﴾ 11 ﴿ उस (अल्लाह) के रखवाले (फरिश्ते)
हैं। उसके आगे तथा पीछे, जो अल्लाह के आदेश से, उसकी रक्षा कर रहे हैं।
वास्तव में, अल्लाह किसी जाति की दशा नहीं बदलता, जब तक वह स्वयं अपनी दशा न
बदल ले तथा जब अल्लाह किसी जाति के साथ बुराई का निश्चय कर ले, तो उसे
फेरा नहीं जा सकता और न उनका उस (अल्लाह) के सिवा कोई सहायक है।
﴾ 12 ﴿ वही है, जो विध्दुत को तुम्हें भय तथा आशा[1] बनाकर दिखाता है और भारी बादलों को पैदा करता है।
1. अर्थात वर्षा होने की आशा।
﴾ 13 ﴿ और कड़क, अल्लाह की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन करती है और फ़रिश्ते उसके भय से काँपते हैं। वह बिजलियाँ भेजता है, फिर जिसपर चाहता है, गिरा देता है तथा वे अल्लाह के बारे में विवाद करते हैं, जबकि उसका उपाय बड़ा प्रबल है[1]।
1. अर्थात जैसे कोई प्यासा पानी की ओर हाथ फैला कर प्रार्थना करे कि मेरे मुँह में आ जा, तो न पानी में सुनने की शक्ति है न उस के मुँह तक पहुँचने की। ऐसे ही काफ़िर, अल्लाह के सिवा जिन को पुकारते हैं न उन में सुनने की शक्ति है न और वह उन की सहायता करने का सामर्थ्य रखते हैं।
﴾ 14 ﴿ उसी (अल्लाह) को पुकारना सत्य है और जो उसके सिवा दूसरों को पुकारते हैं, वे उनकी प्रार्थना कुछ नहीं सुनते। जैसे कोई अपनी दोनों हथेलियाँ जल की ओर फैलाया हुआ हो, ताकि उसके मुँह में पहुँच जाये, जबकि वह उसतक पहुँचने वाला नहीं और काफ़िरों की पुकार व्यर्थ (निष्फल) ही है।
﴾ 15 ﴿ और अल्लाह ही को सज्दा करता है, चाह या न चाह, वह जो आकाशों तथा धरती में है और उनकी प्रछाईयाँ[1] भी प्रातः और संध्या[2]।
1. अर्थात सब उस के स्वभाविक नियम के अधीन हैं। 2. यहाँ सज्दा करना चाहिये।
﴾ 16 ﴿ उनसे पूछोः आकाशों तथा धरती का पालनहार कौन है? कह दोः अल्लाह है। कहो कि क्या तुमने अल्लाह के सिवा उन्हें सहायक बना लिया है, जो अपने लिए किसी लाभ का अधिकार नहीं रखते और न किसी हानि का? उनसे कहोः क्या अन्धा और देखने वाला बराबर होता है या अन्धेरे और प्रकाश बराबर होते हैं[1]? अथवा उन्होंने अल्लाह का साझी बना लिया है ऐसों को, जिन्होंने अल्लाह के उत्पत्ति करने के समान उत्पत्ति की है, अतः उत्पत्ति का विषय उनपर उलझ गया है? आप कह दें कि अल्लाह ही प्रत्येक चीज़ का उत्पत्ति करने वाला है[2] और वही अकेला प्रभुत्वशाली है।
1. अंधेरे से अभिप्राय कुफ़्र के अंधेरे, तथा प्रकाश से अभिप्राय ईमान का प्रकाश है। 2. आयत का भावार्थ यह है कि जिस ने इस विश्व की प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति की है, वही वास्तविक पूज्य है। और जो स्वयं उत्पत्ति हो वह पूज्य नहीं हो सकता। इस तथ्य को क़ुर्आन पाक की और भी कई आयतों में परस्तुत किया गया है।
