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18 अप्रैल 2021

देश में युद्ध का संकट हो , महामारी का संकट हो , साम्प्रदायिक दंगों का संकट हो , सकारात्मक , जर्नलिज़्म देश को हर संकट से निकाल देता है , लेकिन नौसिखिया जर्नलिज़्म , पक्षपाती जर्नलिज़्म ,, देश को तोड़ देता है

 

देश में युद्ध का संकट हो , महामारी का संकट हो , साम्प्रदायिक दंगों का संकट हो , सकारात्मक , जर्नलिज़्म देश को हर संकट से निकाल देता है , लेकिन नौसिखिया जर्नलिज़्म , पक्षपाती जर्नलिज़्म ,, देश को तोड़ देता है , वर्तमान हालातों में , कोरोना संकटकाल में ,, पत्रकारिता का रुख , डराने वाला है , सकारात्मक व्यवस्था से कोसों दूर है , हालात यह है के , रोज़ अख़बार की सुर्खियां पढ़कर , इलेक्ट्रॉनिक मिडिया की खबरें टी वी पर देखकर , घर में , क्वारेंटाइन हो रहे , घर में क्वारेंटाइन रहकर , इलाज करवा रहे स्वस्थ मरीज़ भी , डिप्रेशन में आने लगे है , और सैकड़ों मरीज़ अनावश्यक अवसाद में है , वोह ख़ौफ़ज़दा हैं ,, उनकी घबराहट उनकी परेशानी , बिमारी बढ़ा रही है , ऐसे में कोरोना एवाइज़री में , जनहित व्यवस्था के तहत , ,कोरोना संबंधित खबरों के लिए सरकरी स्तर पर , एक विस्तृत गाइड लाईन जारी किया जाना ज़रूरी हो गया है ,,, कोटा सहित , राजस्थान और देश भर के हालात संकटग्रस्त है , सरकारों ने , व्यवस्थापकों ने , प्रधानमंत्री ने , मुख्यमंत्रियों ने जो ढिलाई की है , उसके नतीजे तो देश भुगत रहा है , लेकिन अब , जो हो गया सो हो गया , हमे सम्भलने के लिए , ,,सावधानियों की ज़रूरत है , ज़िम्मेदारी , ईमानादारी दिखाने की ज़रूरत है , सरकारों पर , ,ईमानदाराना तरीके से , काम करने के लिए दबाव बनाने की ज़रूरत है , चेन तोड़ने के नाम पर लोकडाउन एक व्यवस्था हो सकती है , लेकिन यह स्थाई समाधान नहीं ,, पहली बार सरकार ने कोरोना कर्फ्यू में , ज़िम्मेदारी दिखाने की कोशिश की है , शनिवार को , सरकारी दफ्तर बंद रहते है , लेकिन स्कूल खुले रहते है , इस बार स्कूलों में अवकाश हुआ , अदालतों में भी हाईकोर्ट ने बढ़ा दिल दिखाया और , ज़ीरो मोबिलिटी घोषित कर कार्य स्थगन करते हुए सभी पत्रावलियों को सोमवार को सुनवाई के लिए रखा , यह सब व्यवहारिक है , राजस्थान में पहली कोरोना गाइड लाइन ,, व्यवहारिक नहीं थी , लकिन चिंतन ,, मंथन के बाद , दूसरी संशोधित गाइड लाइन ,, सर्वमान्य ,व्यवहारिक ,है , आम जनता को इस कोरोना ज़ीरो मोबिलिटी व्यवस्था में सरकर का कंधे से कंधा मिलाकर साथ देना चाहिए ,,, ,इधर सरकार को , प्रेस कौंसिल को , सुचना प्रसारण मंत्रालय को , पत्रकारिता को निर्देशित करने के लिए जो भी ज़िम्मेदार हो , उन्हें कोरोना रिपोर्टिंग के लिए , बौद्धिक व्यवस्था के तहत , सकारात्मक रिपोर्टिंग के लिए ,, एडवाइज़री जारी करने की ज़रूरत हो गयी है , युद्ध रिपोर्टिंग में हम हमारे देश को हौसला देते है , देश के हक़ में ,देश के सिपाहियों की बहादुरी के लिए सकारात्मक रिपोर्टिंग करते है ,, ,साम्प्रदायिक दंगों के हालात में , हम , सकारात्मक माहौल की , शांति समितियों की बैठकों की , क़ौमी एकता की खबरों को प्रमुखता देते है , ,लेकिन कोरोना संक्रमण मामले को लेकर , हम दो हफ्ते के अख़बार उठाकर देख लें , हम इलेक्ट्रॉनिक न्यूज़ चैनलों की खबरें देख ले , डराने वाली पत्रकारिता , डिप्रेशन में लाने वाली पत्रकारिता , घर पर क्वारेंटाइन रहकर , इलाज करने वाले मरीज़ों को चिंताग्रस्त कर ,गंभीर बीमार करने की रिपोर्टिंग हो रही है , डॉक्टरों के लिए भी सरकार और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन , मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इन्डिया ,, को भी गाइडलाइन जारी करना ज़रूरी है , एक डॉक्टर , कोरोना की व्याख्या करता है , के एक मरीज़ तीन दिन में , फेफड़ों का गंभीर संक्रमित हो गया ,, चूहे भी ऐसे नहीं कुतरते , ,, यह चिंतित करने वाली बात है ,, में ऐसे एक दर्जन से भी अधिक मरीज़ों से , टेलीफोनिक वार्ता के बाद इस नतीजे पर पहुंचा हूँ के वोह ऐसी खबर पढ़ कर , उनकी सिटी स्केन ,, सामान्य होने ,, थोड़ा बहुत इंफेक्शन मामूली