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17 जून 2024

रचनाकार बीना ' दीप ' का काव्य सृजन "देह का सत्य" आध्यात्मिकता का पुट लिए एक ऐसी रचना है जिसमें मानव देह के शाश्वत् सत्य की परिभाषा को शब्दों में बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति देते हुए अनुभूति कराई गई है

ऐसा देश है मेरा/साहित्य.............716
बीना ' दीप ', कोटा
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यथार्थ और शाश्वत भावों की अभिव्यक्ति करती रचनाएं.......
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एक वर्जित फल की जिज्ञासा
उजागर कर गई
आदम और हव्वा
के बीच
देह का सत्य !
रचनाकार बीना ' दीप ' का काव्य सृजन "देह का सत्य" आध्यात्मिकता का पुट लिए एक ऐसी रचना है जिसमें मानव देह के शाश्वत् सत्य की परिभाषा को शब्दों में बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति देते हुए अनुभूति कराई गई है कि आखिर देह को माटी में मिल कर, मिलना तो परमात्मा ही है और यही सत्य है। कविता में वे आगे लिखती हैं...........
वही सत्य
आज भी
शाश्वत् है
मेरे तुम्हारे बीच
और…
चाहे माटी में मिल जाती हो
माटी की देह
किन्तु
जब कभी
किया है हमने
देह का अनुसंधान
निष्कर्ष में
सदैव मिला है
परमात्मा हमें !
** स्त्री विमर्श के स्वर अपने पूरे विद्रोही तेवर में अभिव्यक्त करते हुए देह यज्ञ -2 में इन्होंने
कितने प्रश्न इन पंक्तियों ने उछाले हैं ..........
ओ तपस्विनी !
कैसा ये तप ?
रोज देनी होती है तुम्हें
आहुति सतीत्व की
रोज करना होता है
देह यज्ञ !
** हिंदी भाषा में प्रेम, दया, अहिंसा और मानवता पर कविता लिखने वाली अपने सृजन की मादकता से मोहित करने में सिद्धहस्त और सशक्त रचनाकार हैं। इनके सृजन पर डॉ. तारा प्रकाश जोशी के शब्दों में "बीना दीप" को दया, अहिंसा, प्रेम, मानवता आदि गुण विरासत में मिले है। उनमें जीवन की जटिल यात्रा में उदासियों की पगडण्डियों पर सुगन्धित दीये जलाने की अपार क्षमता है।" कहानीकार क्षमा चतुर्वेदी के मत में "चितौड़" की मीरा बाई से लेकर बीना 'दीप' की कविताओं में जिस एक विशेष काव्य प्रवृति का परिचय प्राप्त होता है, वह है'प्रेम'। बीना 'दीप' की कविताऐं अपनी अंतर्निहित रागात्मक शक्तियों के साथ विभिन्न आयामों का स्पर्श पा लेती है। "
** इनके काव्य संग्रह की भूमिका में विख्यात साहित्यकार डॉ. दयाकृष्ण विजय कहते हैं " शिल्प और संवेदना दोनों स्तरों पर हमें काव्यगत सशक्तता के स्पष्ट दर्शन होते हैं। पाठक आनंद के सरोवर में डूबता हुआ , उस सुख का अनुभव करता है जिसे हम साहित्य की भाषा में ब्रह्मानंद सहोदर कहते हैं। इनकी की कविताऐं आंसूओं की स्याही से नहीं रक्ताभ ओजस्विता से लिखी हैं। प्रेम में निगूढ़ता तो है पर नारीत्व के स्वाभिमान की संरक्षा के साथ। श्रृंगार रस से ओत-प्रोत तो है पर पूरी शालीनता के साथ, सात्विकता इसकी पूंजी तथा मर्यादा इसकी प्रतिष्ठा है। रचनाओं में गति है, प्रवाह है तथा रोचकता है।" प्रसिद्ध लेखक एवं कवि वीरेन्द्र विद्यार्थी उनके बारे में लिखते हैं- "स्वनाम धन्य कवयित्री बीना 'दीप' की चेतन वीणा की झंकार और स्वानुभूति के दीप की मधुर-मधुर जलन के संयोग से कवयित्री कर 'नारीमन' देह के सत्य से साक्षात्कार करता हुआ 'महाप्रयाण' की ओर उद्दत होकर काल के शिलाखण्ड पर हस्ताक्षर करने का सद्संकल्प लेता है, जिससे व्यष्टि का समष्टि में समावेश सहज रूप से हो जाता है।"
** इन विख्यात रचनाकारों के अभिमत रचनाकार के काव्य सृजन कौशल से पाठकों को भली भांति परिचित करने को पर्याप्त हैं। इनकी रचना " सर्द होता अहसास " की बानगी देखिए कितने गहरे अर्थ लिए है................
