﴾ 81 ﴿ तथा कहिए कि सत्य आ गया और असत्य ध्वस्त-निरस्त हो गया, वास्तव में, असत्य को धवस्त-निरस्त होना ही है[1]।
1. अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मक्का (की विजय के दिन) उस में प्रवेश किया तो काबा के आस पास तीन सौ साठ मुर्तियाँ थीं। और आप के हाथ में एक छड़ी थी, जिस से उन को मार रहे थे। और आप यही आयत पढ़ते जो रहे थे। (सह़ीह़ बुख़ारीः4720, मुस्लिमः1781)
﴾ 82 ﴿ और हम क़ुर्आन में से वह चीज़ उतार रहे हैं, जो आरोग्य तथा दया है, ईमान वालों के लिए और वह अत्याचारियों की क्षति को ही अधिक करता है।
﴾ 83 ﴿ और जब हम मानव पर उपकार करते हैं, तो मुख फेर लेता है और दूर हो जाता[1] है तथा जब उसे दुःख पहुँचता है, तो निराश हो जाता है।
1. अर्थात अल्लाह की आज्ञा का पालन करने से।
﴾ 84 ﴿ आप कह दें कि प्रत्येक अपनी आस्था के अनुसार कर्म कर रहा है, तो आपका पालनहार ही भली-भाँति जान रहा है कि कौन अधिक सीधी डगर पर है।
﴾ 85 ﴿ (हे नबी!) लोग आपसे रूह़[1] के विषय में पूछते हैं, आप कह दें: रूह़ मेरे पालनहार के आदेश से है और तुम्हें जो ज्ञान दिया गया, वह बहुत थोड़ा है।
1. “रूह़” का अर्थ आत्मा है, जो हर प्राणी के जीवन का मूल है। किन्तु उस की वास्तविक्ता क्या है? यह कोई नहीं जानता। क्यों कि मनुष्य के पास जो ज्ञान है वह बहुत कम है।
﴾ 86 ﴿ और यदि हम चाहें, तो वह सब कुछ ले जायें, जो आपकी ओर हमने वह़्यी किया है, फिर आप हमपर अपना कोई सहायक नहीं पायेंगे।
﴾ 87 ﴿ किन्तु आपके पालनहार की दया के कारण (ये आपको प्राप्त है)। वास्तव में, उसका प्रदान आपपर बहुत बड़ा है।
﴾ 88 ﴿ आप कह दें: यदि सब मनुष्य तथा जिन्न इसपर एकत्र हो जायें कि इस क़ुर्आन के समान ले आयेंगे, तो इसके समान नहीं ला सकेंगे, चाहे वे एक-दूसरे के समर्थक ही क्यों न हो जायें!
﴾ 89 ﴿ और हमने लोगों के लिए इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण विविध शैली में वर्णित किया है, फिर भी अधिक्तर लोगों ने कुफ़्र के सिवा अस्वीकार ही किया है।
﴾ 90 ﴿ और उन्होंने कहाः हम आपपर कदापि ईमान नहीं लायेंगे, यहाँ तक कि आप हमारे लिए धरती से एक चश्मा प्रवाहित कर दें।
1. अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मक्का (की विजय के दिन) उस में प्रवेश किया तो काबा के आस पास तीन सौ साठ मुर्तियाँ थीं। और आप के हाथ में एक छड़ी थी, जिस से उन को मार रहे थे। और आप यही आयत पढ़ते जो रहे थे। (सह़ीह़ बुख़ारीः4720, मुस्लिमः1781)
﴾ 82 ﴿ और हम क़ुर्आन में से वह चीज़ उतार रहे हैं, जो आरोग्य तथा दया है, ईमान वालों के लिए और वह अत्याचारियों की क्षति को ही अधिक करता है।
﴾ 83 ﴿ और जब हम मानव पर उपकार करते हैं, तो मुख फेर लेता है और दूर हो जाता[1] है तथा जब उसे दुःख पहुँचता है, तो निराश हो जाता है।
1. अर्थात अल्लाह की आज्ञा का पालन करने से।
﴾ 84 ﴿ आप कह दें कि प्रत्येक अपनी आस्था के अनुसार कर्म कर रहा है, तो आपका पालनहार ही भली-भाँति जान रहा है कि कौन अधिक सीधी डगर पर है।
﴾ 85 ﴿ (हे नबी!) लोग आपसे रूह़[1] के विषय में पूछते हैं, आप कह दें: रूह़ मेरे पालनहार के आदेश से है और तुम्हें जो ज्ञान दिया गया, वह बहुत थोड़ा है।
1. “रूह़” का अर्थ आत्मा है, जो हर प्राणी के जीवन का मूल है। किन्तु उस की वास्तविक्ता क्या है? यह कोई नहीं जानता। क्यों कि मनुष्य के पास जो ज्ञान है वह बहुत कम है।
﴾ 86 ﴿ और यदि हम चाहें, तो वह सब कुछ ले जायें, जो आपकी ओर हमने वह़्यी किया है, फिर आप हमपर अपना कोई सहायक नहीं पायेंगे।
﴾ 87 ﴿ किन्तु आपके पालनहार की दया के कारण (ये आपको प्राप्त है)। वास्तव में, उसका प्रदान आपपर बहुत बड़ा है।
﴾ 88 ﴿ आप कह दें: यदि सब मनुष्य तथा जिन्न इसपर एकत्र हो जायें कि इस क़ुर्आन के समान ले आयेंगे, तो इसके समान नहीं ला सकेंगे, चाहे वे एक-दूसरे के समर्थक ही क्यों न हो जायें!
﴾ 89 ﴿ और हमने लोगों के लिए इस क़ुर्आन में प्रत्येक उदाहरण विविध शैली में वर्णित किया है, फिर भी अधिक्तर लोगों ने कुफ़्र के सिवा अस्वीकार ही किया है।
﴾ 90 ﴿ और उन्होंने कहाः हम आपपर कदापि ईमान नहीं लायेंगे, यहाँ तक कि आप हमारे लिए धरती से एक चश्मा प्रवाहित कर दें।
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