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08 मार्च 2021

महिला दिवस हो , सड़क सुरक्षा सप्ताह हो , सभी हमारे देश में सियासत का हिस्सा , अख़बारों , टी वी चेनल्स में विज्ञापन कमाई का हिस्सा बन गया है ,

 महिला दिवस हो , सड़क  सुरक्षा सप्ताह हो  , सभी हमारे देश में सियासत का हिस्सा , अख़बारों , टी वी चेनल्स में विज्ञापन कमाई का हिस्सा बन गया है ,,, रस्म अदायगी हो गयी है ,,, देश भर में जिस तरह से सड़क सुरक्षा सप्ताह में ,सड़कों को लोगों को आवाजाही के लिए मरम्मत कर ,अतिक्रमण मुक्त कर ,सुरक्षित करने की  जगह ,  चालान बनाने , हेलमेट , सीट बेल्ट की हिदायतों तक सीमित कर दिया जाता है , इसी तरह से महिला दिवस के अवसर पर , देश की महिलाओं के संरक्षण , सुरक्षा , ज़ुल्म ज़्यादती के मामलों की पत्रावलियों को खंगाल कर यहां , महिलाओं के खिलाफ ज़ुल्म ज़्यादतियां कैसे रोकें , उत्तर प्रदेश हो , राजस्थान हो , या कोई भी दूसरा शहर हो , जहां बलात्कार , हत्याएं होती है , उत्तर प्रदेश में महिला को प्रताड़ित कर हत्या कर दी जाती है ,, रातों रात ,,उसके परिजनों के बगैर उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है ,, गवाह अगर पिता है तो उसे कार एक्सीडेंट में मरवा दिया जाता है ,, सिर्फ राजनीति होती है ,, और वही महिलाओं की प्रताड़ना का दौर शुरू हो जाता है , इस पर रचनात्मक , विश्लेषणात्मक चर्चा नहीं होती , क्योंकि इससे , महिलाओं के प्रति ज़ुल्म करने वाली सरकारें , प्रताड़ित होती है , सरकारों की बदनामी होती है , इसलिए बढे बढे विज्ञापन लो ,, चुप रहो ,भ्रामक तरीके से , महिलाओं के उत्साहवर्धन के नाम पर इन ज़ुल्म ज़्यादतियों को दबाते रहो ,,, महिलाओं के मामले में देश में कहाँ कहाँ किस शासन में महिलाये असुरक्षित हैं , महिलाओं के अधिकारों को अब तक क्यों दिया गया ,, महिलाओं के आरक्षण को ,, राजनीतिक भागीदारी के आरक्षण को ,क्यों लागु नहीं किया जाता , इस पर चर्चा नहीं होती , दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम है , हर ज़िले में दहेज़ प्रतिषेध अधिकारी हैं , फिर सभी जानते है ,, हर शादी में खुले आम दहेज़ के सामानों की नुमाइश होती है ,,, लेकिन कोई दहेज़ अधिकारी कोई कार्यवाही नहीं करता , देश भर में , अंतर्राष्ट्रीय दबाव में ,, भारत में , महिला संरक्षण क़ानून बना ,, घरेलू हिंसा क़ानून बना ,, लेकिन इन घरेलू हिंसा क़ानूनों की सुनवाई किस तरह से हो रही है , किस तरह से इस क़ानून की धज्जीयां  उड़ रही हैं कोई देखना नहीं चाहता ,, क़ानून में खुद सरकार के प्रोटेक्शन ऑफिसर को , घर घर जाकर महिलाओं के प्रताड़ना के बारे में गुप्त और सीधी जानकारियां एकत्रित करने का  प्रावधान है ,, लेकिन ऐसा नहीं है , प्रोटेक्शन ऑफिसर रस्म अदायगी के लिए बनाये गये है , विधिक न्यायिक प्राधिकरण को निर्देश है के वोह महिलाओं की तरफ से इस तरह के मामले में , मुक़दमा पेश करवाए लेकिन देश की किसी अदालत में , किसी भी प्रोटेक्शन ऑफिसर ने , या विधिक न्यायिक प्राधिकरण के ज़रिए 17 सालों में कोई भी मुक़दमा पेश नहीं हुआ है , चलो मुक़दमा महिला ने खुद वकील के ज़रिये पेश करवा दिया ,तो उसके मुक़दमों में तलबी कई महीनों , सालों , तक नहीं होती , तारीख पे तारीख के बाद , महिला का  हश्र होता है , सरकार और सरकार के भांड मिडिया कर्मी क्या जाने ,, क़ानून में लिखा है ,, तुरंत मुक़दमा पेश करते ही ,, महिला को अंतरिम सहायता उपलब्ध कराये ,, लेकिन न्यायिक इतिहास में एक भी ऐसा मामला नहीं है , जिसमे घरेलू हिंसा का मामला पेश हुआ हो , और तुरतं परिवाद के रिपोर्ट के बाद उस महिला को अंतरिम राहत उसी दिन मिल गयी हो ,, क़ानूनी प्रावधानों के बावजूद भी महिलाओं को तारीख पे तारीख , उस पर तुर्रा यह के , अदालतों की कमी है , मुक़दमों की संख्या ज़्यादा है , तो फिर घरेलू हिंसा से संबंधित अदालतों की वृद्धि सरकारें क्यों नहीं करतीं , मिडिया आज के दिन इस पर चर्चा क्यों नहीं करता ,, महीनों , सालों बाद अगर खर्चा बाँध भी दिया जाए ,, तो  फिर अदालतें थानाधिकारियों से उक्त वसूली की ज़िम्मेदारी को लेकर व्यवस्थाएं  कार्यअधिकता के कारण नहीं बना पातीं , , एक नया मुक़दमा वसूली का फिर पेश होता है ,और फिर चलता है पुलिस , और वसूली मामले में प्रताड़ित पत्नी के पति से सौदेबाज़ी का दौर ,, दो तीन महीने में तो वसूली जारी होती है , फिर पुलिस की रिपोर्ट आती है ,, क़ानून व्यवस्था में ड्यूटी की वजह से तामील नहीं हुई ,फिर दुबारा तलबाना दो , फिर रिपोर्ट आती है ,, पति मिला नहीं ,,, फिर तीसरी बार , चौथी बार , यह सिलसिला चलता रहता है ,, कुछ एक अपवाद हो सकते है , लेकिन अधिकतम में ऐसा ही हो रहा है ,, देश में अराजकता की स्थिति देखिये , अगर किसी महिला का पति , किसी अन्य पुरुष के साथ सम लैंगिक रिश्ता रखने लगा , तो वोह सुप्रीमकोर्ट ने ,, अपराध की धाराएं हठा दी , महिला कुछ नहीं कर सकती , अगर कोई महिला ,उसके पति के साथ स्वेच्छिक संबंध बनाती है , तो उस महिला को , यह सबंध बनाने का क़ानूनी अधिकार मिल गया , उस का पति इस अपराध को रोकने की क़ानूनी व्यवस्था अब नहीं रखता ,, एक महिला से बलात्कार होता है , प्रताड़ना होती है ,, उसका मेडिकल होता है , अपराधी को पकड़ा जाता है , महिला के मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान होते है ,, अपराधी की ज़मानत हो जाती है ,या ज़मानत नहीं भी होती है , तो भी , महिला पर आखिर कोनसा दबाव , कोनसी सौदेबाज़ी होती है , जो वोह महिला अदालत में आकर , उसके साथ की गयी समस्त प्रताड़ना को इंकार कर देती है ,, वोह महिला , अदालत में ,उसके साथ होने वाले बलात्कार से इंकार कर देती है , वोह महिला , मजिस्ट्रेट के सामने दिए गये बयानों से भी मुकर जाती है ,, कुछ तो खौफ है , कुछ तो सौदेबाज़ी है , चलो मुस्लिम महिलाओं की बात करें ,, पुरुष तलाक़ देता नहीं , महर खाकर बैठ जाता है , तलाक़ के नाम पर सौदेबाज़ी होती है ,, पारिवारिक न्यायालयों में वकीलों को प्रतिन्धित कर दिया ,तो वहां महिलाओं के निरक्षर होने ,, क़ानून के प्रति अज्ञानी होने से ,, उसे जो प्रताड़ना सहना पढ़ती है ,, उस पर कभी किसी पत्रकार ने , समाजसेवक ने स्टिंग ऑपरेशन नहीं बताया ,, देश में महिला आयोग है , राज्य में महिला आयोग है , उनके कामकाज की शैली , ,महिलाओं के प्रति उनकी जागरूकता ,समाजकल्याण विभाग की ज़िम्मेदारी , महिला बालविकास मंत्रालय ,, जिला महिला वाल विकास विभाग की ज़िम्मेदारी , कर्तव्यों पर कोई खबर नहीं आती क्यूंकि ,, यह पब्लिक है सब जानती है ,,, अफ़सोस इस बात पर होता है , जब इस दिन को महिलाओं में उत्साहवर्धन के साथ , महिलाओं से प्रताड़ना , उनके साथ अन्याय की कहानियों के साथ उन्हें त्वरित न्याय कैसे मिले , सिस्टम , क़ानून में क्या बदलाव हों , क्या नई व्यस्थाएं हों इस चिंतन , इस मंथन के लिए यह दिन होता है , लकिन सरकारें , फूल पेज , आधा पेज , का विज्ञापन देती है ,, इलेक्ट्रॉनिक मिडिया को विज्ञापन मिलता है , महिला ऍन जी ओ को सुविधाएं मिलती हैं ,, राजनितिक लोगों पर दबाव होता है , नतीजन इस दिन को लेकर , विधानसभा ,, लोकसभा , राज्यसभा में विशिष्ठ चर्चा नहीं होती ,, मीडिया ,में , ,चर्चा नहीं होती , सिम्पोजियम , सेमिनारें नहीं होतीं ,, धरने प्रदर्शन नहीं होते , क्योंकि ,, मीडिया इस दिन का महत्व , इस दिन की दिशा , महिलाओं के हालात , उनके लिए बनी व्यवस्थाओं की खामियों , परेशानियों पर चिंतन , मंथन करने की जगह , सिर्फ और सिर्फ , महिलाओं के उत्साहवर्धन के नाम पर ,, दिशा पलट देते हैं , यही सड़क सुरक्षा सप्ताह का हाल करते है , सड़कें सुरक्षित करने की जगह लाइसेंस ,, हेलमेट तक इस व्यवस्था को समेट कर रख देते है ,, और इन सब हालातों में , कई सालों से लगातार यह व्यवस्थाएं हो रही है ,इसके बावजूद भी महिलाओं में ,महिला संगठनों में , महिलाओं के पक्ष में  आवाज़ उठाने वालों में कोई जागृति नहीं है , सरकारें जो रातों रात , बलात्कार की शिकायत दबाने के लिए , महिला का अंतिमसंस्कार कर देती है ,उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हैं , देश में इन हालातों पर ,, सभी की चुप्पी ,है ,, क्योंकि मेरा भारत महान जो ठहरा , यहाँ इस देश में , आप और में इतने शरीफ है , इतने शरीफ है , के अपने , और अपने परिवार के अलावा ,,  किसी  दूसरे की मदद करना ,, किसी दूसरे के काम आना , किसी दूसरे के ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाना ,, फ़टे में टांग अड़ाना कहकर ,, रोक देने के लोग भी इस देश में शामिल है ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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