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08 अक्तूबर 2020

(ऐ रसूल) ये लोग तुम्हें जब देखते हैं तो तुम से मसख़रा पन ही करने लगते हैं कि क्या यही वह (हज़रत) हैं जिन्हें अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है (माज़ अल्लाह)

और (ऐ रसूल) ये लोग तुम्हें जब देखते हैं तो तुम से मसख़रा पन ही करने लगते हैं कि क्या यही वह (हज़रत) हैं जिन्हें अल्लाह ने रसूल बनाकर भेजा है (माज़ अल्लाह) (41)
अगर बुतों की परसतिश पर साबित क़दम न रहते तो इस शख़्स ने हमको हमारे माबूदों से बहका दिया था और बहुत जल्द (क़यामत में) जब ये लोग अज़ाब को देखेंगें तो उन्हें मालूम हो जाएगा कि राहे रास्त से कौन ज़्यादा भटका हुआ था (42)
क्या तुमने उस शख़्स को भी देखा है जिसने अपनी नफ़सियानी ख़्वाहिश को अपना माबूद बना रखा है तो क्या तुम उसके जि़म्मेदार हो सकते हो (कि वह गुमराह न हों) (43)
क्या ये तुम्हारा ख़्याल है कि इन (कुफ़्फ़ारों) में अक्सर (बात) सुनते या समझते है (नहीं) ये तो बस बिल्कुल मिस्ल जानवरों के हैं बल्कि उन से भी ज़्यादा रहे (रास्त) से भटके हुए (44)
(ऐ रसूल) क्या तुमने अपने परवरदिगार की कु़दरत की तरफ नज़र नहीं की कि उसने क्योंकर साये को फैला दिया अगर वह चहता तो उसे (एक ही जगह) ठहरा हुआ कर देता फिर हमने आफ़ताब को (उसकी शीनाख़्त के वास्ते) उसका रहनुमा बना दिया (45)
फिर हमने उसको थोड़ा थोड़ा करके अपनी तरफ़ खीच लिया (46)
और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने तुम्हारे वास्ते रात को पर्दा बनाया और नींद को राहत और दिन को (कारोबार के लिए) उठ खड़ा होने का वक़्त बनाया (47)
और वही तो वह (ख़ुदा) है जिसने अपनी रहमत (बारिश) के आगे आगे हवाओं को खुश ख़बरी देने के लिए (पेश ख़ेमा बना के) भेजा और हम ही ने आसमान से बहुत पाक और सुथरा हुआ पानी बरसाया (48)
ताकि हम उसके ज़रिए से मुर्दा (वीरान) शहर को जि़न्दा (आबाद) कर दें और अपनी मख़लूकात में से चैपायों और बहुत से आदमियों को उससे सेराब करें (49)
और हमने पानी को उनके दरम्यिान (तरह तरह से) तक़सीम किया ताकि लोग नसीहत हासिल करें मगर अक्सर लोगों ने नाशुक्री के सिवा कुछ न माना (50)

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