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16 अप्रैल 2022

हेट स्पीच*

 

हेट स्पीच*
धारा 505(1) और 505(2), अनुच्छेद 19(1)(ए), जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (आरपीए), श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ।
*हेट स्पीच के बारे में,* भारतीय समाज में अभद्र भाषा के बढ़ने के कारण और इस प्रकार के मुद्दों से निपटने के लिये उठाए जा सकने वाले कदम।
*चर्चा में क्यों?*
हाल ही में उत्तराखंड में एक नेता के खिलाफ समाज के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने के मामले में FIR दर्ज की गई थी।
*प्रमुख बिंदु:*
*परिचय:*
सामान्य तौर पर यह उन शब्दों को संदर्भित करता है जिनका इरादा किसी विशेष समूह के प्रति घृणा पैदा करना हो, यह समूह एक समुदाय, धर्म या जाति हो सकता है। लेकिन इसके परिणामस्वरूप हिंसा होने की संभावना होती है।
पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो ने हाल ही में साइबर उत्पीड़न के मामलों पर जाँच एजेंसियों के लिये एक मैनुअल प्रकाशित किया है, जिसमें हेट स्पीच को एक ऐसी भाषा के रूप में परिभाषित किया गया है जो किसी व्यक्ति की पहचान और अन्य लक्षणों जैसे- यौन, विकलांगता, धर्म आदि के आधार पर उसे बदनाम, अपमान, धमकी या लक्षित करती है।
*भारत के विधि आयोग* (Law Commission) की 267वीं रिपोर्ट में हेट स्पीच को मुख्य रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन, धार्मिक विश्वास आदि के खिलाफ घृणा को उकसाने के रूप में देखा गया है।
यह निर्धारित करने के लिये कि भाषा अभद्र है या नहीं, भाषा का संदर्भ एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक स्वायत्तता और मुक्त भाषण के सिद्धांतों का प्रयोग नहीं करना है जो समाज के किसी भी वर्ग के लिये हानिकारक हो सकता है।
विचारों की बहुलता को बढ़ावा देने के लिये मुक्त भाषण आवश्यक है जहाँ *अभद्र भाषा अनुच्छेद 19 (1) (ए) (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता)* का अपवाद बन जाती है।
हेट स्पीच के प्रमुख कारण:
*श्रेष्ठता की भावना:*
लोग उन रूढ़ियों में विश्वास करते हैं जो कि उनके दिमाग में बसी हुई हैं और ये रूढ़ियाँ उन्हें यह विश्वास दिलाने के लिये प्रेरित करती हैं कि एक वर्ग या व्यक्तियों का समूह उनसे हीन है तथा इसलिये सभी के एक समान अधिकार नहीं हो सकते।
विशेष विचारधारा के प्रति जिद:
शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के अधिकार की परवाह किये बिना किसी विशेष विचारधारा को मानते रहने की जिद हेट स्पीच को और बढ़ाती है।
हेट स्पीच से संबंधित कानूनी प्रावधान:
*भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत:*
*IPC की धारा 153A और 153B:* ये दो समूहों के बीच दुश्मनी तथा नफरत पैदा करने वाले कृत्यों को दंडनीय बनाते हैं।
*IPC की धारा 295A:* यह धारा जान-बूझकर या दुर्भावनापूर्ण इरादे से लोगों के एक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले कृत्यों को दंडित करने से संबंधित है।
*IPC की धारा 505(1) और 505(2): ये* धाराएँ ऐसी सामग्री के प्रकाशन तथा प्रसार को अपराध बनाती हैं जिससे विभिन्न समूहों के बीच द्वेष या घृणा उत्पन्न हो सकती है।
*_जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत:_*
*जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (* *Representation of People’s Act), 1951* की धारा 8 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुरुपयोग के दोषी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकती है।
