يَا أَيُّهَا النَّاسُ اعْبُدُوا رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُمْ وَالَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ ﴾ 21 ﴿
हे लोगो! केवल अपने उस पालनहार की इबादत (वंदना) करो, जिसने तुम्हें तथा तुमसे पहले वाले लोगों को पैदा किया, इसी में तुम्हारा बचाव[1] है। 1. अर्थात संसार में कुकर्मों तथा प्रलोक की यातना से।
الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ فِرَاشًا وَالسَّمَاءَ بِنَاءً وَأَنزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجَ بِهِ مِنَ الثَّمَرَاتِ رِزْقًا لَّكُمْ ۖ فَلَا تَجْعَلُوا لِلَّـهِ أَندَادًا وَأَنتُمْ تَعْلَمُونَ ﴾ 22 ﴿
जिसने धरती को तुम्हारे लिए बिछौना तथा गगन को छत बनाया और आकाश से जल बरसाया, फिर उससे तुम्हारे लिए प्रत्येक प्रकार के खाद्य पदार्थ उपजाये, अतः, जानते हुए[1] भी उसके साझी न बनाओ। 1. अर्थात जब यह जानते हो कि तुम्हारा उत्पत्तिकार तथा पालनहार अल्लाह के सिवा कोई नहीं, तो वंदना भी उसी एक की करो, जो उत्पत्तिकार तथा पूरे विश्व का व्यवस्थापक है।
وَإِن كُنتُمْ فِي رَيْبٍ مِّمَّا نَزَّلْنَا عَلَىٰ عَبْدِنَا فَأْتُوا بِسُورَةٍ مِّن مِّثْلِهِ وَادْعُوا شُهَدَاءَكُم مِّن دُونِ اللَّـهِ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ ﴾ 23 ﴿
और यदि तुम्हें उसमें कुछ संदेह हो, जो (अथवा क़ुर्आन) हमने अपने भक्त पर उतारा है, तो उसके समान कोई सूरह ले आओ? और अपने समर्थकों को भी, जो अल्लाह के सिवा हों, बुला लो, यदि तुम सच्चे[1] हो। 1. आयत का भावार्थ यह है कि नबी के सत्य होने का प्रमाण आप पर उतारा गया क़ुर्आन है। यह उन की अपनी बनाई बात नहीं है। क़ुर्आन ने ऐसी चुनौती अन्य आयतों में भी दी है। (देखियेः सूरह क़सस, आयतः49, इस्रा, आयतः88, हूद, आयतः13, और यूनुस, आयतः38)
فَإِن لَّمْ تَفْعَلُوا وَلَن تَفْعَلُوا فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِي وَقُودُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ ۖ أُعِدَّتْ لِلْكَافِرِينَ ﴾ 24 ﴿
और यदि ये न कर सको तथा कर भी नहीं सकोगे, तो उस अग्नि (नरक) से बचो, जिसका ईंधन मानव तथा पत्थर होंगे।
وَبَشِّرِ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۖ كُلَّمَا رُزِقُوا مِنْهَا مِن ثَمَرَةٍ رِّزْقًا ۙ قَالُوا هَـٰذَا الَّذِي رُزِقْنَا مِن قَبْلُ ۖ وَأُتُوا بِهِ مُتَشَابِهًا ۖ وَلَهُمْ فِيهَا أَزْوَاجٌ مُّطَهَّرَةٌ ۖ وَهُمْ فِيهَا خَالِدُونَ ﴾ 25 ﴿
(हे नबी!) उन लोगों को शुभ सूचना दो, जो ईमान लाये तथा सदाचार किये कि उनके लिए ऐसे स्वर्ग हैं, जिनमें नहरें बह रही होंगी। जब उनका कोई भी फल उन्हें दिया जायेगा, तो कहेंगेः ये तो वही है, जो इससे पहले हमें दिया गया और उन्हें समरूप फल दिये जायेंगे तथा उनके लिए उनमें निर्मल पत्नियाँ होंगी और वे उनमें सदावासी होंगे।
إِنَّ اللَّـهَ لَا يَسْتَحْيِي أَن يَضْرِبَ مَثَلًا مَّا بَعُوضَةً فَمَا فَوْقَهَا ۚ فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا فَيَعْلَمُونَ أَنَّهُ الْحَقُّ مِن رَّبِّهِمْ ۖ وَأَمَّا الَّذِينَ كَفَرُوا فَيَقُولُونَ مَاذَا أَرَادَ اللَّـهُ بِهَـٰذَا مَثَلًا ۘ يُضِلُّ بِهِ كَثِيرًا وَيَهْدِي بِهِ كَثِيرًا ۚ وَمَا يُضِلُّ بِهِ إِلَّا الْفَاسِقِينَ ﴾ 26 ﴿