﴾ 17 ﴿ उसने आकाश से जल बरसाया, जिससे वादियाँ (उपत्यकाएँ) अपनी समाई के अनुसार बह पड़ीं। फिर (जल की) धारा के ऊपर झाग आ गया और जिस चीज़ को वे आभूषण अथवा सामान बनाने के लिए अग्नि में तपाते हैं, उसमें भी ऐसा ही झाग होता है। इसी प्रकार, अल्लाह सत्य तथा असत्य का उदाहरण देता है, फिर जो झाग है, वह सूखकर ध्वस्त हो जाता है और जो चीज़ लोगों को लाभ पहुँचाती है, वह धरती में रह जाती है। इसी प्रकार, अल्लाह उदाहरण देता[1] है।
1. इस उदाहरण में सत्य और असत्य के बीच संघर्ष को दिखाया गया है कि वह़्यी द्वारा जो सत्य उतारा गया है वह वर्षा के समान है। और जो उस से लाभ प्राप्त करते हैं वह नालों के समान हैं। और सत्य के विरोधी सैलाब के झाग के समान हैं जो कुछ देर के लिये उभरता है फिर विलय है जाता है। दूसरे उदाहरण में सत्य को सोने और चाँदी के समान बताया गया है जिसे पिघलाने से मैल उभरता है, फिर मैल उड़ता है। इसी प्रकार असत्य विलय हो जाता है। और केवल सत्य रह जाता है।
﴾ 18 ﴿ जिन लोगों ने अपने पालनहार की बात मान ली, उन्हीं के लिए भलाई है और जिन्होंने नहीं मानी, यदि जो कुछ धरती में है, सब उनका हो जाये और उसके साथ उसके समान और भी, तो वे उसे (अल्लाह के दण्ड से बचने के लिए) अर्थदण्ड के रूप में दे देंगे। उन्हीं से कड़ा ह़िसाब लिया जायेगा तथा उनका स्थान नरक है और वह बुरा रहने का स्थान है।
﴾ 19 ﴿ तो क्या, जो जानता है कि आपके पालनहार की ओर से, जो (क़ुर्आन) आपपर उतारा गया है, सत्य है, उसके समान है जो अन्धा है? वास्तव में, बुध्दिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।
﴾ 20 ﴿ जो अल्लाह से किया वचन[1] पूरा करते हैं और वचन भंग नहीं करते।
1. भाष्य के लिये देखियेः सूरह आराफ़, आयतः172
﴾ 12 ﴿ वही है, जो विध्दुत को तुम्हें भय तथा आशा[1] बनाकर दिखाता है और भारी बादलों को पैदा करता है।
1. अर्थात वर्षा होने की आशा।
﴾ 13 ﴿ और कड़क, अल्लाह की प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का वर्णन करती है और फ़रिश्ते उसके भय से काँपते हैं। वह बिजलियाँ भेजता है, फिर जिसपर चाहता है, गिरा देता है तथा वे अल्लाह के बारे में विवाद करते हैं, जबकि उसका उपाय बड़ा प्रबल है[1]।
1. अर्थात जैसे कोई प्यासा पानी की ओर हाथ फैला कर प्रार्थना करे कि मेरे मुँह में आ जा, तो न पानी में सुनने की शक्ति है न उस के मुँह तक पहुँचने की। ऐसे ही काफ़िर, अल्लाह के सिवा जिन को पुकारते हैं न उन में सुनने की शक्ति है न और वह उन की सहायता करने का सामर्थ्य रखते हैं।
﴾ 14 ﴿ उसी (अल्लाह) को पुकारना सत्य है और जो उसके सिवा दूसरों को पुकारते हैं, वे उनकी प्रार्थना कुछ नहीं सुनते। जैसे कोई अपनी दोनों हथेलियाँ जल की ओर फैलाया हुआ हो, ताकि उसके मुँह में पहुँच जाये, जबकि वह उसतक पहुँचने वाला नहीं और काफ़िरों की पुकार व्यर्थ (निष्फल) ही है।
﴾ 15 ﴿ और अल्लाह ही को सज्दा करता है, चाह या न चाह, वह जो आकाशों तथा धरती में है और उनकी प्रछाईयाँ[1] भी प्रातः और संध्या[2]।
