कल
जहाँ बस्ती थी ,,खुशियां ,आज वीरानी है वहां ,,,वक़्त से हम और आप ,, कोन
जाने कब बदले वक़्त का मिजाज़ ,,जी हाँ दोस्तों ,,,कोटा विज्ञान नगर
क्षेत्र की मुख्य बाजार की ,, राजीव प्लाज़ा ,की यह चौपाटी , जहां कभी
हज़ारो लोगों की रोज़ आवाजाही ,,कई दर्जन खोमचे ,चाट पकोड़ी ,,,पीज़ा बर्गर
,,मसाला डोसा , पेटीज ,आइसक्रीम ,बादाम दूध ,जोधपुर जलेबी ,सहित कई
वेरायटी के खोमचे वाले ,थड़ी ,ठेले वाले मौजूद थे ,,त्योहारों पर यहां वाहन
की आवाजाही तो दूर ,,पैर रखने ,की जगह नहीं , दुनिया के हर धर्म ,त्यौहार
,,के ,सामान सुबह ,जलेबी ,कचोरी ,पोहे ,ब्रेड पकोड़े , परांठे ,, चाय कोफ़ी
की शुरुआत ,,खोमचे ,,ठेलेवालों में व्यापरिक पर्तिस्पर्धा के विवाद ,फूल
मालाओं के लिए ,श्रद्धालुओं का आगमन ,, वोह छोटे बच्चे ,,जिनके हाथों में
बेचने के लिए गुब्बारे ,पेट में भूख ,आँखों में ज़रूरत की तस्वीर ,,सब कुछ
खफा हो गया है ,यूँ बार ,, बार मेरी संवेदनशील पत्नी का ,,बालकनी से
झांकना ,,कभी ठेले ,खोमचे वालों के विवाद ,,उनकी भीड़ ,उनकी बिक्री ,कम
ज़्यादा पर उसकी संवेदनशील टिप्पणी हवा हो गयी ,,बस ,दरवाज़ा खुलना ,,पत्नी
का बाहर झांकना ,,और एक ही आह ,,इन बेचारे खोमचे ,ठेले ,चाट पकोड़ी ,पोहे
वालों का क्या हाल होगा ,,,वोह बच्चे जिनके खेल कूद स्कूल के दिन थे ,जो
भूख मिटाने के लिए गुब्बारे बेचा करते थे ,उनका क्या हाल क्या होगा ,ज़ाहिर
है रोज़ रोज़ की टिप्पणी से ,,दिल हिलता ,है तकलीफ होती ,है , ,संवेदनशीलता
से संवेदनशीलता जागरूक होती है ,मेने भी उन गुब्बारे वाले परिवारों को
ढूंढ निकाला ,,सच में बुरी हालत थी ,कभी भूख ,तो कभी प्यास ,तो कभी कहीं से
मदद ,कभी नहीं ,खेर ,,अब शायद उन्हें इस लोकडाउन तक तो ,सुखी खाद्य
सामग्री की ज़रूरत न पढ़े ,,दाल ,चांवल , आटा चाय के सामान , दूध का डिब्बा
,इन परिवारों के पास ,इन्हे तलाश कर पत्नी की रोज़ रोज़ की संवेदनशील टिप्पणी
ने पहुंचाने को मजबूर किया , पोहे वाला अपने गांव है ,,एक नेपाली फ़ास्ट
फ़ूड वाला परिवार खुद्दार है ,,उसका कहना था ,अभी तो ईश्वर का दिया है फिर
सोचेंगे ,,मद्रासी डोसे वाले बाबू तलाश के बाद भी मिल नहीं पाए ,,एक चाट
वाले भाईसाहब ने सिर्फ नाममात्र की प्रतीकात्मक मदद ली , बाक़ी नंबर ले लिए
,,ज़रूरत पढ़ने पर कॉल करने के लिए कहा ,यह हाल कोटा के अकेले विज्ञाननगर के
हसंते खेलते ,थड़ी छाप छोटे व्यापरियों का ही नहीं पुरे देश में ऐसे
खुद्दार व्यापारी है ,,जिनके पते नहीं ,न जाने वोह कहाँ ,किस हाल में होंगे
,,भूखे ,होंगे प्यासे होंगे ,ज़रूरत मंद ,होंगे या फिर वोह खुद भी बाहैसियत
होने से दूसरों की मदद करते फिर रहे होंगे ,,,,,अल्लाह इन पर , हम पर ,
आप ,पर रहम करे ,,,जो गलतियां हुई हैं उन्हें माफ़ करे ,,हमारे तोबा क़ुबूल
करे ,,दुआएं क़ुबूल करे ,फिर से वही ,हँसते ,खेलते ,चलते फिरते बाजार , चहल
,पहल हो ,,चीख ,पुकार ,,वाहनों की आवाजाही हो ,,,भ्रूण में महमानों की
मेज़बानी हो ,एक दूसरे के यहाँ प्यार ,मोहब्बत से आवाजाही ,,दावतों का दौर
हो ,तीज ,हों ,त्योहार हों ,जुलुस हों ,तकरार हो ,प्यार हो ,नफरत जिनके
दिलों में हों ,हो तो हो ,लेकिन फिर भी उनके आसपास प्यार का ,मोहब्बत का
ऐसा बाज़ार हो ,के उनकी नफरत भी हार कर ,मोहब्बत में बदल जाए ,, अल्लाह फिर
से हमे ,हमारे इस मुल्क को ,इस दुनिया को गुले गुलज़ार कर दे ,, धड़कती
ज़िंदगियों की तरह मरघट से ख़ामोशी के बने इन हालातों को फिर से आबाद कर दे
,,आमीन ,सुम्मा आमीन ,,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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