और जो कुछ ख़़ुदा ने तूझे दे रखा है उसमें आखि़रत के घर की भी जुस्तजू कर
और दुनिया से जिस क़दर तेरा हिस्सा है मत भूल जा और जिस तरह ख़ुदा ने तेरे
साथ एहसान किया है तू भी औरों के साथ एहसान कर और रुए ज़मीन में फसाद का
ख़्वाहा न हो-इसमें शक नहीं कि ख़़ुदा फ़साद करने वालों को दोस्त नहीं रखता
(77)
तो क़ारुन कहने लगा कि ये (माल व दौलत) तो मुझे अपने इल्म (कीमिया) की
वजह से हासिल होता है क्या क़ारुन ने ये भी न ख़्याल किया कि अल्लाह उसके
पहले उन लोगों को हलाक़ कर चुका है जो उससे क़ू़वत और हैसियत में कहीं बढ़
बढ़ के थे और गुनाहगारों से (उनकी सज़ा के वक़्त) उनके गुनाहों की पूछताछ
नहीं हुआ करती (78)
ग़रज़ (एक दिन क़ारुन) अपनी क़ौम के सामने बड़ी आराइश और ठाठ के साथ
निकला तो जो लोग दुनिया को (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी के तालिब थे (इस शान से
देख कर) कहने लगे जो माल व दौलत क़ारुन को अता हुयी है काश मेरे लिए भी
होती इसमें शक नहीं कि क़ारुन बड़ा नसीब वर था (79)
और जिन लोगों को (हमारी बारगाह में) इल्म अता हुआ था कहनें लगे तुम्हारा
नास हो जाए (अरे) जो शख़्स इमान लाए और अच्छे काम करे उसके लिए तो ख़ुदा का
सवाब इससे कही बेहतर है और वह तो अब सब्र करने वालों के सिवा दूसरे नहीं
पा सकते (80)
और हमने क़ारुन और उसके घर बार को ज़मीन में धंसा दिया फिर ख़़ुदा के
सिवा कोई जमाअत ऐसी न थी कि उसकी मदद करती और न खुद आप अपनी मदद आप कर सका
(81)
और जिन लोगों ने कल उसके जाह व मरतबे की तमन्ना की थी वह (आज ये तमाशा
देखकर) कहने लगे अरे माज़अल्लाह ये तो ख़़ुदा ही अपने बन्दों से जिसकी
रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और जिसकी रोज़ी चाहता है तंग कर देता है
और अगर (कहीं) ख़ुदा हम पर मेहरबानी न करता (और इतना माल दे देता) तो उसकी
तरह हमको भी ज़रुर धॅसा देता-और माज़अल्लाह (सच है) हरगिज़ कुफ्फार अपनी
मुरादें न पाएँगें (82)
ये आखि़रत का घर तो हम उन्हीं लोगों के लिए ख़ास कर देगें जो रुए ज़मीन
पर न सरकशी करना चाहते हैं और न फसाद-और (सच भी यूँ ही है कि) फिर अन्जाम
तो परहेज़गारों ही का है (83)
जो शख़्स नेकी करेगा तो उसके लिए उसे कहीं बेहतर बदला है औ जो बुरे काम
करेगा तो वह याद रखे कि जिन लोगों ने बुराइयाँ की हैं उनका वही बदला हे जो
दुनिया में करते रहे हैं (84)
(ऐ रसूल) ख़़ुदा जिसने तुम पर क़़ुरआन नाजि़ल किया ज़रुर ठिकाने तक
पहुँचा देगा (ऐ रसूल) तुम कह दो कि कौन राह पर आया और कौन सरीही गुमराही
में पड़ा रहा (85)
इससे मेरा परवरदिगार ख़ूब वाकि़फ है और तुमको तो ये उम्मीद न थी कि
तुम्हारे पास ख़़ुदा की तरफ़ से किताब नाजि़ल की जाएगी मगर तुम्हारे
परवरदिगार की मेहरबानी से नाजि़ल हुयी तो तुम हरगि़ज़ काफिरों के पुष्त
पनाह न बनना (86)
कहीं ऐसा न हो एहकामे ख़़ुदा वन्दी नाजि़ल होने के बाद तुमको ये लोग उनकी
तबलीग़ से रोक दें और तुम अपने परवरदिगार की तरफ़ (लोगों को) बुलाते जाओ और
ख़बरदार मुशरेकीन से हरगिज़ न होना (87)
और ख़़ुदा के सिवा किसी और माबूद की परसतिश न करना उसके सिवा कोई क़ाबिले
परसतिश नहीं उसकी ज़ात के सिवा हर चीज़ फ़ना होने वाली है उसकी हुकूमत है
और तुम लोग उसकी तरफ़ (मरने के बाद) लौटाये जाओगे (88)
सूरए अल क़सस ख़त्म
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