*RPA की धारा 123(3A) और 125:* चुनावों के संदर्भ में जाति, धर्म, समुदाय, जाति या भाषा के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देने पर रोक लगाती हैं और इसे भ्रष्ट चुनावी कृत्य के अंतर्गत शामिल करती हैं।
आईपीसी में बदलाव के लिये सुझाव:
*विश्वनाथन समिति, 2019:*
इसने धर्म, नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, लैंगिक पहचान, यौन, जन्म स्थान, निवास, भाषा, विकलांगता या जनजाति के आधार पर अपराध करने के लिये उकसाने हेतु आईपीसी में धारा *153 सी (बी) और धारा 505 ए* का प्रस्ताव रखा।
इसने 5,000 रुपए के जुर्माने के साथ दो वर्ष तक की सज़ा का प्रस्ताव रखा।
बेज़बरुआ समिति, 2014:
इसने आईपीसी की धारा *153 सी* (मानव गरिमा के लिये हानिकारक कृत्यों को बढ़ावा या बढ़ावा देने का प्रयास) में संशोधन कर पाँच वर्ष की सज़ा और जुर्माना या दोनों तथा धारा *509 ए* (शब्द, इशारा या कार्य किसी विशेष जाति के सदस्य का अपमान करने का इरादा) में संशोधन कर तीन वर्ष की सज़ा या जुर्माना या दोनों का प्रस्ताव दिया।
*‘हेट स्पीच’* से संबंधित कुछ मामले:
सर्वोच्च न्यायलय का हालिया निर्णय:
बीते दिनों सर्वोच्च न्यायालय द्वारा *स्वतंत्र अभिव्यक्ति (Free Speech)* की सीमाओं और हेट स्पीच पर चर्चा करते हुए कहा गया है कि “ऐतिहासिक सत्यता (Historical Truths) का वर्णन समाज के विभिन्न वर्गों या समुदायों के मध्य बिना किसी घृणा या शत्रुता का खुलासा किये या प्रोत्साहन के किया जाना चाहिये।"
श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ:
संविधान के *अनुच्छेद 19(1)(a)* द्वारा गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के संदर्भ में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की *धारा 66A* से संबंधित मुद्दे उठाए गए थे, जहाँ न्यायालय ने चर्चा, वकालत और उत्तेजना के बीच अंतर को स्पष्ट करते हुए कहा कि पहले दो तत्त्व (चर्चा और वकालत) *अनुच्छेद 19(1)* का हिस्सा हैं।
अरूप भुइयां बनाम असम राज्य:
न्यायालय ने कहा कि केवल एक कृत्य के लिये तब तक दंडित नहीं किया जा सकता जब तक कि कोई व्यक्ति हिंसा का सहारा नहीं लेता या किसी अन्य व्यक्ति को हिंसा के लिये उकसाता नहीं है।
*एस. रंगराजन बनाम पी. जगजीवन राम:*
इस मामले में न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को तब तक प्रतिबंधित नहीं जा सकता जब तक कि इस तरह की स्थिति समुदाय/जनहित के लिये खतरनाक न हो जाए, जिसमें यह खतरा दूरस्थ या अनुमानित नहीं होना चाहिये। इस प्रकार प्रयुक्त अभिव्यक्ति के साथ एक निकट और प्रत्यक्ष संबंध होना चाहिये।
आगे की राह
‘ *शिक्षा’* नफरत को कम करने का सबसे कारगर तरीका है। लोगों में करुणा की भावना को बढ़ावा देने और समझ विकसित करने में हमारी शिक्षा प्रणाली की प्रमुख भूमिका हो सकती है।
*‘हेट स्पीच’* के विरुद्ध लड़ाई को एकदम अलग नज़रिये से नहीं देखा जा सकता है। इस पर संयुक्त राष्ट्र जैसे व्यापक मंच पर चर्चा होनी आवश्यक है। प्रत्येक ज़िम्मेदार सरकार, क्षेत्रीय निकायों और अन्य अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय अभिनेताओं को इस खतरे का जवाब देना चाहिये।
‘हेट स्पीच’ के मामलों को वैकल्पिक विवाद समाधान के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है क्योंकि यह न्यायालय की लंबी प्रक्रियाओं से वार्ता, मध्यस्थता और/या सुलह के माध्यम से पक्षों के बीच विवाद के निपटारे के लिये एक बदलाव का प्रस्ताव करता है।
साथ ही सार्वजनिक अधिकारियों को देखभाल के कर्तव्य की अवहेलना हेतु और सतर्कता समूहों को देश के नागरिकों के खिलाफ नफरत फैलाने से रोकने के लिये कार्रवाई नहीं करने हेतु जवाबदेह ठहराया जाना चाहिये।
*स्रोत: द हिंदू✍🏾✍🏾*

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