न लोगों ने तो अपने ख़़ुदा को छोड़कर अपनी आलिमों को और अपने ज़ाहिदों
को और मरियम के बेटे मसीह को अपना परवरदिगार बना डाला हालाकि उन्होनें
सिवाए इसके और हुक्म ही नहीं दिया गया कि ख़़ुदाए यकता (सिर्फ़ ख़ुदा) की
इबादत करें उसके सिवा (और कोई क़ाबिले परसतिश नहीं) (31)
जिस चीज़ को ये लोग उसका शरीक़ बनाते हैं वह उससे पाक व पाक़ीजा है ये
लोग चाहते हैं कि अपने मुँह से (फूंक मारकर) ख़़ुदा के नूर को बुझा दें और
ख़़ुदा इसके सिवा कुछ मानता ही नहीं कि अपने नूर को पूरा ही करके रहे (32)
अगरचे कुफ़्फ़ार बुरा माना करें वही तो (वह ख़़ुदा) है कि जिसने अपने
रसूल (मोहम्मद) को हिदायत और सच्चे दीन के साथ ( मबऊस करके) भेजता कि उसको
तमाम दीनो पर ग़ालिब करे अगरचे मुषरेकीन बुरा माना करे (33)
ऐ ईमानदारों इसमें उसमें शक नहीं कि (यहूद व नसारा के) बहुतेरे आलिम
ज़ाहिद लेागों के मालेनाहक़ (नाहक़) चख जाते है और (लोगों को) ख़़ुदा की
राह से रोकते हैं और जो लोग सोना और चाँदी जमा करते जाते हैं और उसको
ख़़ुदा की राह में खर्च नहीं करते तो (ऐ रसूल) उन को दर्दनाक अज़ाब की
ख़ुषखबरी सुना दो (34)
(जिस दिन वह (सोना चाँदी) जहन्नुम की आग में गर्म (और लाल) किया जाएगा
फिर उससे उनकी पेषानियाँ और उनके पहलू और उनकी पीठें दाग़ी जाएगी (और उनसे
कहा जाएगा) ये वह है जिसे तुमने अपने लिए (दुनिया में) जमा करके रखा था तो
(अब) अपने जमा किए का मज़ा चखो (35)
इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा ने जिस दिन आसमान व ज़मीन को पैदा किया
(उसी दिन से) ख़ुदा के नज़दीक ख़़ुदा की किताब (लौहे महफूज़) में महीनों की
गिनती बारह महीने है उनमें से चार महीने (अदब व) हुरमत के हैं यही दीन
सीधी राह है तो उन चार महीनों में तुम अपने ऊपर (कुष्त व ख़ून (मार काट)
करके) ज़़ुल्म न करो और मुषरेकीन जिस तरह तुम से सबके बस मिलकर लड़ते हैं
तुम भी उसी तरह सबके सब मिलकर उन से लड़ों और ये जान लो कि ख़़ुदा तो
यक़ीनन परहेज़गारों के साथ है (36)
महीनों का आगे पीछे कर देना भी कुफ्ऱ ही की ज़्यादती है कि उनकी बदौलत
कुफ़्फ़ार (और) बहक जाते हैं एक बरस तो उसी एक महीने को हलाल समझ लेते हैं
और (दूसरे) साल उसी महीने को हराम कहते हैं ताकि ख़़ुदा ने जो (चार महीने)
हराम किए हैं उनकी गिनती ही पूरी कर लें और ख़ुदा की हराम की हुयी चीज़ को
हलाल कर लें उनकी बुरी (बुरी) कारस्तानिया उन्हें भली कर दिखाई गई हैं और
खुदा काफिर लोगो को मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता (37)
ऐ ईमानदारों तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे कहा जाता है कि ख़़ुदा
की राह में (जिहाद के लिए) निकलो तो तुम लदधड़ (ढीले) हो कर ज़मीन की तरफ
झुके पड़ते हो क्या तुम आखि़रत के बनिस्बत दुनिया की (चन्द रोज़ा) जिन्दगी
को पसन्द करते थे तो (समझ लो कि) दुनिया की जि़न्दगी का साज़ो सामान (आखि़र
के) ऐश व आराम के मुक़ाबले में बहुत ही थोड़ा है (38)
अगर (अब भी) तुम न निकलोगे तो ख़़ुदा तुम पर दर्दनाक अज़ाब नाजि़ल
फरमाएगा और (ख़़ुदा कुछ मजबरू तो है नहीं) तुम्हारे बदले किसी दूसरी क़ौम
को ले आएगा और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते और ख़़ुदा हर चीज़ पर
क़ादिर है (39)
अगर तुम उस रसूल की मदद न करोगे तो (कुछ परवाह् नहीं ख़़ुदा मददगार है)
उसने तो अपने रसूल की उस वक़्त मदद की जब उसकी कुफ़्फ़ार (मक्का) ने (घर
से) निकल बाहर किया उस वक़्त सिर्फ (दो आदमी थे) दूसरे रसूल थे जब वह दोनो
ग़ार (सौर) में थे जब अपने साथी को (उसकी गिरिया व ज़ारी (रोने) पर) समझा
रहे थे कि घबराओ नहीं ख़़ुदा यक़ीनन हमारे साथ है तो ख़़ुदा ने उन पर अपनी
(तरफ से) तसकीन नाजि़ल फरमाई और (फरिश्तों के) ऐसे लष्कर से उनकी मदद की
जिनको तुम लोगों ने देखा तक नहीं और ख़ुदा ने काफिरों की बात नीची कर दिखाई
और ख़़ुदा ही का बोल बाला है और ख़़ुदा तो ग़ालिब हिकमत वाला है (40)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
31 दिसंबर 2021
सिवाए इसके और हुक्म ही नहीं दिया गया कि ख़़ुदाए यकता (सिर्फ़ ख़ुदा) की इबादत करें उसके सिवा (और कोई क़ाबिले परसतिश नहीं)
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