मरहूम अनवार अहमद क़ाज़ी ऐ शहर, कोटा आज भी कोटा के दिलों की धड़कन है, उनके मुक़ाबिल दस फीसदी भी सक्सेसर हो जाएं तो कोटा बचा रहेगा, समस्या मुक्त रहेगा,
कोटा शहर क़ाज़ी मरहुम अनवार अहमद ,, के बाद इस साल पहले रोज़ा इफ्तार कार्यक्रमों में उनकी कमी सभी लोगों को खूब अखरी , जबकि ज्वलंत समस्याओं के प्रति सूझ बूझ से समाधान के प्रयासों में भी वर्तमान हालातों में, वर्तमान सिस्टम फिसड्डी साबित हुए है , ऐसे में समस्याओं के समाधान की चाहत रखने वाले भी उन्हें खूब याद कर रहे हैं , यह और बात है , के उनके निधन के ,बाद ,, सियासी और पेशेवर लोग जो मौलाना ,, मौलवियों की तरह से नज़र आते हैं , वोह काज़ियात मामले में लार टपका ,कर गिद्ध , चील , कौवों की तरह से षड्यंत्र पूर्ण कार्यवाही के साथ टूट पढ़े , लेकिन अल्लाह का करम है , के मरहूम अनवार अहमद के बाद भी उनकी नसीहतों , के , चलते काज़ियात के खिलाफ,, ऐसे लोगों का हर तरह षड्यंत्र असफल हो गया ,,,, मरहूम अनवार अहमद साहब की शख्सियत पर जितनी भी किताबें लिखो कम है , ,इस रोज़ा इफ्तार मजलिसों में कोटा के आम मुसलमान , रोज़ेदार , परहेज़गार के साथ साथ , गंगा जमुनी तहज़ीब के अलम्बरदार दूसरे सभी समाजों के भाई भी हिदायतों भरी , तक़रीर से महरूम रहे , जबकि , इफ्तार के वक़्त , उनका बैठना , दुआ के पहले , उनकी शेरवानी की जेब से , पिंड खजूर निकालना फिर उस खजूर के हिस्से करके , आस पास बैठे हुए सभी लोगों को , बतौर तबर्रुक देना ,लोगों को याद आता रहा , चाहे , केबिनेट मंत्री शांति कुमार धारीवाल हों , खादी ग्रामोद्योग के उपाध्यक्ष पंकज जी मेहता हों , पूर्व न्यास अध्यक्ष रविंद्र त्यागी हों , पूर्व हज कमेटी के चेयरमेन अमीन पठान हों , सभी धर्मों के लोग इस इफ्तार में , उन्हें याद करते नज़र आये , ,, मरहूम अनवार अहमद ही थे , जो एक रूपये का केला देकर केला देते हुए फोटो खेंचकर , अख़बारों में पब्लिसिटी का खुला विरोध करते थे , बुरे को बुरा कहना, उसका विरोध करना , उनका अख़लाक़ी फ़र्ज़ था , वोह इल्म को पेट पालने का ज़रिया बनाने वालों के खिलाफ थे, निष्पक्ष रूप से , हिकमत ऐ अमली ,दयानतदारी से , उन्होंने ,, कोटा के 1954 से अब तक छोटे बढे , एक दर्जन से भी ज़्यादा बिगड़े हालात देखे , साम्प्रदायिक नफरत के माहौल में , मोहब्बत के पैगाम के साथ , अनवार अहमद ने , अमन सुकून क़ायम करने की कामयाब कोशिशें कर , हुकूमत के हर पक्ष को विकट हालातों में भी सकारात्मक परिणाम देकर, चौंका कर रख दिया , लेकिन जब बात जेल में , क़ैदियों के साथ क़ुरआन की बेहुरमती की आयी , हुज़ूर स अ व के अपमान की बात आई , या फिर उर्दू जुबां के साथ , पक्षपात की बात आई , तो फिर उन्होंने टेढ़ी ऊँगली कर, एक ज़लज़ला , खामोश ज़लज़ला , ,खामोश ताक़त दिखा कर, ऐसे मामलों में इंसाफ की जंग लड़ी है , ,, बरकत उद्यान जहाँ भाजपा के शासन काल में वुज़ू घर तोड़ने के बाद , एक बढ़ा सैलाब आने वाला था ,भीड़ इकट्ठी थी , पुलिस और पब्लिक आमने सामने थे , गोली चली , लाठी चली , आंसू गैस के गोले चले ,, भीड़ हटने को तय्यार नहीं थी , ऐसे में एक नौसिखिये पुलिस कर्मी ने उनके बाज़ू पर भी लठ बरसा दिया , नाज़ुक सा हाथ , दर्द से वोह