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12 जनवरी 2012

जब शेर का शिकार करने नाव से जाती थीं कोटा की महारानी

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कोटा. पूर्व राजमाता शिवकुमारी 1967 में खानपुर विधानसभा से विधायक चुनी गई। वर्ष 1966 से 1976 तक अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा की उपाध्यक्ष और 1964 में राजस्थान क्षत्रिय महासभा की अध्यक्ष रही। वे महारानी गायत्री देवी गल्र्स स्कूल जयपुर में बोर्ड ऑफ गर्वनर की उपाध्यक्ष भी रही। शिक्षा के प्रति उनका गहरा लगाव रहा।

कोटा में उन्होंने लेडीज क्लब की स्थापना की और 1939 से 1945 तक स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग किया। वे कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी रहीं। रोटरी क्लब कोटा, नेशनल रायफल क्लब कोटा, थंडर बोल्ड रायफल क्लब बीकानेर, कोटा रायफल क्लब व दिल्ली कॉमनवेल्थ एसोसिएशन, इंटेक की सदस्य और श्रुति मंडल जयपुर व रागरंग दिल्ली की संरक्षक रही। उन्हें शिकार का शौक था। उन्होंने वर्ष 1961 में नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप दिल्ली में अवार्ड जीता। शास्त्रीय संगीत में भी खासी रुचि थी।

बहू बन कर आई तो जश्न में डूबा था कोटा

रियासतकाल में कोटा के महाराव भीम सिंह (द्वितीय) के साथ पूर्व राजमाता शिवकुमारी का विवाह 30 अप्रैल 1930 को हुआ था। वे बीकानेर रियासत के महाराजा गंगासिंह बहादुर की पुत्री थी। इतिहासकार डॉ. जगत नारायण की एक पुस्तक में लिखा है कि शादी के इस उत्सव को इतने उल्लास एवं भव्यता से मनाया गया था कि कोटा में न तो इससे पहले और न ही इसके बाद कोई बड़ा जश्न हुआ। शादी की खुशी में 14 अप्रैल 1930 को नगर भोज दिया गया था।

जिसमें कोटा के सभी जाति एवं सभी धर्म के लोगों को आमंत्रित किया गया था। उस समय डेढ़ लाख लोगों का भोजन महज पांच घंटे में संपन्न हो गया था। परदा वाली महिलाओं को गल्र्स स्कूल एवं अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को बायनी मेमोरियल हॉल में भोज कराया गया।

उस दिन कोटा में जो भी व्यक्ति था, उसे भोज में शामिल किया गया। यहां तक कि उस दिन कोटा स्टेशन से ट्रेन में गुजरने वाले मुसाफिरों को स्काउट्स के माध्यम से मिठाई वितरित की गई। राजमाता के पारिवारिक जीवन का अगला सुखद क्षण 21 फरवरी 1934 को आया, जब राजमहल में भंवर बृजराज सिंह का जन्म हुआ। इस खुशी के अवसर पर तत्कालीन महाराव ने चंबल पुल पर लगने वाला टैक्स समाप्त कर दिया।

कला-संस्कृति से था लगाव

इंटेक कोटा चैप्टर संयोजक हरिसिंह पालकिया ने पूर्व राजमाता के निधन पर गहरा दुख जताते हुए कहा कि राजमाता को प्रकृति, वन्यजीवों व पुरा धरोहर से विशेष लगाव होने के साथ ही कला, संस्कृति में खासा दखल था। शास्त्रीय संगीत व मांड गायकी की उन्हें बहुत अच्छी समझ थी।

वे कला की पारखी होने के साथ ही कलाकारों को प्रोत्साहन देती थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के संरक्षण में 1984 में जब इंटेक (भारतीय सांस्कृतिक निधि) की स्थापना हुई थी और राजीव गांधी सबसे पहले अध्यक्ष बने थे, तब से ही राजमाता शिवकुमारी इंटेक की आजीवन सदस्य थी।

इतिहासविद फिरोज अहमद के मुताबिक बूंदी में 1990 में जब इंटेक द्वारा हस्तकला शिल्प प्रदर्शनी लगाई गई थी, तब भी वहां राजमाता तीन दिन तक प्रदर्शनी को देखने गई। कोटा के बृजविलास भवन में इंटेक की ओर से 2001 से 2003 तक तीन बार परंपरागत हस्तकला प्रदर्शनी लगी, तब भी राजमाता ने अपनी दोनों पुत्रियों के साथ प्रदर्शनी को देखा।

गढ़ से दरा तक नाव में जाती थी शिकार करने

जंगलों में शिकार करने जाती थी। इसके लिए गढ़ पैलेस के पीछे जहां वर्तमान में कोटा बैराज है, वहां पर गणगौर घाट हुआ करता था। उस गणगौर घाट से बड़े-बड़े नावड़े (नाव)लगते थे। जिन पर राजमाता, सैनिक व नौकर चाकर सवार होते थे। एक नाव में मनोरंजन के लिए गायक व वादक होते थे।

पूरा एक दिन लगता था दरा के जंगल में पहुंचने में। जब जानवर पानी पीने के लिए घाट की तरफ आते थे तब नाव से ही वे शेर का शिकार करती थी। उस समय उनके साथ गए महल के ही एक कर्मचारी के अनुसार जब भी शिकार पर जाती थी तो बिना शेर लिए लौटती नहीं थी। एक बार तो एक साथ दो शेर का शिकार करके लौटी थी। इसके अलावा कई बार वे सड़क मार्ग से भी शिकार के लिए दरा जाती थी । पोलो ग्राउंड को अस्पताल के लिए दे दिया।

राजमाता व महाराव भीम सिंह ने कभी संपत्ति को महत्व नहीं दिया। उन्होंने हमेशा जनता की भलाई के लिए कई संपत्तियों का दान किया। एक बार शहर में अस्पताल खोलने के लिए जगह व धन की बात आई तो उन्होंने अपना पोलो ग्राउंड दे दिया। उस जगह पर महाराव भीम सिंह अस्पताल बनाया गया। इसके भवन के लिए धन भी खुद ने ही दिया था।

समय की पाबंद थी राजमाता

राजमाता काफी मिलनसार थी। कोई भी उनसे मिलने जाता था तो वे इंकार नहीं करती थी, लेकिन समय की काफी पाबंद थी। उन्होंने स्पष्ट कह रहा था कि पहले समय ले लो और तय समय पर आओ। जब वे खानपुर से विधानसभा का चुनाव लड़ी तो मैं एक माह तक उनके साथ चुनावी दौरे पर रहा।

उनमें राजमाता का रौब था,लेकिन व्यवहार सबके लिए अच्छा और मृदुभाषी था। कुछ साल पहले बीकानेर से जज ओपी विश्नोई कोटा आए थे। वे राजमाता से मिलना चाहते थे। राजमाता को पता चला तो तत्काल उन्हें बुलाया और काफी देर तक उनसे कई मामलों पर चर्चा की। इसी प्रकार उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत कुछ साल पूर्व कोटा आए थे तब भी राजमाता से मिलकर गए थे।




जूनागढ़ में 21 मई 1946 को शेर के शिकार के बाद पूर्व राजमाता शिवकुमारी के साथ सामूहिक फोटो।

जज ओपी विश्नोई के साथ पूर्व राजमाता शिवकुमारी

पूर्व उपराष्ट्रपति भैंरोसिंह शेखावत के साथ पूर्व राजमाता

राजमाता का निवास, यहीं से निकलेगी अंतिम यात्रा

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