सूरए अन नज्म मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी बासठ (62) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
तारे की क़सम जब टूटा (1)
कि तुम्हारे रफ़ीक़ (मोहम्मद) न गुमराह हुए और न बहके (2)
और वह तो अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिश से कुछ भी नहीं कहते (3)
ये तो बस वही है जो भेजी जाती है (4)
इनको निहायत ताक़तवर (फ़रिश्ते जिबरील) ने तालीम दी है (5)
जो बड़ा ज़बरदस्त है और जब ये (आसमान के) ऊँचे (मुशरक़ो) किनारे पर था तो वह अपनी (असली सूरत में) सीधा खड़ा हुआ (6)
फिर करीब हो (और आगे) बढ़ा (7)
(फिर जिबरील व मोहम्मद में) दो कमान का फ़ासला रह गया (8)
बल्कि इससे भी क़रीब था (9)
ख़ुदा ने अपने बन्दे की तरफ जो ‘वही’ भेजी सो भेजी (10)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
16 अगस्त 2024
और वह तो अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिश से कुछ भी नहीं कहते
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