﴾ 111 ﴿ और प्रत्येक को आपका पालनहार अवश्य उनके कर्मों का पूरा बदला देगा। क्योंकि वह उनके कर्मों से सूचित है।
﴾ 112 ﴿ अतः (हे नबी!) जैसे आपको आदेश दिया गया है, उसपर सुदृढ़ रहिये और वे भी जो आपके साथ तौबा (क्षमा याचना) करके हो लिए हैं और सीमा का उल्लंघन न[1] करो, क्योंकि वह (अल्लाह) तुम्हारे कर्मों को देख रहा है।
1. अर्थात धर्मादेश की सीमा का।
﴾ 113 ﴿ और अत्याचारियों की ओर न झुक पड़ो। अन्यथा तुम्हें भी अग्नि स्पर्श कर लेगी और अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई सहायक नहीं, फिर तुम्हारी सहायता नहीं की जायेगी।
﴾ 114 ﴿ तथा आप नमाज़ की स्थापना करें, दिन के सिरों पर और कुछ रात बीतने[1] पर। वास्तव में, सदाचार दुराचारों को दूर कर देते[2] हैं। ये एक शिक्षा है, शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिए।
1. नमाज़ के समय के सविस्तार विवरण के लिये देखियेः सूरह बनी इस्राईल, आयतः78, सूरह ताहा, आयतः130, तथा सूरह रूम, आयतः 17-18 2. ह़दीस में आता है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः यदि किसी के द्वार पर एक नहर जारी हो जिस में वह पाँच बार स्नान करता हो तो क्या उस के शरीर पर कुछ मैल रह जायेगा? इसी प्रकार पाँचों नमाज़ों से अल्लाह भूल-चूक को दूर (क्षमा) कर देता है। (बुख़ारीः528, मुस्लिमः667) किन्तु बड़े-बड़े पाप जैसे शिर्क, हत्या इत्यादि बिना तौबा के क्षमा नहीं किये जाते।
﴾ 115 ﴿ तथा आप धैर्य से काम लें, क्योंकि अल्लाह सदाचारियों का प्रतिफल व्यर्थ नहीं करता।
﴾ 116 ﴿ तो तुमसे पहले युगों में ऐसे सदाचारी क्यों नहीं हुए, जो धरती में उपद्रव करने से रोकते? परन्तु ऐसा बहुत थोड़े युगों में हुआ, जिन्हें हमने बचा लिया और अत्याचारी उस स्वाद के पीछे पड़े रहे, जो धन-धान्य दिये गये थे और वे अपराधि बन कर रहे।
﴾ 117 ﴿ और आपका पालनहार ऐसा नहीं है कि बस्तियों को अत्याचार से ध्वस्त कर दे, जबकि उनके वासी सुधारक हूँ।
﴾ 118 ﴿ और यदि आपका पालनहार चाहता, तो सब लोगों को एक समुदाय बना देता और वे सदा विचार विरोधी रहेंगे।
﴾ 119 ﴿ परन्तु जिसपर आपका पालनहार दया करे और इसीके लिए उन्हें पैदा किया है[1] और आपके पालनहार की बात पूरी हो गयी कि मैं नरक को सब जिन्नों तथा मानवों से अवश्य भर दूँगा[2]।
1. अर्थात एक ही सत्धर्म पर सब को कर देता। परन्तु उस ने प्रत्येक को अपने विचार की स्वतंत्रता दी है कि जिस धर्म या विचार को चाहे अपनाये ताकि प्रलय के दिन सत्धर्म को ग्रहण न करने पर उन्हें यातना का स्वाद चखाया जाये। 2. क्योंकि इस स्वतंत्रता का ग़लत प्रयोग कर के अधिक्तर लोग सत्धर्म को छोड़ बैठे।
﴾ 120 ﴿ और (हे नबी!) ये नबियों की सब कथाएं हम आपको सुना रहे हैं, जिनके द्वारा आपके दिल को सुदृढ़ कर दें और इस विषय में आपके पास सत्य आ गया है और ईमान वालों के लिए एक शिक्षा और चेतावनी है।
﴾ 121 ﴿ और (हे नबी!) आप उनसे कह दें, जो ईमान नहीं लाते कि तुम अपने स्थान पर काम करते रहो। हम अपने स्थान पर काम करते हैं।
﴾ 122 ﴿ तथा तुम प्रतीक्षा[1] करो, हमभी प्रतीक्षा करने वाले हैं।
1. अर्थात अपने परिणाम की।
﴾ 123 ﴿ अल्लाह ही के अधिकार में आकाशों तथा धरती की छिपी हुई चीज़ों का ज्ञान है और प्रत्येक विषय उसी की ओर लोटाये जाते हैं। अतः आप उसी की इबादत (वंदना) करें और उसीपर निर्भर रहें। आपका पालनहार उससे अचेत नहीं है, जो तुम कर रहे हो।
