लोकडाउन का घायल
परिंदा मज़दूर
उड़ने को बेकरार...
पंख हैं टूटे मन है आहत
पर जाना है उस पार...
न कोई मंजिल न आसमां
तपती रेत सा झुलसा जहाँ...
टूटे हुए पत्ते की मानिंद
आंधियों ने उसको रौंदा...
खो गई है लोकडाउन में
पहचान उसकी जो भी थी
आज है इक तीर जैसा
कमान से छूटा हुआ...
परिंदा मज़दूर
उड़ने को बेकरार...
पंख हैं टूटे मन है आहत
पर जाना है उस पार...
न कोई मंजिल न आसमां
तपती रेत सा झुलसा जहाँ...
टूटे हुए पत्ते की मानिंद
आंधियों ने उसको रौंदा...
खो गई है लोकडाउन में
पहचान उसकी जो भी थी
आज है इक तीर जैसा
कमान से छूटा हुआ...
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