति की रिपोर्ट के मुताबिक) 80 फीसदी से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हों वहां किसी एक व्यक्ति के पास ऐसा आलिशान घर होना वास्तव में चौका देने वाला है. 27 मंजिला यह मकान भारत के मशहूर उद्योगपति मुकेश अंबानी का है.
अगर आंकड़ों की माने तो इस घर को दुनिया में बने अब तक के किसी भी निजी घरों में सबसे बड़ा और सबसे महंगा माना जा रहा है.'एंटिला' नाम का यह घर मुंबई में स्थित है जो मुकेश अंबानी, उनकी पत्नी टीना अंबानी और उनके तीन बच्चों (यानि, कुल पांच लोगों) के लिए बनाया गया है.
इस घर की अनुमानित कीमत लगभग 2 अरब अमेरिकी डॉलर बताई जाती है. गौरतलब, है कि फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक मुकेश अंबानी दुनिया के 9वें सबसे अमीर व्यक्ति हैं, उनके इस बहुमंजिला इमारत में वैसे तो ऐसी बहुत सी खूबियां हैं, जिन्हें अगर गिनाया जाए तो कई पन्ने भर जाएंगे लेकिन, इस मकान के बारे में सबसे ख़ास बात ये है कि इसमें तीन हेलीपैड हैं. यानि एक साथ तीन हेलीकॉप्टर इस मकान की छत से उड़ान भर सकते हैं.
ऐसा भी कहा जा रहा है कि तमाम खूबियों के बावजूद इसे अशुभ माना जा रहा है. इसके अशुभ होने का कारण इसमें रह गया कोई वास्तु दोष है. यही कारण है कि अपनी विलासिता को समेटे हुआ यह मकान अभी भी घर नहीं बन पाया है.
जब शेर का शिकार करने नाव से जाती थीं कोटा की महारानी
कोटा. पूर्व राजमाता शिवकुमारी 1967 में खानपुर विधानसभा से विधायक चुनी गई। वर्ष 1966 से 1976 तक अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की उपाध्यक्ष और 1964 में राजस्थान क्षत्रिय महासभा की अध्यक्ष रही। वे महारानी गायत्री देवी गल्र्स स्कूल जयपुर में बोर्ड ऑफ गर्वनर की उपाध्यक्ष भी रही। शिक्षा के प्रति उनका गहरा लगाव रहा।
कोटा में उन्होंने लेडीज क्लब की स्थापना की और 1939 से 1945 तक स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग किया। वे कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी रहीं। रोटरी क्लब कोटा, नेशनल रायफल क्लब कोटा, थंडर बोल्ड रायफल क्लब बीकानेर, कोटा रायफल क्लब व दिल्ली कॉमनवेल्थ एसोसिएशन, इंटेक की सदस्य और श्रुति मंडल जयपुर व रागरंग दिल्ली की संरक्षक रही। उन्हें शिकार का शौक था। उन्होंने वर्ष 1961 में नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप दिल्ली में अवार्ड जीता। शास्त्रीय संगीत में भी खासी रुचि थी।
बहू बन कर आई तो जश्न में डूबा था कोटा
रियासतकाल में कोटा के महाराव भीम सिंह (द्वितीय) के साथ पूर्व राजमाता शिवकुमारी का विवाह 30 अप्रैल 1930 को हुआ था। वे बीकानेर रियासत के महाराजा गंगासिंह बहादुर की पुत्री थी। इतिहासकार डॉ. जगत नारायण की एक पुस्तक में लिखा है कि शादी के इस उत्सव को इतने उल्लास एवं भव्यता से मनाया गया था कि कोटा में न तो इससे पहले और न ही इसके बाद कोई बड़ा जश्न हुआ। शादी की खुशी में 14 अप्रैल 1930 को नगर भोज दिया गया था।
जिसमें कोटा के सभी जाति एवं सभी धर्म के लोगों को आमंत्रित किया गया था। उस समय डेढ़ लाख लोगों का भोजन महज पांच घंटे में संपन्न हो गया था। परदा वाली महिलाओं को गल्र्स स्कूल एवं अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को बायनी मेमोरियल हॉल में भोज कराया गया।
उस दिन कोटा में जो भी व्यक्ति था, उसे भोज में शामिल किया गया। यहां तक कि उस दिन कोटा स्टेशन से ट्रेन में गुजरने वाले मुसाफिरों को स्काउट्स के माध्यम से मिठाई वितरित की गई। राजमाता के पारिवारिक जीवन का अगला सुखद क्षण 21 फरवरी 1934 को आया, जब राजमहल में भंवर बृजराज सिंह का जन्म हुआ। इस खुशी के अवसर पर तत्कालीन महाराव ने चंबल पुल पर लगने वाला टैक्स समाप्त कर दिया।
