इस भरे शहर में मैं अकेला हूं,,,
क्यों मुझे कोई इस जमाने में हमसफ़र नहीं मिलता,,
सूरत सीरत को चाहने वाले बहुत मिल जाते हैं,,,
क्यों रूह को चाहने वाला, हमनशी दिलबर नहीं मिलता,,,
यूं तो महफिलों में बड़े शौक से हंसने की आदत है हमें,,,
हर दर्द अपना लिखकर तुम्हें समझाने की कोशिश करते हैं,,
पर जो टिस चुभती है मुझे ,वह लिखने के लिए, कागज कलम नहीं मिलता,,,
चल चल के जिंदगी के सफर में थक चुके हैं हम, मेरे इन पैरों के छालों को,,
मेरे इन आंसुओं के सिवा कोई और मरहम नहीं मिलता,,,
हम तो तुम्हें अपने दिल में उतारे बैठे हैं, अपना सब कुछ तुमको संभाले बैठे हैं,,,
क्यों तेरे दिल में मुझे, किराया देखकर भी, रहने को घर नहीं मिलता,
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