तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
04 अगस्त 2010
खुदा सा लगा
झालावाड राजस्थान के जनाब राजेन्द्र तिवारी जी ने
अपनी रचना खुदा सा लगा में कहा हे .........
वोह समन्दर पाकर भी प्यासा लगा
दुनिया में बढा ही रुआंसा लगा ।
मुद्दतों में जिस शोहरत को हांसिल किया
वक्त खोने में उसको जरा सा लगा।
मोसम सा आलम बदल सा गया
दरमियाँ दिलों के कुन्हासा सा लगा ।
मुसीबत में वोह गुदगुदा के गया
आदमी सीरत में खड़ा सा लगा
अपनों ने जख्मों के तोहफे दिए
बेगानों से मिलके मजा सा लगा ।
सजदे में उसके थीं नुरानियां
दुआओं में असर भी खुदा सा लगा
गर्दिशों में जो हमसाया लगा
खुशियों में मेरी क्यूँ खफा सा लगा ।
प्रस्तुत करता अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार प्रसार मे आपका योगदान सराहनीय है।
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
जवाब देंहटाएंकिस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
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