आपका-अख्तर खान

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10 जून 2020

,आँखों में आंखे डालकर बात करने वाला हो ,ऐसे चहेरे को तलाशो ,ऐसे चेहरे को पहचानों ,,उसे नेतृत्व दो ,बाक़ी जो नक़ली चेहरे है इन चेहरों से तहज़ीब के दायरे में, एअसे मुशिकल लम्हों के वक़्त गुरेज़ भी करो ,

दोस्तों कोरोना ने ,देश को ,समाज को ,,धर्म मज़हब को , अपने पराये की तहज़ीब दिखाई है ,हमदर्दों और दिखावटी हमदर्दों का फ़र्क़ दिखाया ,प्रशासनिक , सियासी चापलूसों और खुलकर नफे नुकसान की परवाह किये बगैर ,मददगारों ,आपकी निष्पक्ष आवाज़ उठाने वालों ,चुप रहने वालों का चेहरा सामने दिखाया है , अब फैसले की घड़ी है ,,फिर ऐसा न हो ,फिर तुम्हारे खिलाफ ज़्याददतियों ,,प्रताड़नाओं ,पक्षपात के बावजूद ,तुम बिना नेतृत्व के न रहें इसके लिए तुम्हारे पास आत्मचिंतन की ज़रूरत है ,आत्मचिंतन का वक़्त है ,,सोचो ,खुद को बदलो ,दिखावत्री चेहरों  , एक चेहरा जो चाहिए  सियासी हो ,चाहे गैर सियासी हो , तुम्हारे दुःख दर्द में तुम्हारे दुःख दर्द की आवाज़ बनकर ,,आँखों में आंखे डालकर बात करने वाला हो ,ऐसे चहेरे को तलाशो ,ऐसे चेहरे को पहचानों ,,उसे नेतृत्व दो ,बाक़ी जो नक़ली चेहरे है इन चेहरों से तहज़ीब के दायरे में, एअसे मुशिकल लम्हों के वक़्त  गुरेज़ भी करो ,
धर्म गुरु , यानि  अपने अपने धर्मों के बारे में ,  अपने अपने धर्मों की आस्था रखने वालों को शिक्षा देने वाले ,फिर यह धर्म गुरु अगर सियासत में पैर पसार ले , तो इनसे धर्म गुरु के कर्तव्यों का ईमानदारी से  निर्वहन के बारे में सोचना , बेमानी सी बात है ,ऐसे लोग जिस सियासी पार्टी से जुड़े होंगे ,जिस सियासी व्यक्तित्व ,नेता से लाभान्वित होंगे ,निश्चित तोर पर वोह धर्म की आवाज़ नहीं होकर सिर्फ उस शख्सियत की ही  आवाज़ होंगे जो ऐसे तथाकथित धर्म गुरु को किसी ओहदे पर बिठाता है ,,खेर छोड़िये , अभी  अल्लाह का अज़ाब आया ,सभी धर्मों के अलग अलग लोग ,अलग अलग बस्तियां ,, परेशानियों के दौर से गुज़रे , सियासत भी हुई , खिदमत भी ,हुई मदद भी हुई , लोगों की दिक़्क़तों में प्रशासनिक पक्षपात  की आवाज़ें भी उठीं ,,लेकिन किसी भी सियासी धर्म गुरु ,,किसी भी गैर सियासी धर्मगुरु ने , उनके अपने धर्म के लोगों के फंसे होने , प्रताड़ित होने , पक्षपात की शिकायतों को दूर करने की मांग को लेकर ,किसी मुख्यमंत्री ,,किसी मंत्री ,किसी जिला कलेक्टर को लिखित में ज्ञापन देते हुए ,पत्र देते हुए ,ई मेल करते हुए देखा हो ऐसा कोई उदाहरण मुझे तो नहीं मिला ,,अगर किसी के पास हो तो प्लीज़ मुझे बताइयेगा ज़रूर में खुद में ,खुद की जानकारी में सुधार कर  लूंगा ,,, एक गुरद्वारे की खिदमत ,, राहत कार्य की कामयाबी को अगर छोड़ दें ,तो शायद प्रबंधन तरीके से  किसी भी धर्मगुरु ने ऐसी व्यवस्था की कोई बढ़ी पहल नहीं की है ,गुरुद्वारों में पीड़ित लोगों के लिए खाने की व्यवस्था ,,लोगों तक खाना पहुंचाने की