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24 फ़रवरी 2020

भारत में विधिक पत्रकारिता प्रशिक्षण ,लेखन ,खबरों के चयन ,सम्पादन के मामले में ,,पत्रकार संगठन ,इल्केट्रॉनिक मीडिया ,,प्रिंट मीडिया ,,पत्रकारिता के विश्वविद्यालय सजग सतर्क नहीं है

भारत में विधिक पत्रकारिता प्रशिक्षण ,लेखन ,खबरों के चयन ,सम्पादन के मामले में ,,पत्रकार संगठन ,इल्केट्रॉनिक मीडिया ,,प्रिंट मीडिया ,,पत्रकारिता के विश्वविद्यालय सजग सतर्क नहीं है ,,अफ़सोस इस बात का है ,के विधिक पत्रकारिता के नाम पर अदालतों के फैसले ,अदालतों के , हालात ,जजों के कार्यक्रम सहित ,कई तरह की खबरों की रिपोर्टिंग के लिए ,विधि क्षेत्र की एक विशेष बीट बनाकर ,पत्रकार तो नियुक्त किये गये है , लेकिन उनकी रिपोर्टिंग प्रशिक्षण मामले में पत्रकारों की प्रशिक्षण प्रणाली ज़ीरो है ,, इस तरफ यूँ तो पत्रकार और प्रेस ,,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मालिक गंभीर नहीं है ,यही वजह है के अनेकों बार पत्रकार ,उनकी पत्र पत्रिकाओं के सम्पादक ,मालिक इलेक्ट्रॉनिक चेनल्स के मालिक ,,न्यायालय की अवमानना ,मानहानि ,अदालतों में फौजदारी सहित दूसरे मुक़दमों में गवाह और मुल्ज़िम तक बना दिए जाते है ,फिर यह वर्ग परेशानी में रहता है ,,अदालतों की रिपोर्टिंग के वक़्त नाबालिग बच्चों की रिपोर्टिंग ,उनके आपराधिक मामलों की रिपोर्टिंग ,,बलात्कार की शिकार ,पोक्सो की परिवादिया के मामले में रिपोर्टिंग सहित , अदालतों के रवय्ये की रिपोर्टिंग वगेरा ऐसे मुद्दे है ,, जिसमे सावधानी हठी दुर्घटना घटी जैसी स्थिति पत्रकारों के सामने होती है ,,वोह रिपोर्टिंग निष्पक्ष करना चाहते है ,लेकिन उनके अल्फ़ाज़ उन्हें अपराधी की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देते है ,यही हाल रिपोर्टिंग में एक तरफा जानकारी ,किसी विशिष्ठ व्यक्ति के खिलाफ बिना किसी सुबूत के रिपोर्टिंग में ,,मानहानि ,सहित ब्लेकमेलिंग ,ख्याति को नुकसान पहुंचाने वाला दस्तावेज तैयार करने का आरोपी रिपोर्टर ,,सम्पादक ,,मालिक को बना देती है ,,ऐसे में पत्रकारों को इस क्षेत्र में विशेष प्रशिक्षण की ज़रूरत है ,राजस्थान के वर्तमान बजट में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ,,मानहानि मामले में क्षतिपूर्ति राशि के मुक़दमे में जो न्याय शुल्क जमा कराने का प्रावधान था ,उस प्रावधान में अधिकतम शुल्क पच्चीस हज़ार कर दिया है,, ऐसे में अब अख़बारों ,इलेक्ट्रॉनिक चेनल्स ,,रिपोर्टर्स ,सम्पादक ,मालिकों के खिलाफ रिपोर्टिंग में सतर्कता नहीं होने पर ,,प्रताड़ित ,प्रभावित व्यक्ति ,आसानी से कम खर्च में करोड़ों रूपये क्षतिपूर्ति मानहानि के मुक़दमे दायर कर सकेगा ,,आपराधिक मामले तो पृथक से दर्ज होते ही है ,,,एक रिपोर्ट के मुताबिक़ देश भर में इस तरफ किसी भी पत्रकारिता संगठन ,, सरकारी , निजी स्तर पर पत्रकारिता डिग्री कोर्स करवाने वाले विश्विवद्यालय गंभीर नहीं है ,वोह विधि पत्रकारिता के मामले में अलग से कोई