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23 अक्टूबर 2017

यह अजीब लोकतंत्र है ,,यहाँ अजीब क़ानून के रक्षक ,,अजीब कोर्ट ऑफिसर है

यह अजीब लोकतंत्र है ,,यहाँ अजीब क़ानून के रक्षक ,,अजीब कोर्ट ऑफिसर है ,,अदालत में न्याय की बात अलग है ,,वहां तो प्रोफेशन है ,,लेकिन आम जनता और खुद वकीलों के संगठन के लिए भी वकीलों की ज़िम्मेदारी है ,,हमारे राजस्थान में कई सालों से वकीलों की संस्था बार कौंसिल भंग है ,,यहां निर्वाचित बार कौंसिल नहीं ,,थोपी गयी अलोकतांत्रिक बार कौंसिल है ,,प्रशासक है ,,वकीलों की अपनी समस्याए उनके समाधान के लिए वर्तमान में वकील अनाथ है एक साल से नहीं कई सालों से ऐसा हो रहा है ,,सभी जानते है राजस्थान में बार कौंसिल के नियम वकीलों की कल्याणकारी योजनाओ के लिए नहीं बल्कि उन्हें संदिग्ध बना कर उनकी डिग्रियां जांच करवाने ,,रिविनल करवाने का क़ानून बनाया गया है ,,,खेर हम राजस्थान के वकील है ,खामोश रहे ,,अभी भी खामोश है ,कब बार कौंसिल के चुनाव होंगे पता नहीं ,,लेकिन फिर भी नए वायदों ,नए इरादों के साथ कुछ पुराने कुछ नए उम्मीदवार मैदान में है ,,,,चुनाव महासंग्राम कब हो पता नहीं ,,,,लेकिन राजस्थान के बाहर उत्तरप्रदेश ,सहित दूसरे राज्यों के भी यही हाल है ,खुद का बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया का हाल देखा है ,वकीलों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं ,,उनकी समस्या ,,उनके समाधान का कोई सर्वेक्षण नहीं ,,वकीलों के आरक्षित कोटे में जजों नियुक्ति प्रक्रिया पर निगरानी नहीं ,,अदालतों में पक्षकारों ,,वकीलों की समस्याओं पर ध्यान नहीं ,,,जजों के व्यवहार उनके फैसले ,,उनके आदेशों की समीक्षा को लेकर कोई पुख्ता प्रबंध नहीं ,,निरीक्षक जजों जिला बार एसोसिएशन के सभी सदस्यो के साथ अदालत के कार्यवहार को लेकर कोई खुली सुनवाई ,या फिर गुप्त ,,पृथक पृथक सुनवाई कार्यक्रम नहीं ,,बस कोटा देना है ,,कुछ वकील सरकारी हो गए ,,कुछ वकील मीडिएशन से ,,कुछ विधिक सहायता से तो कुछ दूसरे सिस्टमों से जुड़ गए ,,उन वकीलों में से अधिकतम लोगो रुख वकील का नहीं रहकर जजों के पैरोकारों का हो गया है ,,,,वकीलों की ताक़त कमज़ोर हुई है ,उनकी सुनवाई नहीं होती ,वोह अगर आंदोलन की बात करे तो अव्वल तो कमज़ोर ताक़त जिसे वकीलों ने सियासी पार्टियों के सदस्यों में अलग अलग सियासी प्रकोष्ठ बनाकर बाँट दिया है ,सरकारी ,,गैर सरकारी वकीलों का रुख बदल गया है ,,पलटी खा जाते है ,अगर आंदोलन हो भी जाए तो फिर अदालतों की दमनकारी निति का हव्वा खड़ा हो जाता है ,,वकीलों को अपने साथी की मोत पर भी शोक मंनाने के लिए समय अदालतों की सुविधानुसार तय करना पढ़ रहा है ,,वकील बदल गए है ,,एक वक़्त था जब कोटा के एक वकील को हथकड़ी लगाई तो राजस्थान में महासंग्राम था ,,,,,राजस्थान सरकार ने स्टाम्प ड्यूटी जब बढ़ाई जब पक्षकारो के हित में कोटा के वकीलों की आवाज़ ,,राजस्थान की आवाज़ बनी थी ,,एक वक़्त था जब जजों की नियुक्ति में भ्रस्टाचार हुआ तो राजस्थान के वकीलों ने चयनित जजों की सूचि को रुकवाकर उस भ्रस्ट आचरण वाली परीक्षा को निरस्त करवा दिया था ,,,कोटा के वकीलों की साख पुरे राजस्थान में ऐसी थी के अगर कोटा के वकील ने आवाज़ उठाई तो वोह राजस्थान की आवाज़ बन जाती थी ,,लेकिन आज क्या है ,में क्या कहूं सभी जानते है ,,सरकार ने बिल बनाया ,,रस्मन विरोध ,,सरकार ने गोसेवा ,,विकास के नाम पर पृथक पृथक दस दस प्रतिशत यानी बीस प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क स्टाम्प वसूली का नियम बनाया ,,स्टाम्प शुल्क में बेहिसाब बढ़ोतरी की वकील चुप ,,कई मुद्दों पर वकील चुप ,लेकिन आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाला वकील ,,ज़ुल्म ज़्यादती के खिलाफ इन्साफ का संघर्ष करने वाला वकील अगर वर्तमान ,,राजस्थान आपराधिक संशोधन मामले में सरकारी अधिकारियो के खिलाफ लिखने ,,उनके खिलाफ कार्यवाही करने उनके खिलाफ अदालत में भी कार्यवाही के पहले पूर्व स्वीकृति और कुछ लिखने पर सज़ा का प्रावधान हो ऐसे में वकीलों की चुप्पी हो तो ऐसी चुप्पी शर्मसार कर देने वाली है ,,अफसोसनाक है ,,,वकीलों को पता है किसी भी व्यक्ति के खिलाफ थाने में सीधे किसी भी व्यक्ति ,,लोकसेवक के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराना उसका क़ानूनी अधिकार है और इसकी जांच होना चाहिए ,,वोह बात अलग है अगर शिकायतकर्ता की एफ आई आर गलत साबित हो उसके खिलाफ 182 ,211 आई पी सी के तहत कार्यवाही हो सकती है ,फिर यह चोर बेईमान अधिकारियो को बचाने का कोनसा समझौता है आखिर ऐसा विधेयक जो अफसरों को निरंकुश बना दे ,,आम नागरिक ,,वकील ,,अदालत के जज के क़ानूनी अधिकार छीन ले ,पत्रकारों को बेबस लाचार बना दे ,,लाने की ज़रूरत किसके दबाव में है ,और अगर सरकार ऐसी निरंकुश कार्यवाही फ़र्ज़ी आंकड़ों के आधार पर कहती है के अधिकारियो के खिलाफ मामले झूंठे होते है तो जनाब ,,अधिकारियो के खिलाफ मामलों की जांच पुलिस अधिकारी से नहीं ,,किसी न्यायिक अधिकारी अध्यक्षता में एक वकील ,,एक पुलिस अधिकारी की टीम बनाकर जांच करवा ले हर अधिकारी के खिलाफ हर जांच सही साबित होगी ,कैसे गवाह टूटते है ,,कैसे मामले दर्ज होने पर अधिकारी अपने दलालों को छोड़ते है ,डराते है ,,प्रलोभन देते है सभी जानते है ऐसे में नतीजा जो होता है उसे आधार नहीं बनाया जा सकता ,,,लेकिन सरकार के कुछ मंत्रियों पर शायद किसी अधिकारी उनकी टीम की बंदूक की नाल टिकी है जिसके खौफ में यह अलोकतांत्रिक ,असवैंधानिक कार्यवाही होने जा रही ,है ,इस मामले में आम लोगो का तो पता नहीं ,,पत्रकारिता मैनेजमेंट का पता नहीं उनकी चुप्पी हो सकती ,है ,सियासी सांठ गाँठ हो सकती है ,,इस आड़ में कोई बिल वाक् आउट के बाद बिना बहस के पारित करवाने की साज़िश हो सकती ,है ,,लेकिन जनाव वकीलों को तो इस पर सोचना होगा ,,,राजस्थान के हर ज़िले की वकीलों की संस्थाओ को आवाज़ उठाना ,होगी ,,बार कौंसिल में जो लोग बैठे है उन्हें अपना कर्तव्य निभाना होगा ,,वकीलों के लिए कुल्हाड़ी की लकडी बनकर बैठे ,,,सरकारी अधिवक्ता ,,महाधिवक्ता ,,सरकारी वकील सभी को सोचना होगा वोह खुद वकीलों के खिलाफ इस्तेमाल होकर कुल्हाड़ी का दस्ता बनकर वकीलों की एकता के वटवृक्ष को काटना बंद करे ,,और लोकतंत्र पर इस हमले के खिलाफ एक जुट हो जाएँ क्या हम ऐसा कर सकेंगे ,,करेंगे तो कब से करेंगे ,,क्या हम शतुरमुर्ग की तरह मिटटी में मुंह छुपा कर आल इस वेळ का फ़र्ज़ी नारा देकर वकीलों के नेतृत्व को खुश कर सकेंगे ,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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