कला-संस्कृति से था लगाव
इंटेक कोटा चैप्टर संयोजक हरिसिंह पालकिया ने पूर्व राजमाता के निधन पर गहरा दुख जताते हुए कहा कि राजमाता को प्रकृति, वन्यजीवों व पुरा धरोहर से विशेष लगाव होने के साथ ही कला, संस्कृति में खासा दखल था। शास्त्रीय संगीत व मांड गायकी की उन्हें बहुत अच्छी समझ थी।
वे कला की पारखी होने के साथ ही कलाकारों को प्रोत्साहन देती थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के संरक्षण में 1984 में जब इंटेक (भारतीय सांस्कृतिक निधि) की स्थापना हुई थी और राजीव गांधी सबसे पहले अध्यक्ष बने थे, तब से ही राजमाता शिवकुमारी इंटेक की आजीवन सदस्य थी।
इतिहासविद फिरोज अहमद के मुताबिक बूंदी में 1990 में जब इंटेक द्वारा हस्तकला शिल्प प्रदर्शनी लगाई गई थी, तब भी वहां राजमाता तीन दिन तक प्रदर्शनी को देखने गई। कोटा के बृजविलास भवन में इंटेक की ओर से 2001 से 2003 तक तीन बार परंपरागत हस्तकला प्रदर्शनी लगी, तब भी राजमाता ने अपनी दोनों पुत्रियों के साथ प्रदर्शनी को देखा।
गढ़ से दरा तक नाव में जाती थी शिकार करने
जंगलों में शिकार करने जाती थी। इसके लिए गढ़ पैलेस के पीछे जहां वर्तमान में कोटा बैराज है, वहां पर गणगौर घाट हुआ करता था। उस गणगौर घाट से बड़े-बड़े नावड़े (नाव)लगते थे। जिन पर राजमाता, सैनिक व नौकर चाकर सवार होते थे। एक नाव में मनोरंजन के लिए गायक व वादक होते थे।
पूरा एक दिन लगता था दरा के जंगल में पहुंचने में। जब जानवर पानी पीने के लिए घाट की तरफ आते थे तब नाव से ही वे शेर का शिकार करती थी। उस समय उनके साथ गए महल के ही एक कर्मचारी के अनुसार जब भी शिकार पर जाती थी तो बिना शेर लिए लौटती नहीं थी। एक बार तो एक साथ दो शेर का शिकार करके लौटी थी। इसके अलावा कई बार वे सड़क मार्ग से भी शिकार के लिए दरा जाती थी । पोलो ग्राउंड को अस्पताल के लिए दे दिया।
राजमाता व महाराव भीम सिंह ने कभी संपत्ति को महत्व नहीं दिया। उन्होंने हमेशा जनता की भलाई के लिए कई संपत्तियों का दान किया। एक बार शहर में अस्पताल खोलने के लिए जगह व धन की बात आई तो उन्होंने अपना पोलो ग्राउंड दे दिया। उस जगह पर महाराव भीम सिंह अस्पताल बनाया गया। इसके भवन के लिए धन भी खुद ने ही दिया था।
समय की पाबंद थी राजमाता
राजमाता काफी मिलनसार थी। कोई भी उनसे मिलने जाता था तो वे इंकार नहीं करती थी, लेकिन समय की काफी पाबंद थी। उन्होंने स्पष्ट कह रहा था कि पहले समय ले लो और तय समय पर आओ। जब वे खानपुर से विधानसभा का चुनाव लड़ी तो मैं एक माह तक उनके साथ चुनावी दौरे पर रहा।
उनमें राजमाता का रौब था,लेकिन व्यवहार सबके लिए अच्छा और मृदुभाषी था। कुछ साल पहले बीकानेर से जज ओपी विश्नोई कोटा आए थे। वे राजमाता से मिलना चाहते थे। राजमाता को पता चला तो तत्काल उन्हें बुलाया और काफी देर तक उनसे कई मामलों पर चर्चा की। इसी प्रकार उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत कुछ साल पूर्व कोटा आए थे तब भी राजमाता से मिलकर गए थे।
जूनागढ़ में 21 मई 1946 को शेर के शिकार के बाद पूर्व राजमाता शिवकुमारी के साथ सामूहिक फोटो।
जज ओपी विश्नोई के साथ पूर्व राजमाता शिवकुमारी
पूर्व उपराष्ट्रपति भैंरोसिंह शेखावत के साथ पूर्व राजमाता
राजमाता का निवास, यहीं से निकलेगी अंतिम यात्रा
बदल जाएगा समय, 14 को नहीं 15 को मनेगी संक्रांति!