पेपर ,,कोई लेक्चर ,कोई पाठ्यक्रम भी लागू नहीं कर पा रहे है ,,,हालात यह है के रिपोर्टर ,सम्पादक ,,मालिक बहस और जिरह में भी फ़र्क़ नहीं समझते है ,और अदालती अल्फ़ाज़ों के इस्तेमाल से कई बार हास्यास्पद स्थिति सी बन जाती है ,,,अदालतों में आजकल विधिक साक्षरता कार्यक्रम ,, लोक अदालतें ,स्थाई लोक अदालते ,बार कौंसिल कार्यकम ,जिला स्तर पर वकीलों के खेलकूद ,चुनाव मामले भी होते है ,जबकि बहतरीन फैसले ,,फैसलों की क्रियान्विति ,,उनकी उपेक्षा ,,ऐसे फैसलों को लागु करने की ज़िम्मेदारी सरकारों की होने पर भी ,,सरकारों का गैर ज़िम्मेदारांना रवय्या ,, अदालतों में जजों ,स्टाफ की कमी ,उनके कार्यव्यवहार की रिपोर्टिंग ,,अधुनिकीकरण प्रणाली ,, कुछ मुक़दमों की जीवंत लाइव रिपोर्टिंग ,, विधिक साक्षरता कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग ,, जजों के चयन प्रणाली में प्रशिक्षण ,चयन ,परीक्षाओं को लेकर आरोप प्रत्यारोप ,,,अदालतों में भवन ,परिसर ,सुविधाओं ,,पक्षकारों से वकील और जजों के समन्वय के हालातों की रिपोर्टिंग ऐसे मुद्दे है ,, के रिपोर्टर को एक एक क़दम ,एक एक अलफ़ाज़ का चयन फूंक फूंक कर रखना पढ़ता है ,यूँ तो पत्रकारिता तलवार की धार पर चलने जैसी है ,वर्तमान पत्रकारिता में व्यवसायिकता ,और व्यक्तिवाद ,राजनितिक दलों की प्रवक्तागिरी आ जाने से पत्रकारिता में गिरावट तो है ,लेकिन जो पत्रकार आज भी अपनी ज़िम्मेदारी रिपोर्टिंग प्रणाली पर क़ायम है ,वोह तलवार की धार पर चलते है ,उन्हें क़दम क़दम पर खतरा होता है ,, ऐसे में अल्फ़ाज़ों के चयन में ,,खबर के सम्पादन में विज्ञापनों के चयन में ,,रिपोर्टिंग में ज़रा भी सावधानी हठी तो ,,पत्रकार ,मालिक ,सम्पादक ,,मुश्किलों में पढ़ते रहे है ,,,वी जी वर्गीस हिंदुस्तान टाइम्स ,,,आर के करंजिया ,ब्लिट्स के मामले सुप्रीमकोर्ट और संसद की रिपोर्टिंग को लेकर हुए विवाद सर्विदिदत है ,,इसी तरह से कई पत्रकारों को संसदीय ,,विधानसभा की रिपोर्टिंग का विधिक ज्ञान नहीं होने से वोह मुश्किल में पढ़ते रहे है ,, कई पत्रकारों को विशेषाधिकार हनन का सामना करना पढ़ा है ,तो कई पत्रकार आज भी अवमानना के मामलों ,मानहानि के मामलों में उलझे हुए है ,,ऐसे में विधिक ,पत्रकारिता ,,,पत्रकारिता क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है ,,समय रहते अगर पत्रकारिता विश्वविद्यालयों ,,पत्रकार संगठनों ने विधिक पत्रकारिता के विशेष प्रशिक्षण ,,विधिक पत्रकरिता पाठ्यक्रम पर ध्यान नहीं दिया ,,तो पत्रकारों का एक हिस्सा ,लगातार क़ानूनी दांव पेंच की मुश्किलों में फंसता रहेगा ,,और पत्रकारिता के हालातों में जो निर्भीकता ,निष्पक्षता ,खबर चयन ,विज्ञापन चयन के जो मानक है ,उसमे परेशानियां ही ,परेशानियां बनी रहेंगी पत्रकारिता रिपोर्टिंग में विधिक विशेषज्ञ भरत सेन समीक्षा में कहते है ,,,भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों की वेबसाईट का आवलोकन करने पर यह चौकाने वाला तथ्य सामने आता हैं कि पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातक एवं स्नातकोत्तर उपधि प्रदान करने वाले विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में सबसे महत्वपूर्ण विषय विधिक पत्रकारिता नही हैं। कानून और न्याय के शासन में आस्था रखने वालों को यह जानकर दुख होगा कि जहाँ विश्वविद्यालयों में विधिक पत्रकारिता का विषय नही हैं वही पर विधिक पत्रकारिता को पढ़ाने वाले प्रध्यापक या शिक्षक भी नही हैं और इतना ही नही विधि पत्रकारिता का साहित्य भी उपलब्ध नही हैं। विधिक पत्रकारिता शैक्षणिक संस्थानों में एक व्यवस्थागत रूप अभी तक ग्रहण नही कर सका हैं। राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों और प्रादेशिक विश्वविद्यालयों में पीएचडी की उपाधि के कार्यक्रम तो चल रहे हैं लेकिन विधिक पत्रकारिता में पीएचडी की उपाधि को लेकर कोई जानकारी नही हैं। पत्रकारिता के लिए स्थिापित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय की भी यही स्थिति हैं।
भारत के पत्रकारिता एवं जनसंचार से जुड़े शिक्षा संस्थान पत्रकारिता की डिग्रीयाँ तो बाट रहे हैं, पत्रकार तो पैदाकर हो रहे हैं लेकिन विधिक पत्रकारिता की अभी शुरूवात होना बाकी मालूम पड़ती हैं। पत्रकारिता का क्षेत्र अत्यंत विशाल हैं और विधिक पत्रकारिता विधि विशेषज्ञों का विषय हैं। कम से कम दस वर्षो की वकालत का अनुभव रखने वाले अधिवक्ता में विधिक पत्रकार होने की बुनियादी योग्यता हो सकती हैं। विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में विधिक पत्रकारिता को शामिल किया जाकर एक व्यवस्थागत् रूप दिया जा सकता हैं।
विधिक पत्रकारिता न्यायिक अधिकारियों और अधिवक्ताओं के बीच विभिन्न विधिक पत्रिकाओं के माध्यम से होती रही हैं। विधिक पत्रिकाओं में विभिन्न उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के फैसले होते हैं जिनका प्रचार प्रसार आम आदमी के बीच होना चाहिए लेकिन यह अधिवक्ताओं तक सीमित रहता हैं। विधिक पत्रिकाएँ बहुत महँगी होती हैं और आम आदमी इसे खरीद कर पढ़ नही सकता हैं। लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक हैं कि कानून का ज्ञान प्रत्येक नागरिक को होना चाहिए। विधिक साक्षरता का अभियान चलाया तो जाता हैं लेकिन गलत ढंग से चलाया जाता रहा हैं। प्रत्येक न्यायालयों में औसतन एक हजार प्रकरण विचाराधीन हैं। आम तौर पर देखने में तो यही आता हैं कि न्यायिक अधिकारी ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर विधिक साक्षरता शिविर लगाते हैं। यह काम किसी विधि स्नातक जनसम्पर्क अधिकारी के माध्यम से करवाया जाऐगा तो परिणाम भी सकारात्मक मिल सकेगें। विधिक सेवा प्राधिकरण में विधि अधिकारी का पद समाप्त करके जनसम्पर्क अधिकारी का पद बनाया जाना चाहिए। विधिक सेवा दिवस पर विधिक पत्रकारिता के लिए सम्मानित किए जाने की व्यवस्था होनी चाहिए।, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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