यक़ीन जानों कहीं पनाह नहीं (11)
उस रोज़ तुम्हारे परवरदिगार ही के पास ठिकाना है (12)
उस दिन आदमी को जो कुछ उसके आगे पीछे किया है बता दिया जाएगा (13)
बल्कि इन्सान तो अपने ऊपर आप गवाह है (14)
अगरचे वह अपने गुनाहों की उज्र व ज़रूर माज़ेरत पढ़ा करता रहे (15)
(ऐ रसूल) वही के जल्दी याद करने वास्ते अपनी ज़बान को हरकत न दो (16)
उसका जमा कर देना और पढ़वा देना तो यक़ीनी हमारे जि़म्मे है (17)
तो जब हम उसको (जिबरील की ज़बानी) पढ़ें तो तुम भी (पूरा) सुनने के बाद इसी तरह पढ़ा करो (18)
फिर उस (के मुश्किलात का समझा देना भी हमारे जि़म्में है) (19)
मगर (लोगों) हक़ तो ये है कि तुम लोग दुनिया को दोस्त रखते हो (20)
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