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20 अप्रैल 2024

(ऐ रसूल) तुम ये भी कह दो कि अगर मैं गुमराह हो गया हूँ तो अपनी ही जान पर मेरी गुमराही (का वबाल) है और अगर मैं राहे रास्त पर हूँ तो इस “वही” के तुफ़ैल से जो मेरा परवरदिगार मेरी तरफ़ भेजता है बेशक वह सुनने वाला (और बहुत) क़रीब है

 (ऐ रसूल) तुम उनसे कह दो कि मेरा बड़ा गै़बवाँ परवरदिगार (मेरे दिल में) दीन हक़ को बराबर ऊपर से उतारता है (48)
(अब उनसे) कह दो दीने हक़ आ गया और इतना तो भी (समझो की) बातिल (माबूद) शुरू-शुरू कुछ पैदा करता है न (मरने के बाद) दोबारा जि़न्दा कर सकता है (49)
(ऐ रसूल) तुम ये भी कह दो कि अगर मैं गुमराह हो गया हूँ तो अपनी ही जान पर मेरी गुमराही (का वबाल) है और अगर मैं राहे रास्त पर हूँ तो इस “वही” के तुफ़ैल से जो मेरा परवरदिगार मेरी तरफ़ भेजता है बेशक वह सुनने वाला (और बहुत) क़रीब है (50)
और (ऐ रसूल) काश तुम देखते (तो सख़्त ताज्जुब करते) जब ये कुफ्फार (मैदाने हशर में) घबराए-घबराए फिरते होंगे तो भी छुटकारा न होगा (51)
और आस ही पास से (बाआसानी) गिरफ्तार कर लिए जाएँगे और (उस वक़्त बेबसी में) कहेंगे कि अब हम रसूलों पर ईमान लाए और इतनी दूर दराज़ जगह से (ईमान पर) उनका दसतरस (पहुँचना) कहाँ मुमकिन है (52)
हालांकि ये लोग उससे पहले ही जब उनका दसतरस था इन्कार कर चुके और (दुनिया में तमाम उम्र) बे देखे भाले (अटकल के) तके बड़ी-बड़ी दूर से चलाते रहे (53)
और अब तो उनके और उनकी तमन्नाओं के दरमियान (उसी तरह) पर्दा डाल दिया गया है जिस तरह उनसे पहले उनके हमरंग लोगों के साथ (यही बरताव) किया जा चुका इसमें शक नहीं कि वह लोग बड़े बेचैन करने वाले शक में पड़े हुए थे (54)

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