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04 अक्तूबर 2020

सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत उसी की है और

 सूरए अल फ़ुरकान मक्का में नाजि़ल हुआ और उसकी 77 आयतें और 6 रुकुउ हैं
ख़ुदा के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है
(ख़ुदा) बहुत बाबरकत है जिसने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर कु़रआन नाजि़ल किया ताकि सारे जहान के लिए (ख़ुदा के अज़ाब से) डराने वाला हो (1)
वह खु़दा कि सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत उसी की है और उसने (किसी को) न अपना लड़का बनाया और न सल्तनत में उसका कोई शरीक है और हर चीज़ को (उसी ने पैदा किया) फिर उस अन्दाज़े से दुरुस्त किया (2)
और लोगों ने उसके सिवा दूसरे दूसरे माबूद बना रखें हैं जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते बल्कि वह खुद दूसरे के पैदा किए हुए हैं और वह खुद अपने लिए भी न नुक़सान पर क़ाबू रखते हैं न नफ़ा पर और न मौत ही पर इख्तियार रखते हैं और न जि़न्दगी पर और न मरने के बाद जी उठने पर (3)
और जो लोग काफ़िर हो गए बोल उठे कि ये (क़ुरआन) तो निरा झूठ है जिसे उस शख़्स (रसूल) ने अपने जी से गढ़ लिया और कुछ और लोगों ने इस इफतिरा परवाज़ी में उसकी मदद भी की है (4)
तो यक़ीनन ख़ुद उन ही लोगों ने ज़ुल्म व फ़रेब किया है और (ये भी) कहा कि (ये तो) अगले लोगों के ढकोसले हैं जिसे उसने किसी से लिखवा लिया है पस वही सुबह व शाम उसके सामने पढ़ा जाता है (5)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि इसको उस शख़्स ने नाजि़ल किया है जो सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों को ख़ूब जानता है बेशक वह बड़ा बख़शने वाला मेहरबान है (6)
और उन लोगों ने (ये भी) कहा कि ये कैसा रसूल है जो खाना खाता है और बाज़ारों में चलता है फिरता है उसके पास कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं नाजि़ल होता कि वह भी उसके साथ (ख़ुदा के अज़ाब से) डराने वाला होता (7)
(कम से कम) इसके पास ख़ज़ाना ही ख़ज़ाना ही (आसमान से) गिरा दिया जाता या (और नहीं तो) उसके पास कोई बाग़ ही होता कि उससे खाता (पीता) और ये ज़ालिम (कुफ़्फ़ार मोमिनों से) कहते हैं कि तुम लोग तो बस ऐसे आदमी की पैरवी करते हो जिस पर जादू कर दिया गया है (8)
(ऐ रसूल) ज़रा देखो तो कि इन लोगों ने तुम्हारे वास्ते कैसी कैसी फबत्तियाँ गढ़ी हैं और गुमराह हो गए तो अब ये लोग किसी तरह राह पर आ ही नहीं सकते (9)
ख़ुदा तो ऐसा बारबरकत है कि अगर चाहे तो (एक बाग़ क्या चीज़ है) इससे बेहतर बहुतेरे ऐसे बाग़ात तुम्हारे वास्ते पैदा करे जिन के नीचे नहरें जारी हों और (बाग़ात के अलावा उनमें) तुम्हारे वास्ते महल बना दे (10)

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