देर रात कोटा से निकली टीम ने,देइ आकर लिया नैत्रदान
2. पिता के समय पर नहीं कर पाये, अब माँ का किया नैत्रदान
शाइन
इंडिया फाउंडेशन के नेत्रदान जागरुकता अभियान से अब ग्रामीण क्षेत्रों में
भी नेत्रदान की अलख होने लगी है । अब जब भी शोक का समय आता है तो,लोग आगे
रहकर परिजनों की सहमति लेकर, दिवंगत के नेत्रदान करने के लिए तैयार रहते
हैं ।
इसी क्रम में कल नसियाँ कॉलोनी,ग्राम देइ,जिला बूंदी निवासी
कमलेश कुमार जिंदल की माताजी मनोहर देवी का रात 1:00 बजे आकस्मिक निधन हुआ ।
संस्था के नैनवां निवासी ज्योति मित्र महावीर प्रसाद जैन मोडीका ने उसी
समय, परिवार के सदस्यों से सहमति लेकर कोटा स्थित शाइन इंडिया फाउंडेशन के
डॉ कुलवंत गौड़ को नेत्रदान लेने देई आने का अनुरोध किया ।
डॉ गौड़ इस
समय खुद गाड़ी चला कर देइ के लिए रवाना हो गए, सुबह घर के सभी महिलाएं,
पुरुष,बच्चों और वृद्ध जनों के बीच में नेत्रदान की प्रक्रिया संपन्न हुई
डॉ गौड़ ने प्रक्रिया के दौरान ही नेत्रदान से जुड़ी सभी भ्रांतियां को दूर
किया । नेत्रदान के कार्य में कमलेश के अलावा अन्य चार भाई सत्यनारायण,
विनोद,बुद्धि प्रकाश,लोकेश और पोते सुनील,मुकेश,हंसमुख विपिन,हनी,वंश की भी
सहमति थी
आज से 20 वर्ष पूर्व जब मनोहर जी के पति चौथमल जी का निधन
कोटा स्थित निजी अस्पताल में हुआ था तब भी परिवार के सभी सदस्यों ने
नेत्रदान करवाने की इच्छा जताई थी परंतु उस समय कोई भी संस्था इस तरह का
कार्य नहीं करती थी इसलिए नेत्रदान संभव नहीं हो सका ।
ध्यान रखें :
जब
भी दिवंगत परिजन के नेत्रदान करने हो तो आंखों को पूरी तरह बंद करके उन पर
जिला रुमाल या गीली पट्टी रख दें और पंखा बंद कर दें इस तरह करने से आंखें
सुरक्षित रहती हैं ।
नेत्रदान की प्रक्रिया में पूरी आँख नहीं ली जाती
है, आँख के ठीक सामने का पारदर्शी हिस्सा जिसे हम पुतली या कॉर्निया कहते
हैं, वही लिया जाता है । 10 मिनट में होने वाली इस प्रक्रिया में किसी तरह
का कोई रक्त स्राव नहीं होता है, ना ही चेहरे पर कोई विकृति आती है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)