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02 नवंबर 2020

*हर पल अपनी जान जोखिम में डालकर जान बचाते डाॅक्टर्स*

 

*हर पल अपनी जान जोखिम में डालकर जान बचाते डाॅक्टर्स*
सन्दर्भ: कोरोना काल-खंड में प्राणों की आहुति दे चुके 600 से अधिक डॉक्टर्स (कोरोना वॉरियर्स)
डाॅ. सुरेश कुमार पाण्डेय, वरिष्ठ नेत्र सर्जन, कोटा (राजस्थान)
कोरोंना काल-खण्ड में अब तक लगभग 600 से अधिक चिकित्सक इस अदृश्य विषाणु से लड़ते हुए रोगियों को बचाते हुए शहीद हो चुके हैं। दुर्भाग्य वश सरकार के पास अपने प्राणों की आहुति देकर शहीद हुए इन चिकित्सकों की न तो कंप्लीट लिस्ट ही है और न ही सही आंकड़े उपलब्ध हैं। एक चिकित्सक के रूप में कार्य करना एवं अनवरत् समान्य रोगियों से लेकर गंभीर/मरणासन्न, एक्सिडेंटल रोगियों का उपचार/सर्जरी करना खतरे से खाली नहीं है। गंभीर बीमारी से पीड़ित रोगियों को नहीं बचा पाने में सफल नहीं होने पर डॉक्टर्स पर लापरवाही का आरोप लगाकर कटघरे में खड़े करने वाले समाज, रोगी एवम् उनके परिजनों को इसे खतरे या रिस्क की जानकारी नहीं होती है। लेकिन डॉक्टर्स/हैल्थ केयर वर्कर्स द्वारा रोगियों का उपचार करती समय स्वयं के जीवन को खतरें में डालने वाली यह ऑक्युपेशनल हैल्थ हेजार्ड एवं रिस्क सोचने योग्य है। मानवाधिकार की बातें करने वाले अनेकानेक संगठन, निशुल्क हैल्थ शिविरों में डॉक्टर्स की सेवाऐं लेने वाले एन. जी. ओ., समाज के कथित राजनेता, जन सामान्य एवं सरकारी तंत्र यहां तक कि चिकित्सक स्वयं भी इन सभी ऑक्युपेशनल हैल्थ खतरों के प्रति अंजान/उदासीन बने रहते है अथवा गंभीरता से नहीं ले पाते है। आज आवश्यकता इस बात की है देश के युवा चिकित्सक उनके परिजन, सरकारी तंत्र, एवम् समाज आदि डॉक्टर्स द्वारा उठाए जा रहे इन खतरों के बारे में जाने और अपनी जान जोखिम में डालकर जाने बचाने वाले डॉक्टर्स द्वारा ली जाने वाली रिस्क को गहराई से समझें।
*कर्तव्य पालन करते समय हर पल ख़तरा*
कोविड-19 वैश्विक महामारी के इस युग में मास्क, सेनिटाइजर, पी पी ई किट आदि बचाव के साधनों की उपयोगिता से आम जनता वाकिफ हो चुकी है । लेकिन आज भी कोविड रोगियों के उपचार कर रहे चिकित्सकों/नर्सिंग स्टाफ को मास्क, ग्लव्स, सेनिटाइजर, पी पी ई किट, आदि के अभाव होने का समाचार पढ़ने को मिलता रहता है। कोराना काल-खण्ड से पहले भी चिकित्सकों को अपने कर्तव्यों का पालन करते समय हर पल होने वाले अनेकों खतरों (आक्यूपेशनल हेल्थ हेजार्ड) से जूझना पड़ता रहा है। अस्पतालों में डॉक्टर्स जब ट्यूबरकुलोसिस, हेपेटाइटिस-बी, हेपेटाइटिस-सी, एच.आई.वी., इन्फ्लूएन्जा, स्वाईन फ्लू, चिकनपाॅक्स, रेबिज एवं विभिन्न प्रकार के वायरस इत्यादि बिमारियों से पीड़ित व्यक्तियों का उपचार करते है तो चिकित्सक एवं नर्सिंगकर्मीयों को भी संक्रमित होने का खतरा बराबर बना रहता है।
*मेडिकल स्टूडेंट/युवा डॉक्टर्स में बढ़ रहें है ड्रग/एल्कोहल एडिक्शन एवम् सुसाइड*
