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04 अगस्त 2010

आज सुबह सवेरे


आज सुबह सवेरे
चिड़ियें चहकाती हें
हवाएं बर्फाती हें
हसीन वादियों में देखों
आज फिर उनकी याद सताती हे
आज सुबह सवेरे
फिर याद उनकी आती हे ,
वोह गर्म साँसें ,वोह नर्म होंट
वोह कटीली अदाएं ,
हम पर मर मिटने का उनका शोक
आज फिर देखों
याद उनकी आती हे
काश पहले की तरह
आज सुबह सवेरे
मुझे फिर वोह मिल जाएँ
आयें और सीने से मेरे
हमेशां की तरह लिपट जाएँ
बस आज सुबह सवेरे
याद उनकी फिर आती हे
जब वोह नहीं आते
तो दिल मेरा
सूरज की तरह
डूब जाता हे आँखें मेरी नम हो जाती हें
लेकिन ,
राज़ उनसे मेरे बिछड़ने का
ज़ाहिर ना हो लोगों पर
इसीलियें अपने आंसुओं को
हम लहू समझ कर पी जाते हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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