"भूल ही गए हम, नजरों का सम्मोहन
हथेलियों का स्पर्श,उंगलियों की छुअन
रह गये सिर्फ,दग्ध चुम्बन
तेज-गर्म सांसें, और से उपजी थकान
सर्द हो चुका,स्पर्श की मादकता
सामिप्य की,सिहरन का अहसास
जाने क्यों रीत गया,निगाहों में उमड़ता
प्यार का सैलाब,बरकरार है चाहत
पर बेचैन नहीं रूह, उत्कंठा नहीं शेष
तन की सतह पर , ठहरने लगा मिलन,
आत्मा रह जाती है, बस यूं ही निस्संग !"
**. ऐसी ही एक और रचना " बिन बाती बिन नेह" की गहराई और शब्दों का गूंथन और अभिव्यक्ति की बानगी देखिए............
"जाने कैसे, हर पुष्प की सुगन्ध
तेरी देह गंध, बनती रही
उमड़ते-घुमड़ते मेघों में, तेरी आकृति
उभरती रही, नींद में भी
जागती रही, सारी जिन्दगी
अजनबी बनी रही, अपने ही लिए !
हर बार , हथेली पर लिखा तेरा नाम
एक नए गीत का, मुखड़ा बनता रहा
जाने कब पांव में, बंध गये घुँघरू
अभिशप्त चाहत लिए, भटकती रही
क्यों ये सब वाक्ये, तमाम उलझनें
बेचैनियां, मेरा वजूद बन गए !
विधाता !!
प्रतीक्षा का यह 'दीप', बिना नेह-बाती
कैसे जला किया, हर दिन ! "
** भावपूर्ण कविताएं लिखने के साथ-साथ ये कहानी, नाट्य एवं विभिन्न विधाओं में लेखन करती हैं। इन्होंने कविता संग्रह " काव्य कानन" का संपादन किया है जिसमें 126 कवि-शायरों की रचनाओं का समावेश है। आपने चिदम्बरा (मासिक पत्रिका) एवं रूप, वर्षा आदि कुछ साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन कार्य किया है और कुछ में भूमिकाएं भी लिखी हैं। बालकाल्य से ही जैन शास्त्र प्रद्युम्नचरित्र, पदम पुराण, महावीर पुराण, हरिवंश पुराण, तथा अन्य साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने लगी। पढ़ने का इतना शौक था कि 10-11 वर्ष की उम्र तक आते-आते विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं सहित सामाजिक, साहित्यिक तथा जासूसी उपन्यास बड़ी संख्या में पढ़े और वस्तुतः उसी उम्र में काव्य सृजन का भी बीजारोपण हो गया। इनके शब्दों में " कविता मेरे लिए शब्द विलास या आत्म विलास का साधन नहीं होकर जीवन सम्बल रही जिसके सृजन मात्र से ही अन्तर्मन की सब पीड़ाओं का विसर्जन होकर जीवन फूल-सा हल्का होकर एक नई उर्जा से ओत-प्रोत होने लगा। वर्षा ऋतु का मेघ आच्छादित गगन हो या गर्मियों का शान्त निभ्र आसमान, प्रबल रूप से अपनी ओर आकर्षित करते, आकाश की विशालता को महसूस करती और उसकी शून्यता को अपने में उतारने के प्रयास में काव्य संग्रह का नामकरण "खुद को आकाश कर लिया मैनें" रखा दिया "।
** इनके काव्य संग्रह पर कवि वैद्य कृष्ण मोहन मंजुल उनकी कविताओं के लिए कहते हैं, "प्रेम की उद्दात अवस्था की निर्मल अनुभूतियां, देह का सम्मान, सम्बन्धों की कीच में समाई पीड़ाऐं और फिर इन सबसे उपर उठकर विराट आकाश को स्वयं में समा लेने की असीम क्षमता को अभिव्यक्ति देती है 'बीना दीप' की उत्कृष्ट कविताऐं।" इसी संग्रह की एक कविता "आज फिर" की बानगी देखिए.......