व्यवस्था थी तो वोह धार्मिक स्थल भी कम से कम खुले तो थे ,,, बंदिशें होना अलग बात हो सकती है ,लेकिन फिर भी यह धार्मिक स्थल खुले थे ,, दूसरे सभी धार्मिक स्थल बंद थे ,,श्रद्धालु हों ,नमाज़ी हो ,जो भी वोह घरों पर ,थे लेकिन जो बाहर निकले ,जिन्होंने धार्मिक स्थल का ,गाइड लाइन के खिलाफ रुख किया ,उन्हें डंडे भी खाना ,पढ़े मुर्गा , मुर्गी भी बना पढ़ा ,मुक़दमा भी दर्ज हुआ , क्वारेंटाइन भी हुए , तब भी यह सियासी धर्मगुरु ,,यह धर्मगुरु कोई ख़ास नहीं बोले ,, हाँ प्रशासन को ,हम धार्मिक स्थल नहीं खोलेंगे ,इसकी सहमति देने तो पहुंचे , लेकिन हमारे धर्म के अनुयायियों को कहाँ कहाँ किस तरह की दिक़्क़तें ,है  कहाँ कहाँ पक्षपात की शिकायतें है ,यह कहने ,या लिखित में ज्ञापन देने नहीं पहुंचे ,, तो जनाब ऐसे धर्म गुरुओं के लिए ,, अकबर इलाहबादी जो खुद कलेक्टर से रिटायर हुए उन्होने कॉम के नेताओं को ,समस्याओं , समाधान को लेकर नज़दीक से देखने के  बाद जो अनुभव लिखा उसे उनके अल्फ़ाज़ों में ,,सिर्फ इतना ही कहा जाए ,के इन्हे  कॉम की फ़िक्र है बढे आराम के साथ ,,कोफ़ी पीते हैं हुक्काम के साथ , बात भी सही है ,, अलग अलग धर्मों की अपनी समस्याएं हैं , सियासत जब पक्षपात करती है तो धर्म के अनुयायी इनकी तरफ देखते है , क्योंकि यही लोग ,अपने अपने धर्म के ,, सो कोल्ड प्रतिनिधि है ,,स्वीकार्य प्रतिनिधि भी है ,,,इनको अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास तो होना ही चाहिए ,हिंदुस्तान में ,विश्व में पहली बार ,सभी धर्म स्थल बंद रहे ,एहतियाती क़दम उठाये गए ,लेकिन सामाजिक व्यवस्थाओं में कुछ एक अपवादों को छोड़कर यह धर्मगुरु ,,फिसड्डी साबित हुए है ,,हाँ अपने अपने ज़िलों में सियासी तोर पर , प्रशासनिक तोर पर ,अपनी हैसियत ,अपना वर्चस्व साबित करने की होड़ में ,किसी न किसी बहाने से ,,पहुंचे ज़रूर है ,, मीडिया की सुर्ख़ियों में भी आये है ,लेकिन उनके धर्म के लोगों की सिसकियाँ ,परेशानियां ,, पक्षपात की शिकायतों को लेकर न तो यह लोग मीडिया में बोले न हीं लिखित में ज्ञापन के साथ यह लोग सरकार से बोले,  ना ही  ,प्रशासनिक अधिकारीयों से ही बोल पाए ,, केंद्र ने बढे बढे धर्मस्थलों  को गाइडलाइन के साथ खोल दिए ,कई राज्यों ने भी इस गाइडलाइन के तहत धार्मिक स्थलों की शुरआत कर दी ,, लेकिन राजस्थान में के मुख्यमंत्री अशोक  गहलोत संवेदनशील है ,,,वोह  सार्वजनिक हित के फैसले ,,आपसी राय मशवरे से करने के आदतन प्रशासनिक क्षमता वाले व्यक्तित्व है ,उन्होंने , राजस्थान के सभी  जिला मुख्यालय सहित धर्मगुरुओं की विडिओ कॉन्फ्रेंसिंग कर , धार्मिक स्थल खोलने ,नहीं खोलने ,किस तरह से खोलने की व्यवस्था हो इस पर विचार विमर्श किया ,, सभी ने आम राय से धार्मिक स्थल ,फीलहाल तीस जून तक नहीं खोलने पर सहमति दी ,, सभी लोग शामिल थे ,ऐक भी धर्म गुरु ने दूसरे दिन ,तीसरे दिन ,धार्मिक स्थल खोलने को लेकर जो फैसला