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08 जून 2024

और इसी तरह तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब का हुक्म (उन) काफि़रों पर पूरा हो चुका है कि यह लोग यक़ीनी जहन्नुमी हैं

 सूरए अल मोमिन मक्का में नाजि़ल हुआ मगर ‘‘अल लज़ीना यूजादेलूना’’ आयत के सिवा और इसकी (85) पिच्चासी आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
हा मीम (1)
(इस) किताब (क़ुरआन) का नाजि़ल करना (ख़ास बारगाहे) ख़़ुदा से है जो (सबसे) ग़ालिब बड़ा वाकि़फ़कार है (2)
गुनाहों का बख़्शने वाला और तौबा का क़ुबूल करने वाला सख़्त अज़ाब देने वाला साहिबे फज़ल व करम है उसके सिवा कोई माबूद नहीं उसी की तरफ (सबको) लौट कर जाना है (3)
ख़ुदा की आयतों में बस वही लोग झगड़े पैदा करते हैं जो काफिर हैं तो (ऐ रसूल) उन लोगों का षहरों (शहरों) घूमना फिरना और माल हासिल करना (4)
तुम्हें इस धोखे में न डाले (कि उन पर आज़ाब न होगा) इन के पहले नूह की क़ौम ने और उन के बाद और उम्मतों ने (अपने पैग़म्बरों को) झुठलाया और हर उम्मत ने अपने पैग़म्बरों के बारे में यही ठान लिया कि उन्हें गिरफ़्तार कर (के क़त्ल कर डालें) और बेहूदा बातों की आड़ पकड़ कर लड़ने लगें - ताकि उसके ज़रिए से हक़ बात को उखाड़ फेंकें तो मैंने, उन्हें गिरफ्तार कर लिया फिर देखा कि उन पर (मेरा अज़ाब कैसा (सख़्त हुआ) (5)
और इसी तरह तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब का हुक्म (उन) काफि़रों पर पूरा हो चुका है कि यह लोग यक़ीनी जहन्नुमी हैं (6)
जो (फ़रिश्ते) अर्श को उठाए हुए हैं और जो उस के गिर्दा गिर्द (तैनात) हैं (सब) अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं और मोमिनों के लिए बख़शिश की दुआएं माँगा करते हैं कि परवरदिगार तेरी रहमत और तेरा इल्म हर चीज़ पर अहाता किए हुए हैं, तो जिन लोगों ने (सच्चे) दिल से तौबा कर ली और तेरे रास्ते पर चले उनको बक्श दे और उनको जहन्नुम के अज़ाब से बचा ले (7)
ऐ हमारे पालने वाले इन को सदाबहार बाग़ों में जिनका तूने उन से वायदा किया है दाखि़ल कर और उनके बाप दादाओं और उनकी बीवीयों और उनकी औलाद में से जो लोग नेक हो उनको (भी बख़्श दें) बेशक तू ही ज़बरदस्त (और) हिकमत वाला है (8)
और उनको हर किस्म की बुराइयों से महफूज़ रख और जिसको तूने उस दिन ( कयामत ) के अज़ाबों से बचा लिया उस पर तूने बड़ा रहम किया और यही तो बड़ी कामयाबी है (9)
(हाँ) जिन लोगों ने कुफ़्र एख़्तेयार किया उनसे पुकार कर कह दिया जाएगा कि जितना तुम (आज) अपनी जान से बेज़ार हो उससे बढ़कर ख़ुदा तुमसे बेज़ार था जब तुम ईमान की तरफ बुलाए जाते थे तो कुफ्र करते थे (10)

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