﴾ 112 ﴿ अतः (हे नबी!) जैसे आपको आदेश दिया गया है, उसपर सुदृढ़ रहिये और वे भी जो आपके साथ तौबा (क्षमा याचना) करके हो लिए हैं और सीमा का उल्लंघन न[1] करो, क्योंकि वह (अल्लाह) तुम्हारे कर्मों को देख रहा है।
1. अर्थात धर्मादेश की सीमा का।
﴾ 113 ﴿ और अत्याचारियों की ओर न झुक पड़ो। अन्यथा तुम्हें भी अग्नि स्पर्श कर लेगी और अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई सहायक नहीं, फिर तुम्हारी सहायता नहीं की जायेगी।
﴾ 114 ﴿ तथा आप नमाज़ की स्थापना करें, दिन के सिरों पर और कुछ रात बीतने[1] पर। वास्तव में, सदाचार दुराचारों को दूर कर देते[2] हैं। ये एक शिक्षा है, शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिए।
1. नमाज़ के समय के सविस्तार विवरण के लिये देखियेः सूरह बनी इस्राईल, आयतः78, सूरह ताहा, आयतः130, तथा सूरह रूम, आयतः 17-18 2. ह़दीस में आता है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फ़रमायाः यदि किसी के द्वार पर एक नहर जारी हो जिस में वह पाँच बार स्नान करता हो तो क्या उस के शरीर पर कुछ मैल रह जायेगा? इसी प्रकार पाँचों नमाज़ों से अल्लाह भूल-चूक को दूर (क्षमा) कर देता है। (बुख़ारीः528, मुस्लिमः667) किन्तु बड़े-बड़े पाप जैसे शिर्क, हत्या इत्यादि बिना तौबा के क्षमा नहीं किये जाते।
﴾ 115 ﴿ तथा आप धैर्य से काम लें, क्योंकि अल्लाह सदाचारियों का प्रतिफल व्यर्थ नहीं करता।
﴾ 116 ﴿ तो तुमसे पहले युगों में ऐसे सदाचारी क्यों नहीं हुए, जो धरती में उपद्रव करने से रोकते? परन्तु ऐसा बहुत थोड़े युगों में हुआ, जिन्हें हमने बचा लिया और अत्याचारी उस स्वाद के पीछे पड़े रहे, जो धन-धान्य दिये गये थे और वे अपराधि बन कर रहे।
﴾ 117 ﴿ और आपका पालनहार ऐसा नहीं है कि बस्तियों को अत्याचार से ध्वस्त कर दे, जबकि उनके वासी सुधारक हूँ।
﴾ 118 ﴿ और यदि आपका पालनहार चाहता, तो सब लोगों को एक समुदाय बना देता और वे सदा विचार विरोधी रहेंगे।
﴾ 119 ﴿ परन्तु जिसपर आपका पालनहार दया करे और इसीके लिए उन्हें पैदा किया है[1] और आपके पालनहार की बात पूरी हो गयी कि मैं नरक को सब जिन्नों तथा मानवों से अवश्य भर दूँगा[2]।
1. अर्थात एक ही सत्धर्म पर सब को कर देता। परन्तु उस ने प्रत्येक को अपने विचार की स्वतंत्रता दी है कि जिस धर्म या विचार को चाहे अपनाये ताकि प्रलय के दिन सत्धर्म को ग्रहण न करने पर उन्हें यातना का स्वाद चखाया जाये। 2. क्योंकि इस स्वतंत्रता का ग़लत प्रयोग कर के अधिक्तर लोग सत्धर्म को छोड़ बैठे।
﴾ 120 ﴿ और (हे नबी!) ये नबियों की सब कथाएं हम आपको सुना रहे हैं, जिनके द्वारा आपके दिल को सुदृढ़ कर दें और इस विषय में आपके पास सत्य आ गया है और ईमान वालों के लिए एक शिक्षा और चेतावनी है।
﴾ 121 ﴿ और (हे नबी!) आप उनसे कह दें, जो ईमान नहीं लाते कि तुम अपने स्थान पर काम करते रहो। हम अपने स्थान पर काम करते हैं।
﴾ 122 ﴿ तथा तुम प्रतीक्षा[1] करो, हमभी प्रतीक्षा करने वाले हैं।
1. अर्थात अपने परिणाम की।
﴾ 123 ﴿ अल्लाह ही के अधिकार में आकाशों तथा धरती की छिपी हुई चीज़ों का ज्ञान है और प्रत्येक विषय उसी की ओर लोटाये जाते हैं। अतः आप उसी की इबादत (वंदना) करें और उसीपर निर्भर रहें। आपका पालनहार उससे अचेत नहीं है, जो तुम कर रहे हो।
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