तू ही हमारा मालिक है न ये लोग (ये लोग हमारी नहीं) बल्कि जिन्नात (खबाएस
भूत-परेत) की परसतिश करते थे कि उनमें के अक्सर लोग उन्हीं पर ईमान रखते थे
(41)
तब (खु़दा फरमाएगा) आज तो तुममें से कोई न दूसरे के फायदे ही पहुँचाने का
इख़्तेयार रखता है और न ज़रर का और हम सरकशों से कहेंगे कि (आज) उस अज़ाब
के मज़े चखो जिसे तुम (दुनिया में) झुठलाया करते थे (42)
और जब उनके सामने हमारी वाज़ेए व रौशन आयतें पढ़ी जाती थीं तो बाहम कहते
थे कि ये (रसूल) भी तो बस (हमारा ही जैसा) आदमी है ये चाहता है कि जिन
चीज़ों को तुम्हारे बाप-दादा पूजते थे (उनकी परसतिश) से तुम को रोक दें और
कहने लगे कि ये (क़ुरान) तो बस निरा झूठ है और अपने जी का गढ़ा हुआ है और
जो लोग काफि़र हो बैठो जब उनके पास हक़ बात आयी तो उसके बारे में कहने लगे
कि ये तो बस खुला हुआ जादू है (43)
और (ऐ रसूल) हमने तो उन लोगों को न (आसमानी) किताबें अता की तुम्हें
जिन्हें ये लोग पढ़ते और न तुमसे पहले इन लोगों के पास कोई डरानेवाला
(पैग़म्बर) भेजा (उस पर भी उन्होंने क़द्र न की) (44)
और जो लोग उनसे पहले गुज़र गए उन्होंने भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया था
हालांकि हमने जितना उन लोगों को दिया था ये लोग (अभी) उसके दसवें हिस्सा को
(भी) नहीं पहुँचे उस पर उन लोगों न मेरे (पैग़म्बरों को) झुठलाया था तो
तुमने देखा कि मेरा (अज़ाब उन पर) कैसा सख़्त हुआ (45)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तुमसे नसीहत की बस एक बात कहता हूँ (वह) ये
(है) कि तुम लोग बाज़ खु़दा के वास्ते एक-एक और दो-दो उठ खड़े हो और अच्छी
तरह ग़ौर करो तो (देख लोगे कि) तुम्हारे रफीक़ (मोहम्मद स0) को किसी तरह का
जुनून नहीं वह तो बस तुम्हें एक सख़्त अज़ाब (क़यामत) के सामने (आने) से
डराने वाला है (46)
(ऐ रसूल) तुम (ये भी) कह दो कि (तबलीख़े रिसालत की) मैंने तुमसे कुछ उजरत
माँगी हो तो वह तुम्हीं को (मुबारक) हो मेरी उजरत तो बस खु़दा पर है और
वही (तुम्हारे आमाल अफआल) हर चीज़ से खू़ब वाकि़फ है (47)
(ऐ रसूल) तुम उनसे कह दो कि मेरा बड़ा गै़बवाँ परवरदिगार (मेरे दिल में) दीन हक़ को बराबर ऊपर से उतारता है (48)
(अब उनसे) कह दो दीने हक़ आ गया और इतना तो भी (समझो की) बातिल (माबूद)
शुरू-शुरू कुछ पैदा करता है न (मरने के बाद) दोबारा जि़न्दा कर सकता है
(49)
(ऐ रसूल) तुम ये भी कह दो कि अगर मैं गुमराह हो गया हूँ तो अपनी ही जान
पर मेरी गुमराही (का वबाल) है और अगर मैं राहे रास्त पर हूँ तो इस “वही” के
तुफ़ैल से जो मेरा परवरदिगार मेरी तरफ़ भेजता है बेशक वह सुनने वाला (और
बहुत) क़रीब है (50)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
19 अप्रैल 2024
तू ही हमारा मालिक है न ये लोग (ये लोग हमारी नहीं) बल्कि जिन्नात (खबाएस भूत-परेत) की परसतिश करते थे कि उनमें के अक्सर लोग उन्हीं पर ईमान रखते थे
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