सूरए अल फज्र मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी तीस (30) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
सुबह की क़सम (1)
और दस रातों की (2)
और ज़ुफ्त व ताक़ की (3)
और रात की जब आने लगे (4)
अक़्लमन्द के वास्ते तो ज़रूर बड़ी क़सम है (कि कुफ़्फ़ार पर ज़रूर अज़ाब होगा) (5)
क्या तुमने देखा नहीं कि तुम्हारे आद के साथ क्या किया (6)
यानि इरम वाले दराज़ क़द (7)
जिनका मिसल तमाम (दुनिया के) शहरों में कोई पैदा ही नहीं किया गया (8)
और समूद के साथ (क्या किया) जो वादी (क़रा) में पत्थर तराष कर घर बनाते थे (9)
और फिरआऊन के साथ (क्या किया) जो (सज़ा के लिए) मेख़े रखता था (10)
ये लोग मुख़तलिफ़ शहरों में सरकश हो रहे थे (11)
और उनमें बहुत से फ़साद फैला रखे थे (12)
तो तुम्हारे परवरदिगार ने उन पर अज़ाब का कोड़ा लगाया (13)
बेशक तुम्हारा परवरदिगार ताक में है (14)
लेकिन इन्सान जब उसको उसका परवरदिगार (इस तरह) आज़माता है कि उसको
इज़्ज़त व नेअमत देता है, तो कहता है कि मेरे परवरदिगार ने मुझे इज़्ज़त दी
है (15
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
10 दिसंबर 2024
अक़्लमन्द के वास्ते तो ज़रूर बड़ी क़सम है (कि कुफ़्फ़ार पर ज़रूर अज़ाब होगा)
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