अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।
﴾ 1 ﴿ अलिफ, लाम, रा। ये पुस्तक है, जिसकी आयतें सुदृढ़ की गयीं, फिर सविस्तार वर्णित की गयी हैं, उसकी ओर से, जो तत्वज्ञ, सर्वसूचित है।
﴾ 2 ﴿ कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करो। वास्तव में, मैं उसकी ओर से तुम्हें सचेत करने वाला तथा शुभ सूचना देने वाला हूँ।
﴾ 3 ﴿ और ये है कि अपने पालनहार से क्षमा याचना करो, फिर उसी की ओर ध्यानमग्न हो जाओ। वह तुम्हें एक निर्धारित अवधि तक अच्छा लाभ पहुँचाएगा और प्रत्येक श्रेष्ठ को उसकी श्रेष्ठता प्रदान करेगा और यदि तुम मुँह फेरोगे, तो मैं तुमपर एक बड़े दिन की यातना से डरता हूँ।
﴾ 4 ﴿ अल्लाह ही की ओर तुमसब को पलटना है और वह जो चाहे, कर सकता है।
﴾ 5 ﴿ सुनो! ये लोग अपने सीनों को मोड़ते हैं, ताकि उस[1] से छुप जायेँ, सुनो! जिस समय वे अपने कपड़ों से स्वयं को ढाँपते हैं, तबभी वह (अल्लाह) उनके छुपे को जानता है तथा उनके खुले को भी। वास्तव में, वह उसे भी भली-भाँति जानने वाला[2] है, जो सीनों में (भेद) है।
1. अर्थात अल्लाह से। 2. आयत का भावार्थ यह है कि मिश्रणवादी अपने दिलों में कुफ़्र को यह समझ कर छुपाते हैं कि अल्लाह उसे नहीं जानेगा। जब कि वह उन के खुले छुपे और उन के दिलों के भेदों तक को जानता है।
﴾ 6 ﴿ और धरती में कोई चलने वाला नहीं है, परन्तु उसकी जीविका अल्लाह के ऊपर है तथा वह उसके स्थायी स्थान तथा सौंपने के स्थान को जानता है। सबकुछ एक खुली पुस्तक में अंकित है[1]।
1. अर्थात अल्लाह, प्रत्येक व्यक्ति की जीवन-मरण आदि की सब दशाओं से अवगत है।
﴾ 7 ﴿ और वही है, जिसने आकाशों तथा धरती की उत्पत्ति छः दिनों में की। उस समय उसका सिंहासन जल पर था, ताकि तुम्हारी परीक्षा ले कि तुममें किसका कर्म सबसे उत्तम है। और (हे नबी!) यदि आप, उनसे कहें कि वास्तव में तुम सभी मरण के पश्चात् पुनः जीवित किये जाओगे, तो जो काफ़िर हो गये, अवश्य कह देंगे कि ये तो केवल खुला जादू है।
﴾ 8 ﴿ और यदि, हम उनसे यातना में किसी विशेष अवधि तक देर कर दें, तो अवश्य कहेंगे कि उसे क्या चीज़ रोक रही है? सुन लो! वह जिस दिन उनपर आ जायेगी, तो उनसे फिरेगी नहीं और उन्हें वह (यातना) घेर लेगी, जिसकी वे हँसी उड़ा रहे थे।
﴾ 9 ﴿ और यदि, हम मनुष्य को अपनी कुछ दया चखा दें, फिर उसे उससे छीन लें, तो हताशा कृतघ्न हो जाता है।
﴾ 10 ﴿ और यदि, हम उसे सुख चखा दें, दुःख के पश्चात्, जो उसे पहुँचा हो, तो अवश्य कहेगा कि मेरा सब दुःख दूर हो गया। वास्तव में, वह प्रफुल्ल होकर अकड़ने लगता है[1]।
1. इस में मनुष्य की स्वभाविक दशा की ओर संकेत है।