अल्लाह,[1] मच्छर अथवा उससे तुच्छ चीज़ से उपमा (मिसाल) देने से नहीं लज्जाता। जो ईमान लाये, वे जानते हैं कि ये उनके पालनहार की ओर से उचित है और जो काफ़िर (विश्वासहीन) हो गये, वे कहते हैं कि अल्लाह ने इससे उपमा देकर क्या निश्चय किया है? अल्लाह इससे बहुतों को गुमराह (कुपथ) करता है और बहुतों को मार्गदर्शन देता है तथा जो अवज्ञाकारी हैं, उन्हीं को कुपथ करता है। 1. जब अल्लाह ने मुनाफ़िक़ों की दो उपमा दी, तो उन्हों ने कहा कि अल्लाह ऐसी तुच्छ उपमा कैसे दे सकता है? इसी पर यह आयत उतरी। (देखिये तफ़्सीर इब्ने कसीर)
الَّذِينَ يَنقُضُونَ عَهْدَ اللَّـهِ مِن بَعْدِ مِيثَاقِهِ وَيَقْطَعُونَ مَا أَمَرَ اللَّـهُ بِهِ أَن يُوصَلَ وَيُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ ۚ أُولَـٰئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ ﴾ 27 ﴿
जो अल्लाह से पक्का वचन करने के बाद उसे भंग कर देते हैं तथा जिसे अल्लाह ने जोड़ने का आदेश दिया, उसे तोड़ते हैं और धरती में उपद्रव करते हैं, वही लोग क्षति में पड़ेंगे।
كَيْفَ تَكْفُرُونَ بِاللَّـهِ وَكُنتُمْ أَمْوَاتًا فَأَحْيَاكُمْ ۖ ثُمَّ يُمِيتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيكُمْ ثُمَّ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ ﴾ 28 ﴿
तुम अल्लाह का इन्कार कैसे करते हो? जबकि पहले तुम निर्जीव थे, फिर उसने तुम्हें जीवन दिया, फिर तुम्हें मौत देगा, फिर तुम्हें (परलोक में) जीवन प्रदान करेगा, फिर तुम उसी की ओर लौटाये[1] जाओगे! 1. अर्थात परलोक में अपने कर्मों का फल भोगने के लिये।
هُوَ الَّذِي خَلَقَ لَكُم مَّا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا ثُمَّ اسْتَوَىٰ إِلَى السَّمَاءِ فَسَوَّاهُنَّ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ ۚ وَهُوَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ ﴾ 29 ﴿
वही है, जिसने धरती में जो भी है, सबको तुम्हारे लिए उत्पन्न किया, फिर आकाश की ओर आकृष्ट हुआ, तो बराबर सात आकाश बना दिये और वह प्रत्येक चीज़ का जानकार है।
وَإِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلَائِكَةِ إِنِّي جَاعِلٌ فِي الْأَرْضِ خَلِيفَةً ۖ قَالُوا أَتَجْعَلُ فِيهَا مَن يُفْسِدُ فِيهَا وَيَسْفِكُ الدِّمَاءَ وَنَحْنُ نُسَبِّحُ بِحَمْدِكَ وَنُقَدِّسُ لَكَ ۖ قَالَ إِنِّي أَعْلَمُ مَا لَا تَعْلَمُونَ ﴾ 30 ﴿
और (हे नबी! याद करो) जब आपके पालनहार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं धरती में एक ख़लीफ़ा[1] बनाने जा रहा हूँ। वे बोलेः क्या तू उसमें उसे बनायेग, जो उसमें उपद्रव करेगा तथा रक्त बहायेगा? जबकि हम तेरी प्रशंसा के साथ तेरे गुण और पवित्रता का गान करते हैं! (अल्लाह) ने कहाः जो मैं जानता हूँ, वह तुम नहीं जानते। 1. ख़लीफ़ा का अर्थ हैः स्थानापन्न, अर्थात ऐसा जीव जिस का वंश हो और एक दूसरे का स्थान ग्रहण करे। (तफ़्सीर इब्ने कसीर)
وَعَلَّمَ آدَمَ الْأَسْمَاءَ كُلَّهَا ثُمَّ عَرَضَهُمْ عَلَى الْمَلَائِكَةِ فَقَالَ أَنبِئُونِي بِأَسْمَاءِ هَـٰؤُلَاءِ إِن كُنتُمْ صَادِقِينَ ﴾ 31 ﴿
और उसने आदम[1] को सभी नाम सिखा दिये, फिर उन्हें फ़रिश्तों के समक्ष प्रस्तुत किया और कहाः मुझे इनके नाम बताओ, यदि तुम सच्चे हो! 1. आदम प्रथम मनु का नाम।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)