सूरए अल क़लम
सूरए अल क़लम मक्का में नाजि़ल हुआ और इसकी बावन (52) आयतें हैं
ख़ुदा के नाम से (शुरू करता हूँ) जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
नून क़लम की और उस चीज़ की जो लिखती हैं (उसकी) क़सम है (1)
कि तुम अपने परवरदिगार के फ़ज़ल (व करम) से दीवाने नहीं हो (2)
और तुम्हारे वास्ते यक़ीनन वह अज्र है जो कभी ख़त्म ही न होगा (3)
और बेशक तुम्हारे एख़लाक़ बड़े आला दर्जे के हैं (4)
तो अनक़रीब ही तुम भी देखोगे और ये कुफ़्फ़ार भी देख लेंगे (5)
कि तुममें दीवाना कौन है (6)
बेशक तुम्हारा परवरदिगार इनसे ख़ूब वाकि़फ़ है जो उसकी राह से भटके हुए हैं और वही हिदायत याफ़्ता लोगों को भी ख़ूब जानता है (7)
तो तुम झुठलाने वालों का कहना न मानना (8)
वह लोग ये चाहते हैं कि अगर तुम नरमी एख़्तेयार करो तो वह भी नरम हो जाएँ (9)
और तुम (कहीं) ऐसे के कहने में न आना जो बहुत क़समें खाता ज़लील औक़ात ऐबजू
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
01 फ़रवरी 2023
नून क़लम की और उस चीज़ की जो लिखती हैं (उसकी) क़सम है
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