1. अर्थात सब उस के स्वभाविक नियम के अधीन हैं। 2. यहाँ सज्दा करना चाहिये।
﴾ 16 ﴿ उनसे पूछोः आकाशों तथा धरती का पालनहार कौन है? कह दोः अल्लाह है। कहो कि क्या तुमने अल्लाह के सिवा उन्हें सहायक बना लिया है, जो अपने लिए किसी लाभ का अधिकार नहीं रखते और न किसी हानि का? उनसे कहोः क्या अन्धा और देखने वाला बराबर होता है या अन्धेरे और प्रकाश बराबर होते हैं[1]? अथवा उन्होंने अल्लाह का साझी बना लिया है ऐसों को, जिन्होंने अल्लाह के उत्पत्ति करने के समान उत्पत्ति की है, अतः उत्पत्ति का विषय उनपर उलझ गया है? आप कह दें कि अल्लाह ही प्रत्येक चीज़ का उत्पत्ति करने वाला है[2] और वही अकेला प्रभुत्वशाली है।
1. अंधेरे से अभिप्राय कुफ़्र के अंधेरे, तथा प्रकाश से अभिप्राय ईमान का प्रकाश है। 2. आयत का भावार्थ यह है कि जिस ने इस विश्व की प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति की है, वही वास्तविक पूज्य है। और जो स्वयं उत्पत्ति हो वह पूज्य नहीं हो सकता। इस तथ्य को क़ुर्आन पाक की और भी कई आयतों में परस्तुत किया गया है।
﴾ 17 ﴿ उसने आकाश से जल बरसाया, जिससे वादियाँ (उपत्यकाएँ) अपनी समाई के अनुसार बह पड़ीं। फिर (जल की) धारा के ऊपर झाग आ गया और जिस चीज़ को वे आभूषण अथवा सामान बनाने के लिए अग्नि में तपाते हैं, उसमें भी ऐसा ही झाग होता है। इसी प्रकार, अल्लाह सत्य तथा असत्य का उदाहरण देता है, फिर जो झाग है, वह सूखकर ध्वस्त हो जाता है और जो चीज़ लोगों को लाभ पहुँचाती है, वह धरती में रह जाती है। इसी प्रकार, अल्लाह उदाहरण देता[1] है।
1. इस उदाहरण में सत्य और असत्य के बीच संघर्ष को दिखाया गया है कि वह़्यी द्वारा जो सत्य उतारा गया है वह वर्षा के समान है। और जो उस से लाभ प्राप्त करते हैं वह नालों के समान हैं। और सत्य के विरोधी सैलाब के झाग के समान हैं जो कुछ देर के लिये उभरता है फिर विलय है जाता है। दूसरे उदाहरण में सत्य को सोने और चाँदी के समान बताया गया है जिसे पिघलाने से मैल उभरता है, फिर मैल उड़ता है। इसी प्रकार असत्य विलय हो जाता है। और केवल सत्य रह जाता है।
﴾ 18 ﴿ जिन लोगों ने अपने पालनहार की बात मान ली, उन्हीं के लिए भलाई है और जिन्होंने नहीं मानी, यदि जो कुछ धरती में है, सब उनका हो जाये और उसके साथ उसके समान और भी, तो वे उसे (अल्लाह के दण्ड से बचने के लिए) अर्थदण्ड के रूप में दे देंगे। उन्हीं से कड़ा ह़िसाब लिया जायेगा तथा उनका स्थान नरक है और वह बुरा रहने का स्थान है।
﴾ 19 ﴿ तो क्या, जो जानता है कि आपके पालनहार की ओर से, जो (क़ुर्आन) आपपर उतारा गया है, सत्य है, उसके समान है जो अन्धा है? वास्तव में, बुध्दिमान लोग ही शिक्षा ग्रहण करते हैं।
﴾ 20 ﴿ जो अल्लाह से किया वचन[1] पूरा करते हैं और वचन भंग नहीं करते।
1. भाष्य के लिये देखियेः सूरह आराफ़, आयतः172
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