इंदौर। मकर संक्रांति और 14 जनवरी को एक-दूसरे का पर्याय माना जाता है। आमजन को यह मालूम है कि दीपावली, होली सहित कई पर्व की तारीख तय नहीं होती लेकिन मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही मनाई जाती है। इस बार यह पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। ऐसा क्यों? वह इसलिए क्योंकि सूर्य का धनु से मकर राशि में प्रवेश 14 को मध्यरात्रि के बाद होगा। पंडितों की मानें तो सन् 2047 के बाद ज्यादातर 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति आएगी। अधिकमास, क्षय मास के कारण कई बार 15 जनवरी को संक्रांति मनाई जाएगी।
इससे पहले सन् 1900 से 1965 के बीच 25 बार मकर संक्रांति 13 जनवरी को मनाई गई। उससे भी पहले यह पर्व कभी 12 को तो कभी 13 जनवरी को मनाया जाता था। पं. लोकेश जागीरदार (खरगोन) के अनुसार स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनकी कुंडली में सूर्य मकर राशि में था यानी उस समय 12 जनवरी को मकर संक्रांति थी। 20वीं सदी में संक्रांति 13-14 को, वर्तमान में 14 तो कभी 15 को मकर संक्रांति आती है। 21वीं सदी समाप्त होते-होते मकर संक्रांति 15-16 जनवरी को मनाने लगेंगे।
यह है कारण
सूर्य हर महीने राशि परिवर्तन करता है। एक राशि की गणना 30 अंश की होती है। सूर्य एक अंश की लंबाई 24 घंटे में पूरी करता है। पंचांगकर्ता डॉ. विष्णु कुमार शर्मा (जावरा) का कहना है अयनांश गति में अंतर के कारण 71-72 साल में एक अंश लंबाई का अंतर आता है। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से एक वर्ष 365 दिन व छह घंटे का होता है, ऐसे में प्रत्येक चौथा वर्ष लीप ईयर भी होता है। चौथे वर्ष में यह अतिरिक्त छह घंटे जुड़कर एक दिन होता है। इसी कारण मकर संक्रांति हर चौथे साल एक दिन बाद मनाई जाती है।
हर साल आधे घंटे की देरी
प्रतिवर्ष सूर्य का आगमन 30 मिनट के बाद होता है। हर तीसरे साल मकर राशि में सूर्य का प्रवेश एक घंटे देरी से होता है। 72 वर्ष में यह अंतर एक दिन का हो जाता है। हालांकि अधिकमास-क्षयमास के कारण समायोजन होता रहता है। (पंडितों के अनुसार)
संक्रांति की स्थिति
13 जनवरी को : सन् 1900, 01, 02, 1905, 06, 09, 10, 13, 14, 17, 18, 21, 22, 25, 26, 29, 33, 37, 41, 45, 49, 53, 57, 61 1965 में।
इन वर्षो में 15 को आएगी
2012, 16, 20, 21, 24, 28, 32, 36, 40, 44, 47, 48, 51, 52, 55, 56, 59, 60, 63, 64, 67, 68, 71, 72, 75, 76, 79, 80, 83, 84,86, 87, 88, 90, 91, 92, 94, 95, 99 और 2100 में। (पंचांगों और पंडितों से मिली जानकारी अनुसार।)
इस बार 15 को ही मनाना शास्त्र सम्मत
सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन संक्रांति है। सूर्य का धनु से मकर राशि में 14 जनवरी की रात 12.58 बजे प्रवेश हो रहा है। ऐसे में धर्म शास्त्रानुसार यह पर्व 15 जनवरी को मनाया जाना शास्त्र सम्मत है। पं. अरविंद पांडे के अनुसार इस साल 14 जनवरी को देर रात के बाद सूर्य का मकर राशि में प्रवेश हो रहा है। ऐसे में संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को ही मनाया जाएगा। पुण्यकाल का मतलब है, स्नान-दान आदि।
बालकाण्ड मानस निर्माण की तिथि
संबत सोरह सै एकतीसा। करउँ कथा हरि पद धरि सीसा॥2॥
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं। तीरथ सकल जहाँ चलि आवहिं॥3॥
जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना। करहिं राम कल कीरति गाना॥4॥
जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर॥34॥
नदी पुनीत अमित महिमा अति। कहि न सकइ सारदा बिमल मति॥1॥
चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजें तनु नहिं संसारा॥2॥
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा। सुनत नसाहिं काम मद दंभा॥3॥
मन करि बिषय अनल बन जरई। होई सुखी जौं एहिं सर परई॥4॥
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन। कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन॥5॥
तातें रामचरितमानस बर। धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर॥6॥
1526: पानीपत का प्रथम युद्ध, 1 लाख सैनिकों और 300 हाथियों का दम
पानीपत का पहला युद्ध 21 अप्रैल 1526 को लड़ा गया था। इस युद्ध ने उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी। इस लड़ाई में पहली बार बारूदी आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने का प्रयोग किया गया था। सन 1526 में काबुल के तैमूरी शासक जहीर उद्दीन मोहम्मद बाबर की सेना ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी की सेना को युद्ध में परास्त किया।
एक अनुमान के मुताबिक बाबर की सेना में 15000 के करीब सैनिक और 20-24 मैदानी तोपें थीं। लोदी का सेनाबल 130000 के आसपास था, जबकि लड़ाकू सैनिकों की संख्या कुल 100000 से 110000 के आसपास थी, इसके साथ कम से कम 300 हाथियों ने भी युद्ध में भाग लिया था।
वीडियो: आतंकियों की लाश पर पेशाब किए जाने से भड़के मुसलमान!
अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी सैनिकों द्वारा तालिबानियों के शव पर पेशाब करने से जुड़ा सनसनीखेज वीडियो सामने आया है। वीडियो सामने आने के बाद अमेरिकी नौसेना ने जांच का भरोसा दिया है।
अमेरिका स्थित एक सिविल राइट ग्रुप ने इस घटना की निंदा की है। काउंसिल ऑन अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशंस ने अमेरिकी रक्षा मंत्री लियोन पेनेटा को लिखे पत्र में कहा है, ‘इस मामले में दोषी पाए जाने पर सेना और अमेरिका के कानूनों के मुताबिक कड़ी सजा दी जानी चाहिए।’
यू ट्यूब पर यह वीडियो 11 जनवरी को ही पोस्ट किया गया है लेकिन इसमें यह नहीं पता चलता है कि यह वीडियो किस तारीख को शूट किया गया है। इस वीडियो में अमेरिकी मरीन कोर की वर्दी पहने चार लोगों को तीन तालिबानियों के शव पर पेशाब करते हुए दिखाया गया है। इनमें से एक शख्स मजाक में कहता है, ‘हैव ए नाइस डे, बडी।’
मरीन कोर का कहना है, ‘हमने अभी इस वीडियो की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं की है लेकिन इस तरह की घटना हमारे नैतिक मूल्यों के खिलाफ है। इस मामले की पूरी जांच की जाएगी।’
इस वीडियो के चलते अफगानिस्तान में अमेरिकी लोगों और सैनिकों के खिलाफ स्थानीय लोगों की भावनाएं भड़क सकती हैं। ‘आतंक के खिलाफ जंग’ में शामिल अमेरिकी सैनिकों पर पहले से ही दुर्व्यवहार के आरोप लगते रहे हैं। यह वीडियो ऐसे समय आया है जब अमेरिका अफगानिस्तान में शांति बहाली की उम्मीद करते हुए अपने सैनिकों को यहां से धीरे-धीरे हटाने की तैयारी में है।
नकली नोटों की अब तक की सबसे बड़ी धरपकड़
