कि आखि़र तुम्हें दोज़ख़ में कौन सी चीज़ (घसीट) लायी (41)
वह लोग कहेंगे (42)
कि हम न तो नमाज़ पढ़ा करते थे (43)
और न मोहताजों को खाना खिलाते थे (44)
और एहले बातिल के साथ हम भी बड़े काम में घुस पड़ते थे (45)
और रोज़ जज़ा को झुठलाया करते थे (और यूँ ही रहे) (46)
यहाँ तक कि हमें मौत आ गयी (47)
तो (उस वक़्त) उन्हें सिफ़ारिश करने वालों की सिफ़ारिश कुछ काम न आएगी (48)
और उन्हें क्या हो गया है कि नसीहत से मुँह मोड़े हुए हैं (49)
गोया वह वहशी गधे हैं (50)
कि शेर से (दुम दबा कर) भागते हैं (51)
असल ये है कि उनमें से हर शख़्स इसका मुतमइनी है कि उसे खुली हुयी (आसमानी) किताबें अता की जाएँ (52)
ये तो हरगिज़ न होगा बल्कि ये तो आख़ेरत ही से नहीं डरते (53)
हाँ हाँ बेशक ये (क़ुरआन सरा सर) नसीहत है (54)
तो जो चाहे उसे याद रखे (55)
और ख़ुदा की मशीयत के बग़ैर ये लोग याद रखने वाले नहीं वही (बन्दों के) डराने के क़ाबिल और बक़शिश का मालिक है (56)
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
27 फ़रवरी 2023
कि आखि़र तुम्हें दोज़ख़ में कौन सी चीज़ (घसीट) लायी
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