तड़पे लेकिन उन्होंने उफ़फ़ तक ना किया , खामोशी से, कराहते हुए, एक तरफ हो ,गए कलेक्टर,, अतिरिक्त कलेक्टर,पुलिस अधीक्षक उन्हें सुरक्षात्मक घेरे में लेकर, अपने साथ लेकर खड़े हुए , माफ़ी मांगते रहे , लेकिन उनकी ग्रेटनेस थी , के उनके ऊपर जो लठ्ठ का वार था , उन्होने किसी को अहसास नहीं होने दिया , प्रशासन को भी कहा , खामोश रहे अगर ,, भीड़ में से किसी को यह पता लगा के क़ाज़ी ऐ शहर के जाने या अनजाने में चोट लग गयी है , तो बवाल खड़ा हो जायेगा,और उस बवाल को भी, अनवार अहमद साहब ने, बढ़ी हिकमत ऐ अमली से निपटा लिया , अभी का माहौल भी वोह खूब आसानी से निपटा रहे थे , सभी तरह के लोग उनसे मिलते थे , हाँ पक्ष , ना पक्ष , चुगलखोर पक्ष , विरोधी पक्ष , षड्यंत्रकारी पक्ष , सियासी , गैर सियासी पक्ष , ईमानदारी से उनका वफादार पक्ष , सभी तो उनसे अपनी बात कहते थे , ,हुकूमत से जुड़े प्रसाद पर्यन्त पद के लिए , हुकूमत पहले उनकी राय भी लेती रही थी ,तभी , सियासी लोगों को ओहदे दिए जाते रहे , ,लेकिन अब , वोह हमारे बीच नहीं हैं , उनकी यादें हमारे बीच ,हैं उनके अधूरे काम हमारे बीच हैं , काफी वक़्त गुज़र गया अभी उनके साहिबज़ादे , जो उनके जीवनकाल में ही ,परछाईं की तरह उनके साथ रहकर, उनकी हर तहज़ीब , हर सलीक़ा , हमदर्दी का पाठ सीख रहे थे , वोह अब उनकी ज़िंदगी से ही , क़ाज़ी ऐ शहर है , लेकिन अभी उन्हें बहुत कुछ सीखना है , कुछ लोगों के चंगुल से आज़ाद होना है , जो वायदे हुकूमत ने मरहूम अनवार अहमद से किये थे , उनमे जो भी बकाया मुद्दे हैं , उनके वायदों की भरपाई , उनकी पूर्ति के लिए , उन्हें चुप रहकर नहीं , हिकमत ऐ अमली से , थोड़े कठोर फैसले लेकर, पुरे करवाकर ,, उन्हें खिराज ऐ अक़ीदत पेश करना हैं , क्योंकि अभी हुकूमत के उनसे किये गए वायदों में बहुत कुछ बाक़ी है , अधूरा है ,, रहा सवाल सियासी , हुकूमत में पदों की चाह रखने वाले तिजारती लोगों की , तो उन्होंने मरहूम अनवार अहमद के जनाज़े के वक़्त भी शरारतें कीं , गए भी और लोगों को जाने से भी रोका, मीटिंगे कर लोगों को उकसाया भी ,भड़काया भी ,, तोबायें भी की , काज़ियत को प्रश्नगत करने की कोशिश भी की , अभी भी साज़िशकर्ता साज़िशों में लगे हैं , जबकि , मोहब्बत करने वाले लोग मोहब्बत कर रहे हैं , लेकिन ,, मरहूम क़ाज़ी ऐ शहर की परवरिश , उनकी उस्तादी के ज़ेरे अलम , शागिर्द कहो , वली अहद कहो , कोटा की काज़ियत के लिए खुसूसी ज़रूरत कहो , क़ाज़ी जुबेर अहमद साहब माशा अल्लाह हर ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं , और वोह अगर दस फीसदी भी वालिद की राह पर चल दिये तो, इंशा अल्लाह , वाजिब मसाइलों , वाजिब वायदों , मरहूम अनवार अहमद से हुकूमत के वाजिब वायदों को पूरा करने के लिए कुलियों में गूढ़ फोड़ने की जगह सलाह मश्वररे , ,बात चीत , से ,, या फिर सब्र का बांध टूटने पर , हिकमत ऐ अमली , के पुरखुलूस विरोध ,, आन्दोलन के साथ वोह सभी ज़रूरी कामकाज करवाकर ही रहेंगे , और क़यादत को ईमानदारी से निभाकर, अपना परचम बुलंद रखेंगे , इंशा अल्लाह , , अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339
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