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18 अप्रैल 2025

वक़्फ़ संशोधन विधेयक" — एक संवैधानिक साक्षात्का

 

वक़्फ़ संशोधन विधेयक" — एक संवैधानिक साक्षात्कार
स्थान: अखण्ड टाइम्स का विशेष कक्ष
समय: संवैधानिक संकट के मुहाने पर
साक्षात्कारकर्ता:
Akhtar Khan Akela
(कल्पना में व्यक्ति स्वरूप)
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सरकार ने वक़्फ़ संशोधन पर करोड़ों रुपये खर्च किए, JPC बिठाई, संसद में हंगामा करवा कर बिल पास करवाया, फिर सुप्रीम कोर्ट में आकर तैयारी विहीन दिखी — क्या ये संविधान के साथ मखौल नहीं?
संविधान का विवेक:
यकीनन, जब सरकारें विधायी प्रक्रिया को महज़ धार्मिक प्रतीकों और राजनीतिक लाभ के चश्मे से देखने लगें, तो विधायिका का नैतिक बल कमज़ोर होता है। कानून तब तक ताकतवर नहीं होता जब तक उसकी आत्मा न्यायप्रिय न हो।
तो फिर संसद में बहस के दौरान विपक्ष ने मूलभूत सवाल क्यों नहीं उठाए? मंदिरों की संपत्तियाँ, देवस्थान बोर्ड, इनका प्रबंधन — सब पर चुप्पी क्यों?
संविधान का विवेक:
क्योंकि राजनीति अब “प्रतिरोध नहीं, प्रतीकरण” का खेल बन चुकी है। विपक्ष अब असली सवालों की जगह, वोटर के आईने में अपना चेहरा चमकाने की कोशिश में जुटा है।
अख्तर:
प्रधानमंत्री पंचर की दुकानें देख कर रोज़गार की बात करते हैं लेकिन वक़्फ़ जैसी संस्थाओं पर अरबों का नियंत्रण सुनिश्चित करने की कवायद में जुटे हैं। क्या ये विरोधाभास नहीं?
संविधान का विवेक:
ये विरोधाभास नहीं, बल्कि सुनियोजित दिशा परिवर्तन है। असली समस्याओं से ध्यान हटाकर भावनात्मक मुद्दों में उलझाना अब सत्ता की रणनीति बन चुकी है।
अख्तर:
राष्ट्रपति महोदया ने बिना संवैधानिक परीक्षण के अधिसूचना जारी कर दी — क्या राष्ट्रपति का पद अब सिर्फ रबड़ स्टैम्प रह गया?
संविधान का विवेक:
जब चयन प्रणाली राजनीतिक हित से संचालित हो, तो रबर स्टैम्पिंग ही शेष रह जाती है। यह संवैधानिक संस्थाओं की आत्मा को खोखला करने जैसा है।
अख्तर:
क्या सुप्रीम कोर्ट इस पूरे मामले में सिर्फ एक न्यायिक मंच रह जाएगा, या वास्तव में संविधान के रक्षक की भूमिका निभाएगा?
संविधान का विवेक:
अब फैसले का वक़्त है। या तो न्यायपालिका अपने “धर्मनिरपेक्ष संतुलन” को सिद्ध करेगी, या फिर खुद को एक और “संवैधानिक तमाशे” में बदल देगी।
अख्तर:
आखिर में, आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
संविधान का विवेक:
यदि भारत को “राजनीतिक हिंदुत्व” और “प्रशासनिक इस्लामिक ढांचे” की भेंट चढ़ाना है, तो फिर संविधान सिर्फ एक किताब रहेगा।
लेकिन अगर लोकतंत्र जीवित रखना है, तो हर नागरिक, हर सांसद, हर न्यायाधीश को अपने कर्तव्यों और विवेक के साथ खड़ा होना होगा।
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Arun Unfiltered

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