मेडीकल कॉलेज एवम् देश के व्यस्त चिकित्सा संस्थानों में इमरजेंसी में काम करने वाले चिकित्सकों को लम्बे समय तक काम का तनाव, 12 घंटों की ड्यूटी, रोगियों की लम्बी कतार के कारण ओवर वर्क आदि होने के कारण युवा चिकित्सक, रेजीडेन्ट एवं चिकित्सकों में डिप्रेशन, स्ट्रेस-बर्नआउट, ड्रग् एवम् एल्कोहल एडिक्शन बढ़ता जा रहा है। बढ़ते डिप्रेशन, तनाव के कारण मेडिकल स्टूडेन्ट्स एवं चिकित्सकों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति आम जनता से कई गुना अधिक होती जा रही है।
*डॉक्टर्स में तेजी से बढ़ रही हैं हार्ट डिजीज, हाइपरटेंशन, डायबीटिज एवं कैंसर जैसे रोग*
भारत में 1500 रोगियों के लिए एक डॉक्टर उपलब्ध है। वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार 1000 रोगियों के लिए एक डॉक्टर होना चाहिए।
एक सौ पैंतीस करोड़ की आबादी वाले देश के व्यस्त अस्पतालों में चिकित्सकों को लंबे समय की इमरजेंसी ड्यूटी, जटिल रोगियों के उपचार/सर्जरी में परफेक्ट रिजल्ट/आउटकम देनें का तनाव, नींद का अभाव, सतत् तनाव रहने के कारण हाॅर्ट डिजिज, हाइपरटेंशन, डायबीटिज आदि लाइफ स्टाइल बिमारियाँ आम पब्लिक से अधिक होती जा रही हैं। रेडियोलाॅजी एवं ओंकोलोजी में कार्य कर रहे चिकित्सकों में रेडिशन एक्सपोजर के कारण कैंसर होने की संभावना आम जनता से अधिक है। आई सी यू, इन्फेक्टिव यूनिट में कार्य कर रहे चिकित्सकों के शरीर के नेचुरल बायोफ्लोरा अस्पताल जनित फ्लोरा से रिप्लेस हो जाते है जिस कारण इन डॉक्टर्स को इन्फेक्शन होने पर उसका इलाज करना मुश्किल होता है।
महिला चिकित्सकों में लम्बे ड्यूटी ऑवर्स, वर्क लाइफ बैलेंस के अभाव के कारण दाम्पत्य जीवन प्रभावित होने लगा है एवम् तलाक होने के केसेज सतत् बढ़ते जा रहे हैं।
*चिकित्सकों की घटती औसत आयु*
मेडिकल कालेज, सरकारी एवम् अन्य अस्पतालों में काम के लम्बे घंटे, अपने शरीर एवम् स्वास्थ्य की लगातार अनदेखी करते रोगियों का उपचार करने में व्यस्त रहना, पर्याप्त नींद का अभाव, मानसिक तनाव व वर्क लाइफ बैंलेंस में तालमेल ना बिठा पाने, आदि आदि अनेकों कारणों से चिकित्सकों की औसत घटकर आयु 59 वर्ष हो चुकी है जो कि आम जनता की औसत आयु (67.9 वर्ष) से लगभग 9 वर्ष कम है। यह तथ्य इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन (आई. एम. ए.) द्वारा 10 हजार से अधिक चिकित्सकों पर 10 वर्षो तक किये गये अध्ययन के बाद साबित हो चुका है।
*वॉयलेंस अगैंस्ट डॉक्टर्स*
मेडीकल कॉलेज, सरकारी एवम् इमरजेंसी सेवा देने वाले अस्पतालों में 24/7 पोस्टेड रेजिडेंट चिकित्सकों को आये दिन रोगियों को बचाते समय रोगियों के परिजनों/छुट भैया नेताओं द्वारा मारपीट, अपमान एवं गाली-गलौज का सामना करना पड़ता है। अस्पतालों में आए दिन होने वाली इस प्रकार की हिंसक, तोड़फोड़ की घटनाओ के वीडियो सोशल मीडिया पर आए दिन देखने को मिलते रहते हैं जिनके कारण रोगियों एवं चिकित्सक के सम्बन्ध कमजोर होते जा रहें हैं एवम् चिकित्सकों की रोगियों के प्रति संवेदनशीलता कम होती है।