नई दिल्ली. दिल्ली पुलिस ने 6 करोड़ रुपये के नकली नोटों की धरपकड़ की है। इसे देश में जाली नोटों का अब तक का सबसे बड़ा जखीरा माना जा रहा है। दिल्ली के डाबड़ी इलाके से एक गोदाम के पास दो टेंपो से 500 और 1000 के नकली नोटों की खेप पकड़ी गई। नकली नोटों को कपड़ों के बंडल में छुपाकर रखा गया था। पुलिस की स्पेशल सेल ने इस सिलसिले में डाबड़ी से दो लोगों को गिरफ्तार भी किया है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि यह नोट पाकिस्तान की खूफिया एजेंसी आईएसआई ने नेपाल के रास्ते ये रुपये भिजवाए गए हैं।
दूसरी तरफ, उड़ीसा के क्योंझर जिले में पुलिस ने दो लोगों को एक साप्ताहिक बाज़ार में नकली नोटों का इस्तेमाल करते हुए धर दबोचा है। इनके पास से 6 हजार के नकली नोट बरामद किए गए हैं।
गौरतलब है कि एक दिन पहले ही बुधवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने जाली भारतीय नोटों के एक बड़े रैकेट का खुलासा किया था। एजेंसी ने इस सिलसिले में 14 लोगों को गिरफ्तार किया था। इस रैकेट के तार देश के कई राज्यों में फैले हुए हैं और इनके तार सीमा पार पाकिस्तान से भी जुड़े हुए हैं जहां इन नकली नोटों को छापा जाता है। गिरफ्तार किए गए आरोपियों में गैंग के सरगना भी शामिल हैं, जो पश्चिम बंगाल के माल्दा जिले से रैकेट चलाते थे।
एनआईए के अधिकारी के मुताबिक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की भारत को अस्थिर और आर्थिक तौर पर कमजोर करने की साजिश के तहत वहां से नकली नोटों का जखीरा भारत में लाया जा रहा है।
चमत्कारी जड़ी बूटी: इसे खाने से दिखने लगते हैं भूत, भविष्य और वर्तमान
ब्राह्मी एक ऐसी जड़ी बूटी है जिसे आयुर्वेद में बहुत उपयोगी माना गया है। ब्राह्मी तराई वाले स्थानों पर उगती है। बुद्धि तथा उम्र को बढ़ाती है। यह रसायन के समान होती है। ब्राह्मी में एल्केलाइड तथा सेपोनिन नामक दो मुख्य: जैव सक्रिय पदार्थ पाए जाते हैं। इसमें पाए जाने वाले दो मुख्य एल्केलाइड हैं ब्राह्मीन तथा हरपेस्टिन जबकि बेकोसाइड ए तथा बी मुख्य सेपोनिन हैं।
गुणों की दृष्टि से ब्राह्मी कुचला में पाए जाने वाले एल्केलाइड स्ट्रिकनीन के समान हैं परन्तु यह उसकी तरह विषाक्त नहीं होती। ब्राह्मी में बोटूलिक अम्ल, स्टिग्मा स्टेनॉल, बीटा-साइटोस्टीरॉल तथा टेनिन आदि भी पाए जाते हैं। हरे पत्तों में प्राय: एल्केलाइड तथा उडऩशील तेल पाए जाते हैं जबकि सूखे पौधों में सेण्टोइक एसिड तथा सेण्टेलिंक एसिड भी पाए जाते हैं। बुखार को खत्म करती है। याददाश्त को बढ़ाती है।
सफेद दाग, पीलिया, प्रमेह और खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन को रोकती है। बैठे हुए गले को साफ करती है। ब्राह्मी का उपयोग दिल के लिए लाभदायक होता है। यह मानसिक पागलपन को दूर करता है। सही मात्रा के अनुसार इसका सेवन करने से निर्बुद्ध, त्रिकालदर्शी यानी भूत, भविष्य और वर्तमान सब दिखाई देने लगते हैं। मण्डूक परनी भी ब्राह्मी के गुणों के समान होती है। ब्राह्मी घृत, ब्राही रसायन, ब्राही पाक, ब्राह्मी तेल, सारस्वतारिष्ट, सारस्वत चूर्ण आदि के रूप में प्रयोग किया जाता हैं।
वीक मेमोरी में ब्राह्मी का रस या चूर्ण पानी के साथ रोगी को दिया जाना चाहिए। ब्राह्मी के तेल की मालिश से कमजोर मस्तिष्क मजबूत हो जाता है तथा बुद्धि बढती है। तेल बनाने के लिए 1 लीटर नारियल तेल में लगभग 15 तोला ब्राह्मी का रस उबाल लें। यह तेल सिरदर्द, चक्कर, भारीपन, चिंता आदि से भी राहत दिलाता है। हिस्टीरिया जैसे रोगों में यह तुरन्त प्रभावी होती है जिससे सभी लक्षण तुरन्त नष्ट हो जाते हैं। चिन्ता तथा तनाव में ठंडाई के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त किसी बीमार या अन्य बीमारी के कारण आई निर्बलता के निवारण के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। कुष्ठ और चर्म रोगों में भी यह उपयोगी है। खांसी तथा गला बैठने पर इसके रस का सेवन काली मिर्च तथा शहद के साथ करना चाहिए।
