सियासत , सियासत होती है ,, लेकिन सियासत में ,,नियुक्तियों की जो ,,उम्मीद ,जो चाहत , जो कोशिशें होती है ,,उन कोशिशों की नाकामयाबी , धोखेबाज़ी , नाउम्मीदी , कई ज़िम्मेदारों को मानसिक रोगी बना देती है ,,कई लोगों को अपने ही लोगों से बगावत पर मजबूर कर देती है ,, लेकिन कुछ लोग जो उम्मीद में रहते है ,, वोह जब तक नियुक्तियों का सिलसिला बंद नहीं हो जाता तब तक ,एक छद्म चाहत , में जीते है , एक छद्म माहौल ,बनाकर रहते है ,और इसे ही ,, नियुक्ति फोबिया कहते है ,, राजस्थान में कमोबेश हर ज़िले में , सो से ज़्यादा , राजस्थान में ,बढे ओहदो पर जाने की उम्मीद पर दो सो से ज़्यादा , मंत्री मंडल की उम्मीद में , दो दर्जन से ज़्यादा , और पुरे राजस्थान में छोटी ,जिला स्तरीय नियुक्ति की उम्मीद ,आस में ,हज़ारो हज़ार लोग इस , बीमारी ,जिसे हम सियासी नियुक्ति फोबिया भी कहकर सम्बोधित कर सकते है , जी रहे है ,, , जी हाँ दोस्तों सरकारें आती हैं , जाती है ,,कुछ लोग संगठनों में , नियुक्तियों की उम्मीद लगाते है ,कोशिशें करते है ,कुछ सफल हो जाते है , कुछ असफल होकर बैठ जाते है ,लेकिन कुछ लोग अपने इर्द गिर्द रह रहे लोगों के मज़ाक़ को समझे बिना , उनके मज़ाक़ ही मज़ाक़ में ,नियुक्तियों के फार्मूले के ऐसा किरदार बन जाते है ,जिनके आसपास छद्म माहौल , बनाकर , लोग उन्हें मज़ाक़ का पात्र बना देते है ,, नियुक्तियों की चाहे संगठन में हो ,चाहे प्रसाद पर्यन्त नियुक्तियों की चाहत हो ,,, हर शहर में सो से अधिक लोग ऐसे ही होते है ,जिन्हे सूबह से ,लेकर शाम तक ,नियुक्तियों में उनका नाम आने का इन्तिज़ार रहता है ,कुछ कोशिशें करते है , कुछ कोशिश नहीं भी करते , लेकिन ,अपने आसपास के नेताओं से उम्मीद लगाकर , आसपास के शरारती साथियों ,, से नियुक्तियों के मामले में फ़र्ज़ी पेशनगोई खबरें सुनकर , उनका नियुक्तियों में नाम आने की फ़र्ज़ी शरारती खबरें सुनकर , वोह घर बैठे भी बढ़े ऊँचे ओहदों की चाहत रखते है ,एक काल्पनिक जीवन , बना लेते है , उम्मीदें पाल लेते है , ऐसे लोग फिर किसी की नहीं सुनते , वोह एक भरोसे , एक विश्वास में रहते है , के नियुक्तियों की शुरुआत होते ही ,उनकी नियुक्ति हर हाल में होगी ,, ऐसे लोगों के पारिवारिक लोग ,इनके हमदर्द दोस्त ,, इनकी इस हालत में सुधार की कोशिश भी अगर करें ,तो वोह उन्हें विलेन समझते है ,, लेकिन अगर उनकी हाँ में हाँ मिलाई जाए , कोई कालपनिक सपोर्ट देने की ,मनघड़ंत कहानी सुनाई जाए , तो ऐसे लोग उन्हें मित्र लगते है ,अच्छे लगते है ,,, मेरे एक मित्र मनोचिकित्स्क खुद ,, ऐसे लोगों से चिंतित है ,, उनके पास हर हफ्ते में या एक माह मे इस तरह के कुछ मरीज़ आ रहे है ,जो काफी पुराने मरीज़ है , मेरे मनोचिकित्स्क मित्र ने ,, सलाह भी दी है के ऐसे लोगों को यथार्थ में बुलाना होगा , ख्वाबों की दुनिया से ,छद्म शरारती लोगों की झूंठी फरेबी दुनिया से , बाहर निकालने की ज़रूरत है ,, क्योंकि हर तरह से सक्षम ,समझदार , पढ़े लिखे ,लोग भी इस सियासी फोबिया के शिकार बन रहे है , राजस्थान में केंद्र में भाजपा की सरकार है ,यहाँ कोटा के लोकसभा अध्यक्ष है , कई केंद्रीय मंत्री है ,ऐसे में कई साथियों को केंद्रीय नियुक्तियों की उम्मीदें बंधी है , वोह रोज़ अपनी नियुक्तियों पर चर्चा करते है ,इन्तिज़ार में रहते है ,, हज़ारों हज़ार साथियों में से कुछ गिनती के लोगों को ही नियक्तियाँ मिलना सम्भवं है ऐसे में ,, उम्मीद के साथ कोशिश पूरी कीजिये , लेकिन , सियासी फोबिया से ,बचकर रहिये , यही संदेश है ,,, राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है ,, दो सो से भी अधिक प्रदेश स्तरीय साथी ,वरिष्ठ लोग ,मंत्री दर्जा पद चेयरमेन के पद के दावेदार भी , उम्मीदवार भी है ,, लेकिन इनमे से कुछ लोग तो ,, हर हाल में ख्वाबों में , ख्यालों में , अपनी नियुक्ति स्वीकार कर चुके है ,दावे करते है ,, कोई दिल्ली से नियुक्ति लाने का विचार बनाता है ,तो कोई लोकल सिफारिश पर , तो कुछ विधायक ,मंत्री और संसदीय सचिव की उम्मीद में प्रताड़ित है ,जिला स्तरीय समितियों में हर ज़िले में दो सो से पांच सो कुल राजस्थान में हज़ारों हज़ार कार्यकर्ता इस , नियक्ति फोबिया के शिकार है ,, मेरे मित्र मनोचिकित्स्क ने अध्ययन के बाद बताया कि कांग्रेस में यह फोबिया , इसलिए भी थोड़ा खतरनाक हो गया ,है , क्योंकि यहाँ कार्यकर्ताओं में उम्मीदों और नेतृत्व के बदलाव से ,, सोच भी बदली है ,कुछ लोग निराश हुए है तो कुछ लोगों को उम्मीदें बंधी है ,, कुछ कोरोना मौतों से कुछ लोग चिंताग्रस्त हुए है ,, अधिकारीयों की नियुक्तियों से हताश हुए है ,, प्रभारी से मेल मुलाक़ात ,फिर नए प्रभारी की नियुक्ति ,संगठन में अध्यक्ष पद में बदलाव ,, मंत्री मंडल का विस्तार रुका होना ,, चुनाव पर चुनाव फिर कोरोना गाइड लाइन , कोरोना का खौफ , ऐसे कई कारण है जिनके होने ,से , , कांग्रेस में मंत्री पद हो ,चाहे संसदीय सचिव पद हो , चाहे ,प्रसाद पर्यन्त बोर्ड ,कॉर्पोरेशन के पद हो ,संगठन में पदाधिकारी के पद हों ,,इन सब में , उम्मीदवार ज़्यादा ,पोस्टें कम , और नियुक्तियों में देरी ने ,, कोशिश में लगे , उम्मीद पूरी होने की चाह में जोड़ तोड़ कर रहे , और बार बार अपने रसुकात के आधार पर नियुक्तियों की अग्रिम बधाइयां लेने वाले कई लोग , इस बीमारी से लड़ रहे , है ,,, कुछ तो ऐसे है ,जो बोल्ड है ओल्ड है उन्होंने सियासत की सच्चाई देखी है ,,वोह व्यवहारिक है , इसलिए नियुक्तियों की कोशिश के बाद ,अल्लाह , ईश्वर पर सब कुछ छोड़कर अपने , अपने कामों में लगे है ,, वोह बिंदास है ,हर स्थिति से निपटने को तैयार है ,, वोह फोबिया से बचे हुए है ,, लेकिन जो उम्मीद पाल बैठे है , रोज़ मर्रा ,अपने मित्रों , अपने परिजनों में ,, नियुक्तियों की कोशिशों को लेकर प्रताड़ित हो रहे है ,, रोज़ एक ही चर्चा ,नियुक्तियां कब होंगी ,, मेरी भी हो रही है ,उससे बात हो गयी है ,उसने मेरी सिफारिश कर दी है , अब तो मेरी नियुक्ति निश्चित है ,वगेरा वगेरा ,सोचते रहे है ,ऐसे लोगों को उकसाने के लिए ,,भड़काने के लिए , आग में घी डालने के लिए , कुछ शरारती तत्व मनगढ़ंत बातें भी इन तक पहुंचाकर ,इनकी उम्मीद और मज़बूत करते है ,जिसमे नेताओं द्वारा उसने बात करने पर ऐसे लोगों की सिफारिश की तस्दीक़ करना ,नियुक्ति सूचि में नाम होने की तस्दीक़ करना , वगेरा वगेरा , न जाने कितनी ऐसी बाटे है जो ऐसे लोगों को ,, प्रताड़ित कर , फोबिया का शिकार कर रही है , इसलिए बिंदास रहो , मस्त रहो , मिले तो ठीक , न मिले तो , ज़िंदगी है ,साँसें है ,,दोस्तों की मोहब्बत है ,परिवार की खुशियां है ,,क्या लाये थे , क्या ले जाएंगे ,, जो करता है , अल्लाह , ईश्वर करता है , उसकी मर्ज़ी के बगैर कुछ नहीं हो सकता ,उस पर भरोसा करो ,रहो ,व्यस्त रहो ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
27 नवंबर 2020
सियासत , सियासत होती है ,, लेकिन सियासत में ,,नियुक्तियों की जो ,,उम्मीद ,जो चाहत , जो कोशिशें होती है ,,उन कोशिशों की नाकामयाबी , धोखेबाज़ी , नाउम्मीदी , कई ज़िम्मेदारों को मानसिक रोगी बना देती है
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