हुआ उस पर कोई प्रतिकार नहीं जताया ,,कोई संशोधित  सुझाव नहीं दिया ,या यह शिकायत नहीं की के हमे सुने बगैर यह फैसला क्यों कर दिया ,फिर अखबारी व्यवथाये चली ,, तब धर्मगुरु अपने खुद के फैसले के खिलाफ मीडिया में बयानबाज़ी करते देखे गए ,यह अजीब बात नहीं तो और क्या है ,पहले आप आम सहमित के फैसले में शामिल ,आपकी आमसहमति की राय दूसरे दिन मीडिया में आयी तब आप खामोश ,फिर अचानक ह्रदय परिवर्तन ,अपने धर्म स्थलों के प्रति ,उन्हें खोलने वहां मज़हबी गतिविधियां शुरू करने को लेकर , आपका प्यार उमड़ने  के पीछे , क्या वजह रही है ,यह तो सियासी लोग जाने ,,खुद विचार बदलने वाले लोग जाने , लेकिन अफसोसनाक तो है ,ऐसे में , कोरोना विपदा में , ऐसे धर्मगुरुओं की जो हक़ीक़त सामने  आयी है ,,पक्षपात ,, परेशानियों की शिकायतों को लिखित में सियासी नेताओं ,,प्रतिनिधियों प्रशासनिक अधिकारीयों तक लिखित में पहुंचाने में जो नाकामयाबियां साबित हुई है ,,आम लोगों को अपने अपने धर्म गुरुओं की सीमाओ के बारे में सोचना होगा ,,उन्हें सिर्फ अपने अपने धर्म के प्रचार ,धर्म की जानकारी ,धर्म के अध्य्यन ,अध्यापन तक ही सीमित रखना ,होगा , उनसे हम समस्याओं के समाधान की उम्मीद नहीं करे ,सियासत कुछ भी हो ,कोई  भी व्यक्ति  किसी भी पार्टी में हो ,लेकिन अब ,निर्भीक ,निडर ,,सर्वसम्मत किसी गैर सियासी लीडर या प्रताड़ना ,परेशानियों के वक़्त ,अपने हाकमों के आगे ,अपनी पार्टी के नेताओं के आगे दुम हिलाकर ,क्या हुक्म है मेरे आक़ा ,कहकर ,खड़े रहने वाले लोगों के मुक़ाबले में ,ऐसे व्यक्तित्व को सर्वसम्मत करना ही होगा ,जो अपने समूह के लिए ,, सियासी होने बावजूद भी , समस्याओं पर ,प्रताड़नाओं और ,पक्षपात की वाजिब शिकायतों की तस्दीक़ होने पर ,प्रशासनिक अधिकारीयों ,, ,नेताओं की  आँखों में आँखें डालकर ,बात कर सके ,उन्हें समस्याएं बता सके ,उपेक्षा होने पर उनका साथ छोड़कर ,प्रताड़ित लोगों के साथ आंदोलन में खड़ा हो सके , वर्ना ,,समझ लो ,, न समझोगे तो मिट जाओगे ,तुम्हारा निशा भी न होगा दास्तानों  में तुम्हे ,बांटेंगे ,तुम्हे लड़वाएंगे , तुम्ही को बहका फुसला कर एक दूसरे के खिलाफ बदनामी ,अपमानित करने का वातावरण बनायेगे ,फिर बारां में जो हुआ ,कई साल पहले ,बूंदी में जो हुआ था ,तुम्हारे न्यायिक हिरासत में रमज़ान की मौत के बाद भी जो उसे इंसाफ़ नहीं मिला ,अभी जो कुछ तुमने सहा है ,वैसा होता रहेगा ,होता रहेगा , इसलिए प्लीज़ खुद को बदलो ,सोच को बदलो , ,धर्मगुरुओं और सियासत के अलग अलग मिजाज़ के  कर्तव्यों को समझो ,,ज़रूरत पढ़ने पर ,सियासी अपने प्रतिनधियों ,, अपने सियासी धर्मगुरुओं , प्रशासनिक प्रतिनिधि धर्मगुरुओं से ऐसी शिकायतों के निवारण में उनकी गुमशुदगी ,,उनकी खामोशी के बारे में उनसे तहज़ीब के दायरे में सवाल करो ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान  

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