जानिए क्या है तिल चतुर्थी की कथा व महत्व
माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को तिल चतुर्थी का व्रत किया जाता है इसे संकटा गणेश चतुर्थी भी कहते हैं। इस बार यह व्रत 12 जनवरी, गुरुवार को है। इस व्रत से संबंधित एक कथा भी है जो इस प्रकार है-
एक बार देवता अनेक विपदाओं में घिरे थे। तब वे मदद के लिए भगवान शिव के पास आए। उस समय भगवान शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी थे। देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय व गणेशजी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेशजी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।
यह सुनते ही कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गये। गणेशजी सोच में पड़ गये कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो उन्हें बहुत समय लग जायेगा। तभी उन्हें एक उपाय सुझा वे अपने स्थान से उठकर सात बार अपने माता-पिता की परिक्रमा करके बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिवजी ने श्रीगणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।
तब गणेश जी बोले कि माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं। यह सुनकर भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेशजी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चन्द्रमा को अध्र्य देगा उसके तीनों ताप - दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होगें। उस व्यक्ति को सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलेगी। उसे सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी व सुख तथा समृद्धि में वृद्धि होगी।
लोहड़ी 13 को, उमंग व उल्लास का पर्व
पंजाब एवं जम्मू कश्मीर में 'लोहड़ी' नाम से मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार लोहड़ी मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाई जाती है। इस बार लोहड़ी का पर्व 13 जनवरी, शुक्रवार को है। संक्रांति के एक दिन पूर्व जब सूरज ढल जाता है तब घरों के बाहर बड़े-बड़े अलाव जलाए जाते हैं। जनवरी की तीखी सर्दी में जलते हुए अलाव अत्यन्त सुखदायी व मनोहारी लगते हैं।
स्त्री तथा पुरुष सज-धजकर अलाव के चारों ओर एकत्रित होकर भांगड़ा नृत्य करते हैं। चूंकि अग्नि ही इस पर्व के प्रमुख देवता हैं, इसलिए चिवड़ा, तिल, मेवा, गजक आदि की आहूति भी अलाव में चढ़ायी जाती है। नगाड़ों की ध्वनि के बीच यह नृत्य एक लड़ी की भाँति देर रात तक चलता रहता है।
इसके बाद सभी एक-दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते हैं तथा आपस में भेंट बाँटते हैं और प्रसाद वितरण भी होता है। प्रसाद में पाँच मुख्य वस्तुएँ होती हैं - तिल, गजक, गुड़, मूँगफली तथा मक्का के दाने। आधुनिक समय में लोहड़ी का पर्व लोगों को अपनी व्यस्तता से बाहर खींच लाता है। लोग एक-दूसरे से मिलकर अपना सुख-दु:ख बाँटते हैं। यही इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य भी है।