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04 मार्च 2022

और आदमी कभी (आजिज़ होकर अपने हक़ में) बुराई (अज़ाब वग़ैरह की दुआ) इस तरह माँगता है जिस तरह अपने लिए भलाई की दुआ करता है और आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ है

और आदमी कभी (आजिज़ होकर अपने हक़ में) बुराई (अज़ाब वग़ैरह की दुआ) इस तरह माँगता है जिस तरह अपने लिए भलाई की दुआ करता है और आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ है (11)
और हमने रात और दिन को (अपनी क़ुदरत की) दो निशानियाँ क़रार दिया फिर हमने रात की निशानी (चाँद) को धुँधला बनाया और दिन की निशानी (सूरज) को रौशन बनाया (कि सब चीज़े दिखाई दें) ताकि तुम लोग अपने परवरदिगार का फज़ल ढूँढते फिरों और ताकि तुम बरसों की गिनती और हिसाब को जानो (बूझों) और हमने हर चीज़ को खूब अच्छी तरह तफसील से बयान कर दिया है (12)
और हमने हर आदमी के नामए अमल को उसके गले का हार बना दिया है (कि उसकी किस्मत उसके साथ रहे) और क़यामत के दिन हम उसे उसके सामने निकल के रख देगें कि वह उसको एक खुली हुयी किताब अपने रुबरु पाएगा (13)
और हम उससे कहेंगें कि अपना नामए अमल पढ़ले और आज अपने हिसाब के लिए तू आप ही काफी हैं (14)
जो शख़्स रुबरु होता है तो बस अपने फायदे के लिए शह पर आता है और जो शख़्स गुमराह होता है तो उसने भटक कर अपना आप बिगाड़ा और कोई शख़्स किसी दूसरे (के गुनाह) का बोझ अपने सर नहीं लेगा और हम तो जब तक रसूल को भेजकर तमाम हुज्जत न कर लें किसी पर अज़ाब नहीं किया करते (15)
और हमको जब किसी बस्ती का वीरान करना मंज़ूर होता है तो हम वहाँ के खुशहालों को (इताअत का) हुक्म देते हैं तो वह लोग उसमें नाफरमानियाँ करने लगे तब वह बस्ती अज़ाब की मुस्तहक़ होगी उस वक़्त हमने उसे अच्छी तरह तबाह व बरबाद कर दिया (16)
और नूह के बाद से (उस वक़्त तक) हमने कितनी उम्मतों को हलाक कर मारा और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार अपने बन्दों के गुनाहों को जानने और देखने के लिए काफी है (17)
(और गवाह शाहिद की ज़रुरत नहीं) और जो शख़्स दुनिया का ख़्वाहाँ हो तो हम जिसे चाहते और जो चाहते हैं उसी दुनिया में सिरदस्त {फ़ौरन} उसे अता करते हैं (मगर) फिर हमने उसके लिए तो जहन्नुम ठहरा ही रखा है कि वह उसमें बुरी हालत से रौंदा हुआ दाखि़ल होगा (18)
और जो शख़्स आखि़र का मुतमइनी हो और उसके लिए खूब जैसी चाहिए कोशिश भी की और वह इमानदार भी है तो यही वह लोग हैं जिनकी कोशिश मक़बूल होगी (19)
(ऐ रसूल) उनको (ग़रज़ सबको) हम ही तुम्हारे परवरदिगार की (अपनी) बखि़्शश से मदद देते हैं और तुम्हारे परवरदिगार की बखि़्शिश तो (आम है) किसी पर बन्द नहीं (20)

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