सा मून शाइन होने के बाद भी , वोह इस तरह की खबरें पढ़ कर डिप्रेशन में आ गए है , उनकी सकारात्मक सोच , निराशावाद में बदल गयी है , उनके दिल में घबराहट है ,, वोह खुद की ज़िंदगी को लेकर चिंताग्रस्त हो गए है जबकि कोरोना इलाज प्रोटोकॉल में वोह सामान्य है , नियमित दवाइयां ले रहे है , सुधार हो रहा है , लेकिन इन चौबीस घंटों में , लगातार निराशाजनक , डराने वाली खबरों ने , उन्हें स्तब्ध कर दिया है , उनके जीने के विश्वास को डगमगा दिया है , ,ऐसी रिपोर्टिंग ,ऐसी पत्रकारिता किस काम की जो समुह के समूह को , ख़ौफ़ज़दा कर , डिप्रेशन में डाल दे , डॉक्टरों की तो मार्केटिंग हो गयी ,, अख़बार की रिपोर्टिंग हो गयी , लेकिन समाज में तो भयावह स्थिति बन गयी ,, हमे ऐसे मामलों में गंभीर होना होगा , हमारे कोरोना पीड़ित , जो अस्पताल में है , या फिर घर पर क्वारेंटाइन होकर , इलाज कर रहे है ,, उन्हें , उनके परिजन , अख़बार हरगिज़ मत पढ़ने दें , उनमे सकारात्मक सोच डवलप करें ,, ऐसे मरीज़ों को , धर्म , आस्थाओं के अलावा , मनोरंजक , हंसी मज़ाक़ के सकारात्मक माहौल में लेकर आएं , कम से कम , अख़बार की भयावह खबरें , टी वी की डराने वाली खबरें , इन सब से तो उन्हें प्लीज़ दूर ही रखें , सरकारों का तो क्या , वोह गाइड लाइन जारी करें , या नहीं करें , लेकिन हमे तो एहतियात बरतना ही होगा , हमे तो सकारात्मक सोच रखकर , अपने मरीज़ों को , हिम्मत दिलाकर डिप्रेशन में से निकालना ही होगा ,, वरना कहावत हैं , ना ,, एक शख्स के सुई चुभी , और उसने दूर से सांप को जाते हुए देखा , उसने सांप ने काट लिया , सोचकर डिप्रेशन में आकर , ख़ौफ़ज़दा होकर , दम तोड़ दिया , जबकि उसके कोई ज़हर नहीं फैला , सांप ने नहीं काँटा ,, सिर्फ मामूली सी सुई चुभी थी , हमारे रिपोर्टर्स , सम्पादक , इलेक्ट्रॉनिक सम्पादक , पत्रकारिता सलाहकारों को इस मामले में विचार बनाना चाहिए ,, क्योंकि उनके रिपोर्टर एक तरफ तो , जान जोखिम में डालकर , इस कोरोना वाइरस के बीच रिपोर्टिंग के लिए जाते है , भयावाह स्थिति देखते है , बिलखते , तड़पते , असहाय , मरते हुए मरीज़ों के हाल देखते है , ,वोह अस्पतालों की अव्यवस्थाएं , लापरवाहियां , निजी अस्पतालों की लाखों लाख रूपये की लूट देखते है ,, ,, वोह खुद को संकट में इसलिए डाल रहे है , के वोह सकारात्मक तस्वीर के साथ , समाज में कोरोना का डर भी निकालें , सकारात्मक खबरें भी दें , और जो मरीज़ घर पर , दवा के साथ साथ ,अख़बार भी पढ़ कर खुद को सुरक्षित महसूस करता है , वोह जल्दी स्वस्थ हो , तंदरुस्त हो , यही उसका भाव है , तो प्लीज़ समापदकों से निवेदन है , खबर डरावनी नहीं , सकारात्मक ,हो , निराशाजनक नहीं , आशाजनक हो ,, खबर मोत का खौफ दिखाने वाली नहीं , ज़िंदगी की खुशियां दिखाने वाली हो ,, मरीज़ों को ठीक करने वाली खबरें हों , मरीज़ों का उत्साहवर्धन करने वाली रिपोर्टिंग हो ,, डॉक्टरों का उत्साहवर्धन , उनकी कमिया उजागर , उनमे सुधार के सुझाव की खबरें हो , सरकारों के खिलाफ , अधिकारीयों के खिलाफ , लापरवाही , पक्षपात , मनमानी होने ,पर ज़ीरो टॉलरेंस वाली आक्रामक खबरें हों , ताकि सरकार , अधिक से अधिक सुविधायें , उपलब्ध कराये ,, डॉक्टर , मरीज़ों के प्रति , चिकित्सा धर्म के साथ चिंतित रहे , और मरीज़ कॉन्फिडेंट रहे , के सरकार , सरकार का सिस्टम , सरकार ,के विशेषज्ञ चिकित्सक , उनका सकारात्मक इलाज , उनके साथ है , उन्हें फिर से तंदरुस्त करने के लिए , सभी व्यवस्थाएं उनके साथ है ,, ऐसी व्यवस्था , निश्चित तोर पर , ओरिजनल पत्रकारिता भी होगी , लोगों की जान बचाने वाली पुनित कार्य की रिपोर्टिंग होगी , और सैकड़ों नहीं ,हज़ारों हज़ार निराशाजनक स्थिति में , डर खौफ डिप्रेशन के माहौल में , ठीक होने की जगह , फिर से जो खुद को मरीज़ बना रहे है , उनमे भी सुधार होगा ,, निश्चित तोर पर रिकवरी रेट भी बढ़ेगी , और फिर से हम कोरोना पर फतह पाकर , खुशियों से खिलखिलायेंगे ,, घूमेंगे , फिरेंगे , हँसेंगे , हंसाएंगे ,, ,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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