सूरए अल मुज्ज़म्मिल मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी बीस (20) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
ऐ (मेरे) चादर लपेटे रसूल (1)
रात को (नमाज़ के वास्ते) खड़े रहो मगर (पूरी रात नहीं) (2)
थोड़ी रात या आधी रात या इससे भी कुछ कम कर दो या उससे कुछ बढ़ा दो (3)
और क़ुरआन को बाक़ायदा ठहर ठहर कर पढ़ा करो (4)
हम अनक़रीब तुम पर एक भारी हुक़्म नाजि़ल करेंगे इसमें शक नहीं कि रात को उठना (5)
ख़ूब (नफ़्स का) पामाल करना और बहुत ठिकाने से जि़क्र का वक़्त है (6)
दिन को तो तुम्हारे बहुत बड़े बड़े अशग़ाल हैं (7)
तो तुम अपने परवरदिगार के नाम का जि़क्र करो और सबसे टूट कर उसी के हो रहो (8)
(वही) मशरिक और मग़रिब का मालिक है उसके सिवा कोई माबूद नहीं तो तुम उसी को कारसाज़ बनाओ (9)
और जो कुछ लोग बका करते हैं उस पर सब्र करो और उनसे बा उनवाने शाएस्ता अलग थलग रहो (10)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
17 अक्टूबर 2024
रात को (नमाज़ के वास्ते) खड़े रहो मगर (पूरी रात नहीं
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