बहुत हो ली सियासत
बहुत हो ली समझदारी
बहुत हो ली सेवादारी
बहुत हो ली रंगदारी
अब बस चले आओ
तुम्हारी बाहों में सिमटकर
कुछ कहना चाहता हूँ ,,अख्तर
बहुत हो ली समझदारी
बहुत हो ली सेवादारी
बहुत हो ली रंगदारी
अब बस चले आओ
तुम्हारी बाहों में सिमटकर
कुछ कहना चाहता हूँ ,,अख्तर
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