*चिकित्सक भी अपने स्वास्थ्य एवम् अपने परिवार के स्वास्थ्य का ध्यान रखें।*
चिकित्सक अपने कर्तव्यों का पालन करें लेकिन "हीलिंग द हीलर" नामक सूत्र का पालन करते हुए व्यस्त समय में से अपने, अपने परिवार के स्वास्थ्य के लिए भी समय अवश्य निकालें। "प्रिवेंशन इस बेटर देन क्योर" के सिद्धांत पर चलते हुए वर्ष में दो बार ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर, ई सी जी सहित अन्य महत्वूर्ण हैल्थ टेस्ट अवश्य कराएं। सप्ताह में एक दिन का ब्रेक लेवें, हैल्थी फूड हैबिट्स, रोजाना एक्सरसाइज, योग आदि करने की आदत डालें एवम् छ घंटे की नींद लेवें। अपनी बिमारी का उपचार नियमित रखें, कोई भी स्वास्थ्य परेशानी या लक्षण को बिल्कुल नजर अंदाज नहीं करें, तुरंत साथी चिकित्सकों से परामर्श लेकर जांच/ उपचार करावें। अपने एवम् अपने परिवार के स्वास्थ्य का पूरा पूरा ध्यान स्वयं रखें तभी आप दूसरों के स्वास्थ्य उपचार के लिए फिट बने रहेंगे। *याद रखें जब आप विमान की यात्रा करते है तो केबिन में ऑक्सीजन का दबाव कम होने कर आक्सीजन माॅस्क दूसरों को पहनाने से पहले स्वयं पहनना पड़ता है।*
*एक सफल सुपर स्पेशलिस्ट चिकित्सक बनने में बारह वर्षों की कड़ी मेहनत, अभ्यास, अध्ययन की साधना करनी पड़ती है। देश की सरकारों का करोड़ों रुपए एक चिकित्सक को तैयार करने में लगते हैं। कोरोना जैसी वैश्विक महामारी पर विजय प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि देश के चिकित्सा संस्थानों को दुरुस्त किया जाए। सरकार हैल्थ, हाईजीन, हॉस्पिटल को गंभीरता से लेवें। देश की चिकित्सा व्यवस्थाओं का कायाकल्प करने के लिए हैल्थ के लिए एक प्रतिशत जी डी पी से बजट बढ़ाकर जी डी पी का पांच प्रतिशत तक ख़र्च करें। कॉरोना वॉरियर्स के रूप में अदृश्य विषाणु से संघर्ष करने वाले चिकित्सकों को भी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए, स्वयं को बचाते हुए चिकित्सा धर्म निभाते हुए अन्य सभी ख़तरों से सावधान, जागरूक रहना होगा, तभी सभी चिकित्सकों का पूरा योगदान कोविड 19 को परास्त करने में मिल सकेगा।
डाॅ. सुरेश कुमार पाण्डेय, वरिष्ठ नेत्र सर्जन, कोटा (राजस्थान)
लेखक सुवि नेत्र चिकित्सालय के निदेशक हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, कोटा के पूर्व उपाध्यक्ष रहे हैं एवम् दो लोकप्रिय मेडीकल पुस्तकों के लेखक हैं। लेखक की दोनों पुस्तकें : ए हिप्पोक्रेटिक ओडिसी: लैसंस फ्रॉम ए डॉक्टर कपल ऑन लाइफ इन मेडिसिन, चेलेंजेस एंड डॉक्टरप्रेन्यूरशिप एवम् सिक्रेट्स आफ सक्सेसफुल डाॅक्टर्स, अमेज़न पर बेस्ट सेलिंग पुस्तक के रूप में पहचान बना चुकी है।

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