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02 जनवरी 2022

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि हम पर हरगिज़ कोई मुसीबत पड़ नही सकती मगर जो ख़़ुदा ने तुम्हारे लिए (हमारी तक़दीर में) लिख दिया है

 (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हम पर हरगिज़ कोई मुसीबत पड़ नही सकती मगर जो ख़़ुदा ने तुम्हारे लिए (हमारी तक़दीर में) लिख दिया है वही हमारा मालिक है और ईमानदारों को चाहिए भी कि ख़़ुदा ही पर भरोसा रखें (51) (ऐ रसूल) तुम मुनाफिकों से कह दो कि तुम तो हमारे वास्ते (फतेह या शहादत) दो भलाइयों में से एक के ख़्वाह मख़्वाह मुन्तजि़र ही हो और हम तुम्हारे वास्ते उसके मुन्तजि़र हैं कि ख़़ुदा तुम पर (ख़ास) अपने ही से कोई अज़ाब नाजि़ल करे या हमारे हाथों से फिर (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो हम भी तुम्हारे साथ (साथ) इन्तेज़ार करते हैं (52)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम लोग ख़्वाह ख़ुशी से खर्च करो या मजबूरी से तुम्हारी ख़ैरात तो कभी कु़बूल की नहीं जाएगी तुम यक़ीनन बदकार लोग हो (53)
और उनकी ख़ैरात के क़ुबूल किए जाने में और कोई वजह मायने नहीं मगर यही कि उन लोगों ने ख़़ुदा और उसके रसूल की नाफ़रमानी की और नमाज़ को आते भी हैं तो अलकसाए हुए और ख़़ुदा की राह में खर्च करते भी हैं तो बे दिली से (54)
(ऐ रसूल) तुम को न तो उनके माल हैरत में डाले और न उनकी औलाद (क्योंकि) ख़़ुदा तो ये चाहता है कि उनको आल व माल की वजह से दुनिया की (चन्द रोज़) जि़न्दगी (ही) में मुबितलाए अज़ाब करे और जब उनकी जानें निकलें तब भी वह काफिर (के काफिर ही) रहें (55)
और (मुसलमानों) ये लोग ख़ुदा की क़सम खाएगें फिर वह तुममें ही के हैं हालाकि वह लोग तुममें के नहीं हैं मगर हैं ये लोग बुज़दिल हैं (56)
कि गर कहीं ये लोग पनाह की जगह (कि़ले) या (छिपने के लिए) ग़ार या घुस बैठने की कोई (और) जगह पा जाए तो उसी तरफ रस्सियाँ तोड़ाते हुए भाग जाएँ (57)
(ऐ रसूल) उनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो तुम्हें ख़ैरात (की तक़सीम) में (ख़्वाह मा ख़्वाह) इल्ज़ाम देते हैं फिर अगर उनमे से कुछ (माक़ूल मिक़दार(हिस्सा)) दे दिया गया तो खुश हो गए और अगर उनकी मजऱ् के मुवाफिक़ उसमें से उन्हें कुछ नहीं दिया गया तो बस फौरन ही बिगड़ बैठे (58)
और जो कुछ ख़ुदा ने और उसके रसूल ने उनको अता फरमाया था अगर ये लोग उस पर राज़ी रहते और कहते कि ख़़ुदा हमारे वास्ते काफी है (उस वक़्त नहीं तो) अनक़रीब ही खुदा हमें अपने फज़ल व करम से उसका रसूल दे ही देगा हम तो यक़ीनन अल्लाह ही की तरफ लौ लगाए बैठे हैं (59)
(तो उनका क्या कहना था) ख़ैरात तो बस ख़ास फकीरों का हक़ है और मोहताजों का और उस (ज़कात वग़ैरह) के कारिन्दों का और जिनकी तालीफ़ क़लब की गई है (उनका) और (जिन की) गर्दनों मे (गुलामी का फन्दा पड़ा है उनका) और ग़द्दारों का (जो ख़ुदा से अदा नहीं कर सकते) और खुदा की राह (जिहाद) में और परदेसियों की किफ़ालत में ख़र्च करना चाहिए ये हुकूक़ ख़़ुदा की तरफ से मुक़र्रर किए हुए हैं और ख़़ुदा बड़ा वाकि़फ कार हिकमत वाला है (60)

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