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26 सितंबर 2024

वह लोग ये चाहते हैं कि अगर तुम नरमी एख़्तेयार करो तो वह भी नरम हो जाएँ

  सूरए अल क़लम मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी बावन (52) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
नून क़लम की और उस चीज़ की जो लिखती हैं (उसकी) क़सम है (1)
कि तुम अपने परवरदिगार के फ़ज़ल (व करम) से दीवाने नहीं हो (2)
और तुम्हारे वास्ते यक़ीनन वह अज्र है जो कभी ख़त्म ही न होगा (3)
और बेशक तुम्हारे एख़लाक़ बड़े आला दर्जे के हैं (4)
तो अनक़रीब ही तुम भी देखोगे और ये कुफ़्फ़ार भी देख लेंगे (5)
कि तुममें दीवाना कौन है (6)
बेशक तुम्हारा परवरदिगार इनसे ख़ूब वाकि़फ़ है जो उसकी राह से भटके हुए हैं और वही हिदायत याफ़्ता लोगों को भी ख़ूब जानता है (7)
तो तुम झुठलाने वालों का कहना न मानना (8)
वह लोग ये चाहते हैं कि अगर तुम नरमी एख़्तेयार करो तो वह भी नरम हो जाएँ (9)
और तुम (कहीं) ऐसे के कहने में न आना जो बहुत क़समें खाता ज़लील औक़ात ऐबजू (10)
जो आला दर्जे का चुग़लख़ोर माल का बहुत बख़ील (11)
हद से बढ़ने वाला गुनेहगार तुन्द मिजाज़ (12)
और उसके अलावा बदज़ात (हरमज़ादा) भी है (13)
चूँकि माल बहुत से बेटे रखता है (14)
जब उसके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं तो बोल उठता है कि ये तो अगलों के अफ़साने हैं (15)
हम अनक़रीब इसकी नाक पर दाग़ लगाएँगे (16)
जिस तरह हमने एक बाग़ वालों का इम्तेहान लिया था उसी तरह उनका इम्तेहान लिया जब उन्होने क़समें खा खाकर कहा कि सुबह होते हम उसका मेवा ज़रूर तोड़ डालेंगे (17)
और इंशाअल्लाह न कहा (18)
तो ये लोग पड़े सो ही रहे थे कि तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से (रातों रात) एक बला चक्कर लगा गयी (19)
तो वह (सारा बाग़ जलकर) ऐसा हो गया जैसे बहुत काली रात (20)

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