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11 जुलाई 2023

ऐ ईमानवालों (जिहाद के वक़्त) अपनी हिफ़ाज़त के (ज़राए) अच्छी तरह देखभाल लो फिर तुम्हें इख़्तेयार है ख़्वाह दस्ता दस्ता निकलो या सबके सब इकट्ठे होकर निकल खड़े हो

 ऐ ईमानवालों (जिहाद के वक़्त) अपनी हिफ़ाज़त के (ज़राए) अच्छी तरह देखभाल लो फिर तुम्हें इख़्तेयार है ख़्वाह दस्ता दस्ता निकलो या सबके सब इकट्ठे होकर निकल खड़े हो (71)
और तुममें से बाज़ ऐसे भी हैं जो (जेहाद से) ज़रूर पीछे रहेंगे फिर अगर इत्तेफ़ाक़न तुमपर कोई मुसीबत आ पड़ी तो कहने लगे ख़ुदा ने हमपर बड़ा फ़ज़ल किया कि मैं उन (मुसलमानों) के साथ मौजूद न हुआ (72)
और अगर तुमपर ख़ुदा ने फ़ज़ल किया (और दुश्मन पर ग़ालिब आए) तो इस तरह अजनबी बनके कि गोया तुममें उसमें कभी मोहब्बत ही न थी यॅू कहने लगा कि ऐ काश उनके साथ होता तो मैं भी बड़ी कामयाबी हासिल करता (73)
बस जो लोग दुनिया की जि़न्दगी (जान तक) आख़ेरत के वास्ते दे डालने को मौजूद हैं उनको ख़ुदा की राह में जेहाद करना चाहिए और जिसने ख़ुदा की राह में जेहाद किया फिर शहीद हुआ तो गोया ग़ालिब आया तो (बहरहाल) हम तो अनक़रीब ही उसको बड़ा अज्र अता फ़रमायेंगे (74)
(और मुसलमानों) तुमको क्या हो गया है कि ख़ुदा की राह में उन कमज़ोर और बेबस मर्दो और औरतों और बच्चों (को कुफ़्फ़ार के पंजे से छुड़ाने) के वास्ते जेहाद नहीं करते जो (हालते मजबूरी में) ख़ुदा से दुआएं मांग रहे हैं कि ऐ हमारे पालने वाले किसी तरह इस बस्ती (मक्का) से जिसके बाशिन्दे बड़े ज़ालिम हैं हमें निकाल और अपनी तरफ़ से किसी को हमारा सरपरस्त बना और तू ख़ुद ही किसी को अपनी तरफ़ से हमारा मददगार बना (75)
(बस देखो) ईमानवाले तो ख़ुदा की राह में लड़ते हैं और कुफ़्फ़ार शैतान की राह में लड़ते मरते हैं बस (मुसलमानों) तुम शैतान के हवा ख़ाहों (मानने वालों) से लड़ो और (कुछ परवाह न करो) क्योंकि शैतान का दाव तो बहुत ही बोदा है (76)
(ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों (के हाल) पर नज़र नहीं की जिनको (जेहाद की आरज़ू थी) और उनको हुक्म दिया गया था कि (अभी) अपने हाथ रोके रहो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात दिए जाओ मगर जब जिहाद (उनपर वाजिब किया गया तो) उनमें से कुछ लोग (बोदेपन में) लोगों से इस तरह डरने लगे जैसे कोई ख़ुदा से डरे बल्कि उससे कहीं ज़्यादा और (घबराकर) कहने लगे ख़ुदाया तूने हमपर जेहाद क्यों वाजिब कर दिया हमको कुछ दिनों की और मोहलत क्यों न दी (ऐ रसूल) उनसे कह दो कि दुनिया की आसाइश बहुत थोड़ा सा है और जो (ख़ुदा से) डरता है उसकी आख़ेरत उससे कहीं बेहतर है (77)
और वहां तो रेशा (बाल) बराबर भी तुम लोगों पर जु़ल्म नहीं किया जाएगा तुम चाहे जहाँ हो मौत तो तुमको ले डालेगी अगरचे तुम कैसे ही मज़बूत पक्के गुम्बदों में जा छुपो और उनको अगर कोई भलाई पहुँचती है तो कहने लगते हैं कि ये ख़ुदा की तरफ़ से है और अगर उनको कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो (शरारत से) कहने लगते हैं कि (ऐ रसूल) ये तुम्हारी बदौलत है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि सब ख़ुदा की तरफ़ से है बस उन लोगों को क्या हो गया है कि कोई बात ही नहीं समझते (78)
हालांकि (सच तो यू है कि) जब तुमको कोई फ़ायदा पहुचे तो (समझो कि) ख़ुदा की तरफ़ से है और जब तुमको कोई तकलीफ़ पहुँचे तो (समझो कि) ख़ुद तुम्हारी बदौलत है और (ऐ रसूल) हमने तुमको लोगों के पास पैग़म्बर बनाकर भेजा है और (इसके लिए) ख़ुदा की गवाही काफ़ी है (79)
जिसने रसूल की इताअत की तो उसने ख़ुदा की इताअत की और जिसने रूगरदानी की (मुँह मोड़ा) तो तुम कुछ ख़्याल न करो (क्योंकि) हमने तुम को पासबान (मुक़र्रर) करके तो भेजा नहीं है (80)

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