" बिना तुम्हारे, महसूस होता है आजकल
जैसे, बूँद–बूँद
चुकती जा रही है जिजीविषा, जड़वत हो गयी आत्मा
मर रही हैं संवेदनाएं, आज
बहुत जरूरी लगता है, तुम्हार संजीवनी स्पर्श
पुनः संचेतन होने के लिए
आज फिर अंकित कर, भाल पर एक स्नेहिल चुम्बन, कि तन जाए
झुकी हुई रीढ़, आज फिर चाहिए
तुम्हारी नजरों का, पिघला देने वाला
स्थिर ठहराव, कि सर्द लहू
दौड़ने लगे, फिर रगों में
कि घुँघरूओं सी रूनझुन, तुम्हारी हँसी के प्रवाह में बह जाए
सारी कलुषता-मलिनता, उम्र
जो ठहरी हुई है, दर्द की दहलीज पर
फिर पकड़ ले, अपनी रफ्तार ! "
** प्रेम इनके लिए इस पार से उस पार की यात्रा है । संग्रह की कविता ' पुल ' में प्रेम की कितनी सूक्ष्म , गहन व आत्मिक अनुभूति की अभिव्यक्ति की है ................
तुम्हारी - मेरी , हथेलियों से बने
छोटे से पुल से, तय हो जाती है
तुमसे मुझ तक , और
मुझसे तुम तक की यात्रा !
यात्रा , जिसके लिए हजार-हजार संवाद
कम पड़ जाते हैं ।
यात्रा !, जिसे सैकड़ों ॠषि - मुनि
हजार जप-तप के बाद भी ,तय नहीं कर पाते ,
तय हो जाती है , हधेलियों से बने
इस छोटे से , पुल से !
** परिचय :
यथार्थवादी और शाश्वत भावों को अभिव्यक्ति देने वाली रचनाकार बीना जैन ' दीप ' का जन्म 5 अप्रैल 1965 को कोटा में पिता शिखरचंद जैन उर्फ बाबूलाल जैन एवं माता तारादेवी के आंगन में हुआ। आपने आपने बी.एससी., एलएल.बी., एम.ए.(हिन्दी) तथा बी.जे.एम.सी. की शिक्षा प्राप्त की। आपके पति शिवनारायण वर्मा एडवोकेट है। इनकी रचनाएं विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई और वार्ताएं और कविताएं आकाशवाणी केंद्र कोटा और दूरदर्शन केंद्र जयपुर से प्रसारित हुई हैं। साहित्य एवं समाज सेवा के लिए कई संस्थाओं द्वारा इनको सम्मानित किया गया है। आप वर्ष 1994 में राजस्थान राज्य सेवा आयोग द्वारा विधि सहायक के पद पर चयनित होकर शिक्षा विभाग, वन विभाग एवं सार्वजनिक निर्माण विभाग में विधिक सेवाऐं दी। वर्ष 2000 में राजस्थान न्यायिक सेवाओं में चयन हुआ तथा न्यायिक मजिस्ट्रेट से कालान्तर में जिला एवं सेशन न्यायाधीश के पद पर पदोन्नत होकर वर्तमान में विशिष्ठ न्यायाधीश (एन०डी०पी०एस०प्रकरण) झालावाड में सेवारत हैं और साहित्य सृजन में लगी हैं।
चलते - चलते ........
कुदरत के खाते से
ज़िन्दगी के हिसाब में
जितना भी समय मिला
उसे भरपूर जिया है मैंने
अपने ढंग से
समय भी हंसता रहा
मेरे साथ
दिल खोल कर,
कभी रूठ भी गया
तो गलबंहियां डाल
मना लिया मैंने
सखा भाव से!
संपर्क :
बी शिवजी, एम.पी.बी.- 88, महावीर नगर प्रथम,
कोटा ( राजस्थान )
मोबाइल : 77429 52482
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

 

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