﴾ 1 ﴿ अलिफ, लाम, रा। ये पुस्तक है, जिसकी आयतें सुदृढ़ की गयीं, फिर सविस्तार वर्णित की गयी हैं, उसकी ओर से, जो तत्वज्ञ, सर्वसूचित है।
﴾ 2 ﴿ कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करो। वास्तव में, मैं उसकी ओर से तुम्हें सचेत करने वाला तथा शुभ सूचना देने वाला हूँ।
﴾ 3 ﴿ और ये है कि अपने पालनहार से क्षमा याचना करो, फिर उसी की ओर ध्यानमग्न हो जाओ। वह तुम्हें एक निर्धारित अवधि तक अच्छा लाभ पहुँचाएगा और प्रत्येक श्रेष्ठ को उसकी श्रेष्ठता प्रदान करेगा और यदि तुम मुँह फेरोगे, तो मैं तुमपर एक बड़े दिन की यातना से डरता हूँ।
﴾ 4 ﴿ अल्लाह ही की ओर तुमसब को पलटना है और वह जो चाहे, कर सकता है।
﴾ 5 ﴿ सुनो! ये लोग अपने सीनों को मोड़ते हैं, ताकि उस[1] से छुप जायेँ, सुनो! जिस समय वे अपने कपड़ों से स्वयं को ढाँपते हैं, तबभी वह (अल्लाह) उनके छुपे को जानता है तथा उनके खुले को भी। वास्तव में, वह उसे भी भली-भाँति जानने वाला[2] है, जो सीनों में (भेद) है।
1. अर्थात अल्लाह से। 2. आयत का भावार्थ यह है कि मिश्रणवादी अपने दिलों में कुफ़्र को यह समझ कर छुपाते हैं कि अल्लाह उसे नहीं जानेगा। जब कि वह उन के खुले छुपे और उन के दिलों के भेदों तक को जानता है।
﴾ 6 ﴿ और धरती में कोई चलने वाला नहीं है, परन्तु उसकी जीविका अल्लाह के ऊपर है तथा वह उसके स्थायी स्थान तथा सौंपने के स्थान को जानता है। सबकुछ एक खुली पुस्तक में अंकित है[1]।
1. अर्थात अल्लाह, प्रत्येक व्यक्ति की जीवन-मरण आदि की सब दशाओं से अवगत है।
﴾ 7 ﴿ और वही है, जिसने आकाशों तथा धरती की उत्पत्ति छः दिनों में की। उस समय उसका सिंहासन जल पर था, ताकि तुम्हारी परीक्षा ले कि तुममें किसका कर्म सबसे उत्तम है। और (हे नबी!) यदि आप, उनसे कहें कि वास्तव में तुम सभी मरण के पश्चात् पुनः जीवित किये जाओगे, तो जो काफ़िर हो गये, अवश्य कह देंगे कि ये तो केवल खुला जादू है।
﴾ 8 ﴿ और यदि, हम उनसे यातना में किसी विशेष अवधि तक देर कर दें, तो अवश्य कहेंगे कि उसे क्या चीज़ रोक रही है? सुन लो! वह जिस दिन उनपर आ जायेगी, तो उनसे फिरेगी नहीं और उन्हें वह (यातना) घेर लेगी, जिसकी वे हँसी उड़ा रहे थे।
﴾ 9 ﴿ और यदि, हम मनुष्य को अपनी कुछ दया चखा दें, फिर उसे उससे छीन लें, तो हताशा कृतघ्न हो जाता है।
﴾ 10 ﴿ और यदि, हम उसे सुख चखा दें, दुःख के पश्चात्, जो उसे पहुँचा हो, तो अवश्य कहेगा कि मेरा सब दुःख दूर हो गया। वास्तव में, वह प्रफुल्ल होकर अकड़ने लगता है[1]।
1. इस में मनुष्य की स्वभाविक दशा की ओर संकेत है।
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